Atmadharma magazine - Ank 280
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : माह : २४९३
आंकडियामां ज्ञान अने भक्ति
आंकडियामां पोष वद ९ थी माह सुद एकम सुधी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा
महोत्सव प्रसंगे गुरुदेव पधारेला, त्यारे समयसार–पुण्यपाप–अधिकार उपर, तथा
पद्मनंदीमांथी ऋषभस्तुति उपर ग्राम्यजनताने पण समजाय एवी अत्यंत सरल
शैलिथी प्रवचनो थया, तेनुं थोडुंक दोहन.
देहथी भिन्न आ आत्मा अंदर शुं चीज छे तेनी आ वात छे. जेम लींडीपीपरमां
६४ पहोरी तीखास भरी छे तेम आत्मानी शक्तिमां सर्वज्ञता भरी छे. आत्मानुं भान
करीने ते सर्वज्ञता जेमणे प्रगट करी एवा भगवान सर्वज्ञदेवनी आ वाणी छे. अहीं
एवा सर्वज्ञभगवाननी स्थापनानो आ उत्सव छे. ते सर्वज्ञभगवानने ओळखवा
जोईए. आत्मानो ज्ञानस्वभाव छे ते पुण्य अने पाप बंनेथी पार छे, एम अहीं
आचार्यदेव समजावे छे.
भाई, अनंतकाळमां तें पापनी अने पुण्यनी वात सांभळी छे, ने ते पुण्य–
पापनो तने अभ्यास छे; पण ते पुण्य–पाप बंनेथी पार आत्मानुं वीतरागस्वरूप शुं
छे–तेनी तने खबर नथी, ते वात तने सांभळवा मळी नथी, ने सांभळवानो आवो
अवसर आव्यो त्यारे समजवानी तें दरकार करी नथी. बहु तो स्थूळ पाप छोडीने कंईक
पुण्यपरिणाम कर्या तेमां कल्याण मानीने संतोषाई गयो. भाई, पाप अने पुण्य ए तो
बंनेनी एक जात छे. तुं बंनेनी जात जुदी माने छे ते भूल छे. शुभ के अशुभ ए बंने
रागना ज प्रकार छे, बेमांथी एकेय वीतरागी मोक्षमार्गरूप नथी. मोक्षमार्ग तो पुण्य
अने पाप बंनेथी पार ज्ञानभावरूप छे. –भाई, आवो मोक्षमार्ग तारे समजवो पडशे.
–आ समज्ये ज दुःखथी छूटकारो थाय तेम छे.
प्रश्न:– अमे तो नाना गामडाना कणबी, अमने मोक्षमार्गनी आवडी मोटी वात
केम समजाय?
उत्तर:– बापु! आत्मा कणबी नथी, आत्मा नानो नथी, आत्मामां आ