Atmadharma magazine - Ank 281
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ३८ : आत्मधर्म : फागण : २४९३
लिखित शास्त्रो पेक करीने विमानमां साथे लई लीधा. विमानमां वजन जोके वधी जतुं
हतुं तेथी विमानी शरूआतमां तो आनाकानी करतो हतो, पण पछी तो क्षणभरमां
विमान जोधपुर कई रीते पहोंची गयुं–तेनुं विमानीने पण आश्चर्य थयुं. शरूमां आ
सेंकडो जिनबिंबो अहींना बीजा जिनमंदिरमां महेमान तरीके बिराजता हता, ते हवे
आदर्शनगरना मंदिरनी वेदीमां बिराजी रह्या छे. तेमना दर्शन करतां, मुलतानवासी
साधर्मी भाईओ ज्यारे ए भगवानने लईने अहीं आव्या हशे ते वखतनी लागणीनुं
अने ते प्रसंगना वातावरणनुं स्मरण थाय छे. आ जयपुरथी पं. टोडरमलजीए जे
मुलतानना साधर्मीभाईओ उपर सहजानंदनी वृद्धिनी भावना सहित अध्यात्मसन्देश
लख्यो ते मुलतानना भाईओ आजे जयपुर आवीने वस्या ने टोडरमलजीना
द्विशताब्दि उत्सवमां भाग लेवा लाग्या, तथा तेमनी विनंतीथी गुरुदेवे तेमना
आदर्शनगरमां (टोडरमलजीनी चिठ्ठि उपर) प्रवचन कर्युं. प्रवचनमां पांच छ हजार
श्रोताजनोनी भीड हती ने धार्मिक मेळा जेवुं वातावरण हतुं. गुरुदेवे स्वानुभवनुं
स्वरूप अने ते वखतना निर्विकल्प आनंदनो महिमा समजाव्यो हतो. तथा अनुभवनी
कणिका जाग्ये सर्व गुणोमां शुद्धता थवा मांडे छे–ते खास समजाव्युं हतुं. मुलतानवासी
भाईओ बहु प्रसन्न थया हता. गुरुदेवनी मंगल छायामां जयपुर–सोनगढ ने
मुलतानना साधर्मीओनुं संमेलन जोईने हृदयमां हर्ष–वात्सल्य जागता हता. अहींनुं
मंदिर भव्य अने दर्शनीय छे. आदर्शनगरना मुलतानवासी भाईओ तरफथी अध्यक्षे
गुरुदेवनो उपकार मानतां कह्युं हतुं के आदर्शनगरमां अध्यात्मनो संदेश संभळावीने
आपे अमने साचा आदर्शजीवननो मार्ग देखाड्यो छे, ते मार्गे चालीने अमे साचो
आदर्श अंगीकार करीए एवी भावना छे. प्रवचन पछी वेदी–कळश–ध्वजशुद्धि ईन्द्रोद्वारा
तेमज पू. बेनश्रीबेनना सुहस्ते थई हती.
रात्रे किशनगढनी वीरसंगीतमंडळीना भाईओए “सीताजीनी अग्निपरीक्षा”
संबंधी एक सुंदर धार्मिक नाटक कर्युं हतुं. शास्त्राधारे तैयार थयेल नाटकनुं आलेखन
तथा सीनसीनेरी अने साजसजावट घणा सरस हता. सीताजीनो वनवास, वनमांथी
रामचंद्रजी उपर सीताजीनो धार्मिकसन्देश, लवकुशनुं बाल्यजीवन, सीताजीनी
अग्निपरीक्षा ने कमळनी रचना वगेरे वैराग्यभर्या द्रश्यो अने संवादो सहित साडाचार
कलाक सुधी एकधारुं नाटक चाल्युं हतुं. सीताजीना जीवनप्रसंगो जोतां मुमुक्षुने जीवनमां
वैराग्य अने धैर्य तथा धर्मद्रढतानी प्रेरणाओ मळती हती. नाटकथी प्रसन्न

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: फागण : २४९३ आत्मधर्म : ३९ :
थईने अनेक जिज्ञासुओए मंडळीने रकमोनी भेट आपी हती; अने धर्मसंस्कारनी
आवी प्रवृत्ति विकसाववा जेवी छे एम सौने लागतुं हतुं. आ नाटक माटे किशनगढनी
संगीतमंडळीने तथा तेना कार्यकरोने धन्यवाद!
