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हतुं तेथी विमानी शरूआतमां तो आनाकानी करतो हतो, पण पछी तो क्षणभरमां
विमान जोधपुर कई रीते पहोंची गयुं–तेनुं विमानीने पण आश्चर्य थयुं. शरूमां आ
सेंकडो जिनबिंबो अहींना बीजा जिनमंदिरमां महेमान तरीके बिराजता हता, ते हवे
आदर्शनगरना मंदिरनी वेदीमां बिराजी रह्या छे. तेमना दर्शन करतां, मुलतानवासी
साधर्मी भाईओ ज्यारे ए भगवानने लईने अहीं आव्या हशे ते वखतनी लागणीनुं
अने ते प्रसंगना वातावरणनुं स्मरण थाय छे. आ जयपुरथी पं. टोडरमलजीए जे
मुलतानना साधर्मीभाईओ उपर सहजानंदनी वृद्धिनी भावना सहित अध्यात्मसन्देश
लख्यो ते मुलतानना भाईओ आजे जयपुर आवीने वस्या ने टोडरमलजीना
द्विशताब्दि उत्सवमां भाग लेवा लाग्या, तथा तेमनी विनंतीथी गुरुदेवे तेमना
आदर्शनगरमां (टोडरमलजीनी चिठ्ठि उपर) प्रवचन कर्युं. प्रवचनमां पांच छ हजार
श्रोताजनोनी भीड हती ने धार्मिक मेळा जेवुं वातावरण हतुं. गुरुदेवे स्वानुभवनुं
स्वरूप अने ते वखतना निर्विकल्प आनंदनो महिमा समजाव्यो हतो. तथा अनुभवनी
कणिका जाग्ये सर्व गुणोमां शुद्धता थवा मांडे छे–ते खास समजाव्युं हतुं. मुलतानवासी
भाईओ बहु प्रसन्न थया हता. गुरुदेवनी मंगल छायामां जयपुर–सोनगढ ने
मुलतानना साधर्मीओनुं संमेलन जोईने हृदयमां हर्ष–वात्सल्य जागता हता. अहींनुं
मंदिर भव्य अने दर्शनीय छे. आदर्शनगरना मुलतानवासी भाईओ तरफथी अध्यक्षे
गुरुदेवनो उपकार मानतां कह्युं हतुं के आदर्शनगरमां अध्यात्मनो संदेश संभळावीने
आपे अमने साचा आदर्शजीवननो मार्ग देखाड्यो छे, ते मार्गे चालीने अमे साचो
आदर्श अंगीकार करीए एवी भावना छे. प्रवचन पछी वेदी–कळश–ध्वजशुद्धि ईन्द्रोद्वारा
तेमज पू. बेनश्रीबेनना सुहस्ते थई हती.
तथा सीनसीनेरी अने साजसजावट घणा सरस हता. सीताजीनो वनवास, वनमांथी
रामचंद्रजी उपर सीताजीनो धार्मिकसन्देश, लवकुशनुं बाल्यजीवन, सीताजीनी
अग्निपरीक्षा ने कमळनी रचना वगेरे वैराग्यभर्या द्रश्यो अने संवादो सहित साडाचार
कलाक सुधी एकधारुं नाटक चाल्युं हतुं. सीताजीना जीवनप्रसंगो जोतां मुमुक्षुने जीवनमां
वैराग्य अने धैर्य तथा धर्मद्रढतानी प्रेरणाओ मळती हती. नाटकथी प्रसन्न
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आवी प्रवृत्ति विकसाववा जेवी छे एम सौने लागतुं हतुं. आ नाटक माटे किशनगढनी
संगीतमंडळीने तथा तेना कार्यकरोने धन्यवाद!
सीमंधरप्रभुनी प्रतिष्ठा आजे थाय छे. प्रथम सवारमां शहेरना मंदिरमां कलश तथा
ध्वजारोहण थयुं. श्रीमान पं. टोडरमलजी आ जिनमंदिरमां शास्त्रसभा करता हता. आ
मंदिर उपर कलश–ध्वज लगभग २०० वर्षथी चड्या न हता, आजे बसो वर्षे कलश–
ध्वज चडता होवाथी सौने घणो हर्षोल्लास हतो. पू. गुरुदेव पण ते प्रसंगे उपस्थित
हता. पांच–छ हजार भक्तोजनोना हर्ष ने जयजयकार वच्चे मंदिर उपर कळश तथा
ध्वज शोभी ऊठ्या. आ प्रसंगे मंदिरजीमां शास्त्रोनी हस्तलिखित प्रतोनुं प्रदर्शन हतुं–
जेमां पं. श्री टोडरमल्लजीनी स्वहस्तलिखित मोक्षमार्गप्रकाशक वगेरे प्रतो, तेमज पं.
