Atmadharma magazine - Ank 280
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४९३ आत्मधर्म : ३१ :
भगवानना साक्षात् कल्याणक थता हशे ए केवुं हशे? गुरुदेव कहे–एनी तो शी वात!
पछी साक्षात् समवसरणनी, पूर्वभवोनी, तथा भविष्य संबंधी आनंदकारी वात गुरुदेवे
करी हती, जे सांभळीने भक्तोने धर्मात्मानो खूब महिमा जागतो हतो, ने धार्मिक
पोषण मळतुं हतुं. आम आनंद अने उल्लासपूर्वक जिनेन्द्रभगवाननो मंगल उत्सव
उजवायो.
बीजे दिवसे माह सुद बीजनी सवारमां श्री जिनमंदिरमां भगवानना दर्शन–
स्तवन करीने जयजयकारपूर्वक गुरुदेवे आंकडियाथी राणपुर तरफ प्रस्थान कर्युं.
* * *
आंकडियामां पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव पूर्ण करीने प्रस्थान करतां पहेलां
गुरुदेवे एक ‘गारुडी’ नुं स्वप्न जोयुं:– एक गारुडी छे, तेनी पासे एवी कोई वनस्पति
छे के जे सुंघाडतां सर्प दरमांथी बहार आवे ने तेनुं झेर छोडीने चाल्यो जाय. कया दरमां
सर्प छे ते जाणीने त्यां वनस्पति सुंघाडतां ज सर्प बहार नीकळे छे ने पोतानुं झेर छोडी
दे छे. –आ रीते जाणे मिथ्यात्वनुं झेर उतारी नांखनारी कोई दिव्य संजीवनी
(जिनवाणीरूपी संजीवनी) देखाणी. –गुरुदेवे सवारमां (माह सुद बीजे)
सीमंधरप्रभुनां दर्शन करीने तेमनी सन्मुख आ शुभस्वप्न प्रसन्नतापूर्वक संभळाव्युं;
धर्मप्रभावनासूचक आवुं स्वप्न सांभळीने सौने प्रसन्नता थई, त्यारबाद गुरुदेवे भक्ति
करावी. वहेली सवारमां, “साचो अंतरयामी आतमदिलमां ध्यावजे रे...निज अंतरमां
प्रभुने प्रेम थकी पधरावजे रे...” एवुं भावभीनुं भजन गुरुदेवना श्रीमुखथी सांभळतां
उल्लासभावो जागता हता. त्यारबाद प्रभुने अर्घ चडावीने मंगलपूर्वक प्रस्थान कर्युं.
वच्चे अमरेली, उमराळा ने बरवाळा–ए त्रणेय गामोथी पसार थईने राणपुर
पहोंच्या...त्यां भक्तोए भावपूर्वक गुरुदेवनुं स्वागत कर्युं. जिनमंदिरमां श्री महावीरादि
भगवंतोनां दर्शन कर्या. बपोरे कर्ताकर्म अधिकार गा. ६९–७० उपर गुरुदेवे प्रवचन
कर्युं... प्रवचनमां राणपुरना तेमज बहारगामना ३००–४०० श्रोताजनोए लाभ लीधो
हतो. बीजे दिवसे बे प्रवचनो करीने त्रणवागे गुरुदेवे राणपुरथी अमदावाद प्रस्थान
कर्युं.
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