फागण सुद बीज (ता. १३ मार्च) आजे उत्सवनो मुख्य दिवस हतो.
सोनगढमां सीमंधरप्रभुनी प्रतिष्ठानो वार्षिक दिवस आजे हतो, ने जयपुरमां पण
सीमंधरप्रभुनी प्रतिष्ठा आजे थाय छे. प्रथम सवारमां शहेरना मंदिरमां कलश तथा
ध्वजारोहण थयुं. श्रीमान पं. टोडरमलजी आ जिनमंदिरमां शास्त्रसभा करता हता. आ
मंदिर उपर कलश–ध्वज लगभग २०० वर्षथी चड्या न हता, आजे बसो वर्षे कलश–
ध्वज चडता होवाथी सौने घणो हर्षोल्लास हतो. पू. गुरुदेव पण ते प्रसंगे उपस्थित
हता. पांच–छ हजार भक्तोजनोना हर्ष ने जयजयकार वच्चे मंदिर उपर कळश तथा
ध्वज शोभी ऊठ्या. आ प्रसंगे मंदिरजीमां शास्त्रोनी हस्तलिखित प्रतोनुं प्रदर्शन हतुं–
जेमां पं. श्री टोडरमल्लजीनी स्वहस्तलिखित मोक्षमार्गप्रकाशक वगेरे प्रतो, तेमज पं.
सदासुखदासजी, पं. जयचंदजी वगेरे विद्वानोनी पण हस्तप्रतो हती; आ उपरांत सचित्र
भक्तामर–स्तोत्रनी प्रत हती. मंदिरमां कलश अने ध्वजारोहण पछी गुरुदेवनुं प्रवचन
पण त्यां ज हतुं. पं. श्री टोडरमल्लजी–लिखित मोक्षमार्गप्रकाशकमांथी, “मोक्षमार्ग एक
ज छे, मोक्षमार्ग बे नथी”–ए विषय उपर गुरुदेवे अद्भुत प्रवचन करीने स्वाश्रित
मोक्षमार्गनुं स्वरूप स्पष्ट समजाव्युं हतुं. शहेरमां पहेलीवार प्रवचन थतुं होवाथी हजारो
माणसो प्रवचन सांभळवा उमट्या हता, मंदिर तथा आसपासना चोक चिक्कार भराई
गया हता. दिल्हीना राजा टोयझवाळा भाईश्री कैलासचंदजी पण उत्सव प्रसंगे
गुरुदेवना परिचयथी खूब प्रभावित थया हता.
प्रवचन पछी तरत टोडरमल–स्मारकभवने आव्या. ने शेठश्री पूरणचंदजी
गोदिकानी विनंतीथी पू. गुरुदेवे स्मारकभवननुं उद्घाटन कर्युं. आ प्रसंगे शेठश्री
गोदिकाजीने घणो ज उल्लास हतो. अजमेरना शेठश्री भागचंदजी सोनी पण आव्या
हता. हजारो भक्तोना हर्षनाद वच्चे गुरुदेवे भवननुं उद्घाटन कर्युं के तरत होल
चिक्कार भराई गयो हतो; ने पू. गुरुदेवे मंगल प्रवचन कर्युं हतुं. मंगल प्रवचनमां
नमः
समयसाराय द्वारा स्वानुभूतिनी क्रियानुं स्वरूप समजाव्युं हतुं. तेम ज प्रवचनसार गा.
८०–८१–८२ ने याद करीने, तीर्थंकरो केवा मार्गे मोह क्षय करीने

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: ४० : आत्मधर्म : फागण : २४९३
मोक्ष पाम्या ने जगतने पण केवो मार्ग उपदेश्यो–ते वात समजावी हती. तथा मोक्षमार्ग
प्रकाशकमांथी बे नयोनुं स्वरूप, बे नयोना अर्थ समजवानी रीत, अने यथार्थ
वस्तुस्वरूप कई रीते समजवुं–ते संबंधी विवेचन कर्युं हतुं. प्रवचन पछी श्री
जिनेन्द्रभगवाननी भक्ति पण त्यां स्मारकभवनमां ज थई हती. त्यारपछी
स्मारकभवनना चैत्यालयमां भगवान सीमंधरप्रभुनी प्रतिष्ठा थई हती. अहा,
प्रभुजीनी प्रतिष्ठा प्रसंगे शेठ पूरणचंदजी गोदिका अने तेमनो परिवार, तथा जयपुरना
मुमुक्षुओ तेम ज सौराष्ट्र–गुजरातना मुमुक्षुओ हर्षोल्लासथी नाची ऊठ्या हता.