सदासुखदासजी, पं. जयचंदजी वगेरे विद्वानोनी पण हस्तप्रतो हती; आ उपरांत सचित्र
भक्तामर–स्तोत्रनी प्रत हती. मंदिरमां कलश अने ध्वजारोहण पछी गुरुदेवनुं प्रवचन
पण त्यां ज हतुं. पं. श्री टोडरमल्लजी–लिखित मोक्षमार्गप्रकाशकमांथी, “मोक्षमार्ग एक
ज छे, मोक्षमार्ग बे नथी”–ए विषय उपर गुरुदेवे अद्भुत प्रवचन करीने स्वाश्रित
मोक्षमार्गनुं स्वरूप स्पष्ट समजाव्युं हतुं. शहेरमां पहेलीवार प्रवचन थतुं होवाथी हजारो
माणसो प्रवचन सांभळवा उमट्या हता, मंदिर तथा आसपासना चोक चिक्कार भराई
गया हता. दिल्हीना राजा टोयझवाळा भाईश्री कैलासचंदजी पण उत्सव प्रसंगे
गुरुदेवना परिचयथी खूब प्रभावित थया हता.
गोदिकाजीने घणो ज उल्लास हतो. अजमेरना शेठश्री भागचंदजी सोनी पण आव्या
हता. हजारो भक्तोना हर्षनाद वच्चे गुरुदेवे भवननुं उद्घाटन कर्युं के तरत होल
चिक्कार भराई गयो हतो; ने पू. गुरुदेवे मंगल प्रवचन कर्युं हतुं. मंगल प्रवचनमां
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नमों ताहि जातें भये अरहन्तादि महान।।
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स्थापवामां आव्या. माननीय प्रमुखश्री नवनीतलालभाई झवेरीए उत्सवनुं उद्घाटन
करतां पं. श्री टोडरमलजी प्रत्ये श्रद्धांजलि अर्पण करी तेम ज गुरुदेव द्वारा जे महान
प्रभावना थई रही छे तेनो महिमा प्रगट कर्यो. पछी “श्री टोडरमल–स्मारिका” नुं
प्रकाशन थयुं, १प० पृष्ठनी स्मारिका उत्सव–कमिटिना अध्यक्ष शेठश्री पूरणचंदजी
गोदिकाए गुरुदेवने समर्पण करीने तेनुं उद्घाटन कर्युं हतुं. तथा ‘टोडरमल–ग्रंथमाळा’
ना केटलाक पुस्तकोनुं पण प्रकाशन करीने ते ग्रंथमाळानुं उद्घाटन करवामां आव्युं हतुं,
ग्रंथमाळाना पहेला पुष्परूपे पं. टोडरमलजीना मोक्षमार्गप्रकाशकनी ११००० प्रत
प्रकाशित थई हती. ते उपरांत जयपुर (खानिया) तत्त्वचर्चाना बे पुस्तको तथा
‘अध्यात्मसन्देश’–पं. टोडरमलजीनी रहस्यपूर्ण चिठ्ठि उपरना पू. गुरुदेवना प्रवचनोनुं
पुस्तक वगेरे प्रकाशनो प्रगट थया हता. गुरुदेवे मंगलआशीर्वादरूपे ‘मंगलमय
मंगलकरण वीतराग विज्ञान’–ए श्लोकनो अर्थ करतां कह्युं के वीतरागी विज्ञान ते
मंगळरूपे छे, ने ते मंगळनुं कारण छे. भूतार्थस्वभाव आत्मा मंगळरूप छे, ते राग
वगरनो छे, तेना आश्रये सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान प्रगट करवा ते वीतरागीविज्ञान छे, ने ते
मंगळरूप छे. आचार्यदेव समयसारनी पांचमी गाथामां कहे छे के स्वसंवेदनरूप मारो जे
आत्मवैभव प्रगट्यो छे तेना वडे हुं एकत्वरूप शुद्ध आत्मा देखाडुं छुं, ते तमे तमारा
स्वानुभववडे प्रमाण करजो. आवा शुद्धआत्माने वीतराग विज्ञानवडे जाणवो–श्रद्धामां
लेवो ते मंगळमय छे; ने तेने माटे सन्तोना आशीर्वाद छे. गुरुदेवनुं भावभीनुं
आशीर्वादआत्मक प्रवचन सांभळीने सौने घणी प्रसन्नता थई. जयपुर–उत्सवमां
