Atmadharma magazine - Ank 280
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४९३ आत्मधर्म : ३३ :
मोक्षमार्ग समजवानी ताकात छे, महान ताकातथी आत्मा भरेलो छे, तेथी तेने तेनी
वात समजावे छे. आत्माने साधारण न मानो; आ शरीरथी भिन्न एकेक आत्मा
परिपूर्ण ज्ञान–आनंदथी भरेलो छे. पुण्यनी के पापनी वृत्ति तो क्षणिक छे, विकार छे,
बंधनुं कारण छे, आत्मा ते क्षणिक पुण्य–पाप जेटलो नथी.
* * *
पुण्य–पापरहित ज्ञानस्वरूप आत्माने साधीने अनंता जीवो पूर्ण परमात्मदशाने
पाम्या छे ने पूर्ण आनंदसहित सिद्धलोकमां बिराजे छे. एमां आ चोवीसीना २४
तीर्थंकरोमां ऋषभदेव पहेला तीर्थंकर थया; तेमनी स्तुति करे छे. पद्मनंदी नामना
मुनिराज–के जेओ वन जंगलमां रहेता ने आत्मध्यानमां झुलता हता, तेमणे एक
शास्त्र रचेलुं छे, तेमांथी आ १३मा अधिकार द्वारा ऋषभदेवप्रभुनी स्तुति करी छे.
असंख्य वर्ष पहेलां ते भगवान आ भरतभूमिमां थई गया, छतां जाणे अत्यारे ज
सन्मुख बिराजता होय–एवा भावथी मुनिराजे तेमनी आ स्तुति करी छे. तेमां
मंगळिकमां कहे छे के हे जिनेंद्र! आप जयवंत रहो, एटले के वीतरागता ने सर्वज्ञता
जयवंत रहो, एम कहीने ते गुणनो आदर कर्यो छे. पोताने ते गुण गोठ्या छे तेथी कहे
छे के हे प्रभो! निर्मळगुणरूपी रत्नोना निधि एवा आप जयवंत हो...प्रभो! आप तो
समस्त जीवो उपर वात्सल्यवाळा छो...आपने राग तो नथी पण वीतरागी वात्सल्य
छे, एटले पोताने भगवानना वीतराग गुणोनो प्रेम होवाथी उपचारथी कहे छे के अहो
प्रभो! आप अमारा उपर वात्सल्य करनारा छो, ने निर्मळगुणोनां निधान छो; अमने
पण अमारा गुणनां निधान आपे देखाड्या छे. प्रभो! आपनां गुणोनो आदर कर्यो
तेथी हवे अमे पुण्य–पापरूप रागमां अटकवाना नथी, पण राग अने आत्मगुणोनी
भिन्नता जाणीने अमे पण अमारा वीतरागीगुणोनां निधानने साधशुं ने परमात्मा
थशुं.
भक्त कहे छे के हे प्रभो! रागना विकल्प द्वारा आपने देखतां पण अमने एवो
हर्ष थाय छे के देहमां समातो नथी ने रोमांचद्वारा बहार नीकळे छे, तथा आपना
दर्शनथी त्रणलोकमां उत्तम पुण्य बंधाई जाय छे; तो पछी हे नाथ! आपने ज्ञाननेत्रथी
देखतां जे अतीन्द्रिय आनंद थाय छे तेनी तो शी वात? –ए तो वचनथी कही शकाय
नहि.