गुरुदेवना सुहस्ते सीमंधरनाथनी प्रतिष्ठा देखीने शेठ पूरणचंदजी तो हाथमां चामर
लईने उल्लासथी नाची ऊठ्या हता. प्रभुजीनी प्रतिष्ठा शेठ गोदिकाजीए तथा तेमना
सुपुत्रोए करी हती. आ समस्त उत्सवनुं खर्च, तेमज स्मारकभवननुं बधुं खर्च श्री
गोदिका परिवार तरफथी (–एकला तरफथी) करवामां आव्युं हतुं. तेमनी आटली
उदारता तथा आवी नम्रता, धार्मिक प्रेम ने उत्साह–ते प्रशंसनीय छे; गुरुदेव पण तेनी
प्रशंसा करता हता. अहा, अमारा आंगणे सीमंधरनाथ भगवान पधार्या–एवा
अंतरंग उमंगथी सीमंधरभगवाननी प्रतिष्ठा थई. प्रतिष्ठा वखतनो हजारो भक्तोनो
हर्षोल्लास हैयामां समातो न हतो. प्रभुजीनी प्रतिष्ठा पछी कलश तथा ध्वजारोहण थयुं,
तथा जिनवाणीमाता समयसारनी पण स्थापना गुरुदेवना सुहस्ते थई; पछी आ ज
दिवसे बपोरे गोदिकाजीना शहेरना चैत्यालयमां पण जिनेन्द्रभगवाननी प्रतिष्ठा थई.
बपोरनुं प्रवचन तथा भक्ति स्मारकभवनमां थया हता.
ते सर्वे जिनेन्द्रोने तथा जिनवाणीमाताने नमस्कार!
श्री पंडित टोडरमलजी–स्मारकभवन १०प×६प फूटनुं घणुं विशाळ, वच्चे
थांभला वगरनुं छे. भवननी बंने बाजु उपर–नीचे ३४ कमरा छे. नीचेना एक
कमरामां सीमंधरस्वामीनुं चैत्यालय छे. आधुनिक सुविधा सहित स्मारकभवन
सुशोभित बन्युं छे, ने दीवालो उपर ऐतिहासिक चित्रो शोभे छे.
पं. श्री टोडरमलजीने बसो वर्ष पूर्ण थता होवाथी टोडरमलजी–द्विशताब्दि
महोत्सव पण उजववामां आव्यो हतो. ते द्विशताब्दि महोत्सवनुं उद्घाटन पण आजे
रात्रे थयुं हतुं.
मंगलमय मंगलकरण वीतरागविज्ञान।
नमों ताहि जातें भये अरहन्तादि महान।।

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: फागण : २४९३ आत्मधर्म : ४१ :
मोक्षमार्गप्रकाशकमां मंगळिकनो आ श्लोक छे; पं. कैलाशचंद्रजीए ते श्लोक
बोलीने उत्सवनुं मंगलाचरण कर्युं. तथा शेठश्री शांतिप्रसादजी साहुने अध्यक्षस्थाने
स्थापवामां आव्या. माननीय प्रमुखश्री नवनीतलालभाई झवेरीए उत्सवनुं उद्घाटन
करतां पं. श्री टोडरमलजी प्रत्ये श्रद्धांजलि अर्पण करी तेम ज गुरुदेव द्वारा जे महान
प्रभावना थई रही छे तेनो महिमा प्रगट कर्यो. पछी “श्री टोडरमल–स्मारिका” नुं
प्रकाशन थयुं, १प० पृष्ठनी स्मारिका उत्सव–कमिटिना अध्यक्ष शेठश्री पूरणचंदजी
गोदिकाए गुरुदेवने समर्पण करीने तेनुं उद्घाटन कर्युं हतुं. तथा ‘टोडरमल–ग्रंथमाळा’
ना केटलाक पुस्तकोनुं पण प्रकाशन करीने ते ग्रंथमाळानुं उद्घाटन करवामां आव्युं हतुं,
ग्रंथमाळाना पहेला पुष्परूपे पं. टोडरमलजीना मोक्षमार्गप्रकाशकनी ११००० प्रत
प्रकाशित थई हती. ते उपरांत जयपुर (खानिया) तत्त्वचर्चाना बे पुस्तको तथा