ईन्दोरना पं. श्री बंसीधरजी सिद्धांतशास्त्री, पं. श्री नाथुलालजी, तेम ज पं. श्री
कैलाशचंद्रजी, पं. श्री फूलचंदजी, पं. श्री जगन्मोहनलालजी वगेरे अनेक विद्वानो आव्या
हता, जयपुरना पं. श्री चैनसुखदासजी पण उत्सवमां भाग लेता हता; ने दरेक
विद्वानोए उत्सवसंबंधी पोतानी प्रसन्नता व्यक्त करीने पं. श्री टोडरमलजी प्रत्ये तथा
पू. गुरुदेव प्रत्ये श्रद्धांजलि अर्पण करी हती. अध्यक्षस्थानेथी प्रवचन करतां जैन
समाजना आगेवान श्रीमान् साहु शांतिप्रसादजी जैने पण टोडरमलजीना जीवन प्रत्ये
अंजलि आपीने गुरुदेव द्वारा तेमनो जे प्रचार ने जैनधर्मनी प्रभावना थई रहेल छे ते
प्रत्ये प्रसन्नता व्यक्त करीने अभिनंदन तथा श्रद्धांजलि आपी हती. विशेषमां,
गुरुदेवना सान्निध्यमां भगवाननी प्रतिष्ठानो तथा स्मारक–
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पूरणचंदजी गोदिकाए टोडरमल–ग्रंथमाळामां रूा. प१,१११ (एकावन हजार एकसो
अगियार) जाहेर कर्या हता. आ उपरांत रूा. प००१) भाईश्री नवनीतभाई झवेरी
तरफथी जाहेर करवामां आव्या हता. बीजा सेंकडो भाईओए ग्रंथमाळाना फंडमां रकमो
जाहेर करी हती. अगाउ ४०,००० जेटली रकमनुं फंड थयुं हतुं आम कुल सवा लाख रूा.
उपरांत फंड थई गयुं हतुं. आ सिवाय उत्सव दरमियान हाथी वगेरेनी अनेकविध
उछामणीओमां जे आवक थई ते बधी पण ग्रंथमाळाना फंडमां लेवानुं जाहेर थयुं हतुं–
आम साहित्यप्रचार माटेनी एक महान भूमिका रचाई हती; ने भविष्यमां साहित्यक्षेत्रे
आ ग्रंथमाळा घणुं मोटुं काम करशे–एवी आशा छे.
हता. पहाडी उपर जवानो मोटररस्तो घणो विकट हतो. चालीने जवानो रस्तो सुगम
छे. नीचे बे जिनमंदिरो छे, तथा पहाड उपर पण मंदिर छे. रात्रे हिंमतनगरना
प्रतिष्ठा–महोत्सवनी फिल्मनुं प्रदर्शन तेमज विद्वानोना भाषण थया हता. फिल्ममां
हेलिकोप्टरद्वारा जिनमंदिर उपर पुष्पवृष्टि वगेरे द्रश्यो जोतां जनता हर्षित थती हती.
जमीनमांथी मूलचंद नामना एक बाळकने २० वर्ष पहेलां मळेला पद्मप्रभुना
प्रतिमाजीने पधरावीने एक विशाळ उन्नत मंदिर बंधाई रह्युं छे, जेमां पचीस लाख
जेटला खर्चनो अंदाज छे. आ मंदिरमां अनेकविध कारीगरी तेमज उन्नत घूम्मट छे.
आरसना घूमटनी ऊंचाई ८प फूट जेटली छे ने तेना उपर शिखर थशे त्यारे सवासो
फूट ऊंचाई थशे.
प्राचीन गौरव जोईने हर्ष थाय छे. जयपुरमां पण ठेरठेर सुंदर जिनमंदिरो छे–अनेक
प्राचिन जिनालयोना वैभवथी आ जैनपुरी–जयपुरनुं भव्य गौरव छे, जोके
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द्रष्टिए जैनोना वैभवसंपन्न मंदिरोए अने अहींना महान टोडरमलजी जेवा अनेक
विद्वानोए आ नगरीने गौरवभरेली प्रसिद्धि आपी छे. करफ्युना कारणे हरवाफरवानो
जे प्रतिबंध हतो ते दूर थवाने लीधे हवे सेंकडो–हजारो यात्रिको आनंदपूर्वक नगरीमां
जईने जिनमंदिरोनां दर्शन करता हता.