‘अध्यात्मसन्देश’–पं. टोडरमलजीनी रहस्यपूर्ण चिठ्ठि उपरना पू. गुरुदेवना प्रवचनोनुं
पुस्तक वगेरे प्रकाशनो प्रगट थया हता. गुरुदेवे मंगलआशीर्वादरूपे ‘मंगलमय
मंगलकरण वीतराग विज्ञान’–ए श्लोकनो अर्थ करतां कह्युं के वीतरागी विज्ञान ते
मंगळरूपे छे, ने ते मंगळनुं कारण छे. भूतार्थस्वभाव आत्मा मंगळरूप छे, ते राग
वगरनो छे, तेना आश्रये सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान प्रगट करवा ते वीतरागीविज्ञान छे, ने ते
मंगळरूप छे. आचार्यदेव समयसारनी पांचमी गाथामां कहे छे के स्वसंवेदनरूप मारो जे
आत्मवैभव प्रगट्यो छे तेना वडे हुं एकत्वरूप शुद्ध आत्मा देखाडुं छुं, ते तमे तमारा
स्वानुभववडे प्रमाण करजो. आवा शुद्धआत्माने वीतराग विज्ञानवडे जाणवो–श्रद्धामां
लेवो ते मंगळमय छे; ने तेने माटे सन्तोना आशीर्वाद छे. गुरुदेवनुं भावभीनुं
आशीर्वादआत्मक प्रवचन सांभळीने सौने घणी प्रसन्नता थई. जयपुर–उत्सवमां
ईन्दोरना पं. श्री बंसीधरजी सिद्धांतशास्त्री, पं. श्री नाथुलालजी, तेम ज पं. श्री
कैलाशचंद्रजी, पं. श्री फूलचंदजी, पं. श्री जगन्मोहनलालजी वगेरे अनेक विद्वानो आव्या
हता, जयपुरना पं. श्री चैनसुखदासजी पण उत्सवमां भाग लेता हता; ने दरेक
विद्वानोए उत्सवसंबंधी पोतानी प्रसन्नता व्यक्त करीने पं. श्री टोडरमलजी प्रत्ये तथा
पू. गुरुदेव प्रत्ये श्रद्धांजलि अर्पण करी हती. अध्यक्षस्थानेथी प्रवचन करतां जैन
समाजना आगेवान श्रीमान् साहु शांतिप्रसादजी जैने पण टोडरमलजीना जीवन प्रत्ये
अंजलि आपीने गुरुदेव द्वारा तेमनो जे प्रचार ने जैनधर्मनी प्रभावना थई रहेल छे ते
प्रत्ये प्रसन्नता व्यक्त करीने अभिनंदन तथा श्रद्धांजलि आपी हती. विशेषमां,
गुरुदेवना सान्निध्यमां भगवाननी प्रतिष्ठानो तथा स्मारक–

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: ४२ : आत्मधर्म : फागण : २४९३
भवनना उद्घाटननो आवो भव्य आनंदकारी उत्सव उजवायो तेनी खुशालीमां शेठश्री
पूरणचंदजी गोदिकाए टोडरमल–ग्रंथमाळामां रूा. प१,१११ (एकावन हजार एकसो
अगियार) जाहेर कर्या हता. आ उपरांत रूा. प००१) भाईश्री नवनीतभाई झवेरी
तरफथी जाहेर करवामां आव्या हता. बीजा सेंकडो भाईओए ग्रंथमाळाना फंडमां रकमो
जाहेर करी हती. अगाउ ४०,००० जेटली रकमनुं फंड थयुं हतुं आम कुल सवा लाख रूा.
उपरांत फंड थई गयुं हतुं. आ सिवाय उत्सव दरमियान हाथी वगेरेनी अनेकविध
उछामणीओमां जे आवक थई ते बधी पण ग्रंथमाळाना फंडमां लेवानुं जाहेर थयुं हतुं–
आम साहित्यप्रचार माटेनी एक महान भूमिका रचाई हती; ने भविष्यमां साहित्यक्षेत्रे
आ ग्रंथमाळा घणुं मोटुं काम करशे–एवी आशा छे.