तेमां पण नाना बाळकोद्वारा पं. श्री टोडरमलजीना जीवनप्रसंगो उपर जे अभिनय
थयो, अने पं. टोडरमलजीनुं पात्र भजवनार बाळके जे सुंदर भावभीनो अभिनय
कर्यो–ते देखीने गुरुदेवने तेमज हजारो दर्शकोने खूब प्रसन्नता थई हती. टोडरमलजीनुं
आ नाटक लखनारने, तेनुं दिग्दर्शन करनारने तथा सफळतापूर्वक ते भजवनारने
धन्यवाद घटे छे. आ कार्यक्रमथी प्रसन्न थईने घणा जिज्ञासुओए पुरस्काररूपे रकमो
जाहेर करी हती.
जैनोनी खास वस्तीथी भरचक छे अने चोकनी आसपासमां ज पचीस जेटला भव्य
जिनालयो छे. तद्न नजीक नजीकमां आवा भव्य जिनालयो देखीने आश्चर्य थाय छे के
आ नगरीमां जैनोनी जाहोजलाली केटली महान हशे!–एटले ज घणा लोको आने
जैनपुरी कहे छे. शहेरमां प्रवचन होवाथी नगरजनो पण घणी मोटी संख्यामां आव्या
हता ने अनेक विद्वानो सहित दशेक हजार जेटली संख्या थई हती. प्रवचन पछी
जयपुरना ईतिहासमां अभूतपूर्व एवी जिनेन्द्रभगवाननी भव्यविशाळ रथयात्रा
नीकळी हती. रथयात्रानी महानतानो एटला उपरथी ज ख्याल आवी जशे के श्री
जिनेन्द्रभगवानना रथना सारथि तरीके कहानगुरु बेठा हता, अने रथनी आगळ १८
अढार सुसज्जित हाथी उपर धर्मध्वज फरकावता ईन्द्रो बेठा हता. १८ हाथी उपरांत
सुसज्जित ११ ऊंट, घोडेस्वारो, त्रण रथ, बाहुबली प्रभुना तथा टोडरमलजीना मोटा
चित्रो सहित शणगारेली जीपगाडी, अनेक बेन्डवाजां, भजनमंडळीओ वगेरे
ठाठमाठसहित अने वीस–पचीस हजारना जनसमुदाय सहित ज्यारे भव्य रथयात्रा
जयपुर नगरीना त्रिपोलिया बजार अने झवेरी बजार जेवा
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हता. दश दश दिवसनो उत्सवनो उल्लास आजे जाणे भेगो थईने एकसामटो प्रसिद्ध
थयो हतो. करफ्युना कारणे आठ दिवसथी सुमसाम देखाती नगरीमां पचीस हजार
माणसोनुं उल्लासभर्युं ठाठमाठ सहितनुं आवुं जुलुस देखीने, जैनधर्मनो आवो महान
प्रभाव देखीने, अत्यंत हर्षोल्लास थतो हतो के वाह! कहान गुरुनो प्रभाव...भारतमां
अजोड छे. नगरीमां आवेला परदेशी प्रवासीओ पण आ प्रभावशाळी रथयात्रा देखीने
मुग्ध बनी जता हता. रथयात्रा अढी कलाक सुधी नगरीमां फरी हती. राजस्थानी,
गुजराती ने मुलतानी–बधा भक्तोनी भजनमंडळी अत्यंत उल्लासपूर्वक भक्ति करती
हती, ने घणा भक्तो आनंदथी नाची ऊठ्या हता, सौ कहेता–आवी भव्य रथयात्रा कदी
जोई नथी. गुरुदेवना प्रवचनो सांभळीने पंडितो मुग्ध बनता, ने रथयात्रा देखीने पं.
चैनसुखदासजी कहेता हता के आ धर्मप्रभावनानो महान प्रवाह कानजीस्वामी द्वारा
चाल्यो छे ते कोईथी रोकी शकाय तेम नथी. रथयात्रा ज्यारे झवेरी बजारमां आवी
त्यारे तो नगरीना रस्ताओ उभराई गया हता, रस्ताओ ज नहीं परंतु मकानोनी
मोटी अगाशीओ ने अटारीओ पण हजारो माणसोनी भीडथी उभराता हता. दश
दिवसथी करफ्युना प्रतिबंधमां बंधायेली नगरी आजे जाणे मुक्तिनो आनंद माणी रही
हती, सौ कहेता के दशे दिवसनुं साटुं आ एक रथयात्रामां वाळी लीधुं. श्री गोदिकाजी
आजे खूब ज प्रसन्न हता ने हाथी उपर धर्मध्वज फरकावता हता. गुरुदेव पण बे
कलाक सुधी भक्तिभावपूर्वक भगवानना सारथि तरीके रथमां बेठा हता ने भक्तो
आनंदपूर्वक प्रभुजीनो रथ हाथोहाथ चलावता हता. रथयात्रानुं विशेष वर्णन केटलुं
लखाय? केमके–
तिह समयकी आनंद महिमा कहत क्यों मुखसों बने?
आपी, ऊंटोए पोतानी सुसज्जित डोक एना करतां पण वधुं ऊंची करीने सलामी
आपी, वाजां एनाथी पण वधु अवाजे गाजी ऊठया, ने हजारो भक्तोना हर्षनादे
आनंदसन्देश आकाशमां पहोंचाडी दीधो. बराबर ए ज वखते कुदरत पण
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झरमर छांटणां पडवा लाग्या. कुदरतना वातावरणनो आवो आश्चर्यकारी मेळ जोईने
सौने विशेष आनंद थयो...ने जिनेन्द्रदेवना तथा कहानगुरुना जयजयकारवडे
जयपुरनगरी गुंजी ऊठी.
बोलीये श्री कहानगुरुदेवकी जय हो.
बोलीये महाप्रतापी जैनधर्मकी जय हो.
कहानगुरुना प्रतापे जैनधर्मनी जाहोजलाली जयपुरमां आजे फरीथी खीली
महान हर्षोल्लासपूर्वक मंगलउत्सव पूर्ण थयो. जयपुरना आंगणे आवो महान उत्सव
उजववा माटे धर्मप्रेमी उदार अने नम्र श्रीमान शेठश्री पूरणचंदजी गोदिकाजीने शतश:
धन्यवाद! तेमने माटे ए गौरवनी वात छे के श्रीमान पं. टोडरमलजी तेमना गोदिका
परिवारमां ज थया हता.
वगेरे ए कर्यो हतो; ने उत्सवनी खुशालीमां तेओ प्रभुजी सन्मुख खूब आनंदथी नाची
ऊठ्या हता. पछी गोदिकाजीए पू. गुरुदेवना सुहस्ते चंद्रप्रभ जिनेन्द्रदेवना प्रतिमाजीने
मंडपमांथी वेदी उपर बिराजमान कराव्या हता.
श्री चैनसुखदासजीए कह्युं के स्वामीजी द्वारा महान पवित्र नदीनो प्रवाह वही रह्यो छे.
तेमना द्वारा जे धर्मप्रभावना थई रही छे ते रोकावानी नथी; तेमां स्नान करनारा जीवो
पवित्र थई जशे. स्वामीजी द्वारा वास्तविक जैनधर्मनी हजी पण विशेष प्रभावना थईने
फरीने भगवान महावीर जेवो समय आवी जाय! –जैनधर्मनुं वास्तविक स्वरूप तेओ
जगत सामे राखे छे. पूर्व–आचार्योए जे वात करी ते ज स्वामीजीनी वाणीमां आवे छे.
–आ रीते पं. चैनसुखदासजीए गुरुदेव प्रत्ये हृदयना सुंदर भावो व्यक्त कर्या हता. आ
उपरांत पं. श्री बंसीधरजीए पण भावभीनी
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वीतरागमार्गमें चल नहीं सकोगे। स्वाधीन चैतन्यका तुम्हारा
चैतन्यशक्ति की वीरता तुम्हारेमें प्रगट करो। इस वीतरागी
वीरताके द्वारा ही मोक्षमार्ग सधेगा।
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राजकोटमां चालवानो आ प्रथम ज प्रसंग होवाथी राजकोटसंघने घणो उत्साह छे.
आ शिक्षण वर्गमां लाभ लेवा माटे जैनविद्यार्थी भाईओने आमंत्रण छे.
पधारवा विनंती छे.