फागण सुद त्रीजना दिवसे द्विशताब्धि–उत्सवनो कार्यक्रम चालु रह्यो हतो. बपोरे
शांतियज्ञ थयो हतो; पू. गुरुदेव आजे खानियाजीना जिनमंदिरोमां दर्शन करवा गया
हता. पहाडी उपर जवानो मोटररस्तो घणो विकट हतो. चालीने जवानो रस्तो सुगम
छे. नीचे बे जिनमंदिरो छे, तथा पहाड उपर पण मंदिर छे. रात्रे हिंमतनगरना
प्रतिष्ठा–महोत्सवनी फिल्मनुं प्रदर्शन तेमज विद्वानोना भाषण थया हता. फिल्ममां
हेलिकोप्टरद्वारा जिनमंदिर उपर पुष्पवृष्टि वगेरे द्रश्यो जोतां जनता हर्षित थती हती.
फागण सुद चोथ (ता. १४) सवारे प्रवचनादि कार्यक्रमो थया हता, बपोरे पू.
गुरुदेव अने अनेक यात्रिको पद्मपुरा क्षेत्रे जिनमंदिरमां दर्शन करवा गया हता. अहीं
जमीनमांथी मूलचंद नामना एक बाळकने २० वर्ष पहेलां मळेला पद्मप्रभुना
प्रतिमाजीने पधरावीने एक विशाळ उन्नत मंदिर बंधाई रह्युं छे, जेमां पचीस लाख
जेटला खर्चनो अंदाज छे. आ मंदिरमां अनेकविध कारीगरी तेमज उन्नत घूम्मट छे.
आरसना घूमटनी ऊंचाई ८प फूट जेटली छे ने तेना उपर शिखर थशे त्यारे सवासो
फूट ऊंचाई थशे.
वच्चे सांगानेरमां दशेक प्राचीन जिनमंदिरो छे, तेना पण दर्शन यात्रिकोए कर्या.
ठेर ठेर जिनेन्द्रवैभवना दर्शनथी यात्रिकने आनंद थाय छे, ने आपणा जैनधर्मनुं
प्राचीन गौरव जोईने हर्ष थाय छे. जयपुरमां पण ठेरठेर सुंदर जिनमंदिरो छे–अनेक
प्राचिन जिनालयोना वैभवथी आ जैनपुरी–जयपुरनुं भव्य गौरव छे, जोके

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: फागण : २४९३ आत्मधर्म : ४३ :
सुंदरतानी द्रष्टिए तो आ नगरी भारतमां ने विदेशोमां प्रसिद्ध छे ज, परंतु धार्मिक
द्रष्टिए जैनोना वैभवसंपन्न मंदिरोए अने अहींना महान टोडरमलजी जेवा अनेक
विद्वानोए आ नगरीने गौरवभरेली प्रसिद्धि आपी छे. करफ्युना कारणे हरवाफरवानो
जे प्रतिबंध हतो ते दूर थवाने लीधे हवे सेंकडो–हजारो यात्रिको आनंदपूर्वक नगरीमां
जईने जिनमंदिरोनां दर्शन करता हता.
फागण सुद ४ नी रात्रे श्री महावीर दि. जैन विद्यालयना बाळक–बालिकाओए
सुंदर धार्मिक कार्यक्रम रजु कर्यो हतो. आ कार्यक्रम घणो ज भावपूर्ण अने कलात्मक हतो.
तेमां पण नाना बाळकोद्वारा पं. श्री टोडरमलजीना जीवनप्रसंगो उपर जे अभिनय
थयो, अने पं. टोडरमलजीनुं पात्र भजवनार बाळके जे सुंदर भावभीनो अभिनय
कर्यो–ते देखीने गुरुदेवने तेमज हजारो दर्शकोने खूब प्रसन्नता थई हती. टोडरमलजीनुं
आ नाटक लखनारने, तेनुं दिग्दर्शन करनारने तथा सफळतापूर्वक ते भजवनारने
धन्यवाद घटे छे. आ कार्यक्रमथी प्रसन्न थईने घणा जिज्ञासुओए पुरस्काररूपे रकमो
जाहेर करी हती.
फागण सुद पांचम–आजे जयपुरमां उत्सवनो छेल्लो दिवस; आजनुं प्रवचन
शहेरमां महावीर पार्कमां (मनिहारोंका रास्तामां) राखवामां आव्युं हतुं. आ लत्तो
जैनोनी खास वस्तीथी भरचक छे अने चोकनी आसपासमां ज पचीस जेटला भव्य
जिनालयो छे. तद्न नजीक नजीकमां आवा भव्य जिनालयो देखीने आश्चर्य थाय छे के
आ नगरीमां जैनोनी जाहोजलाली केटली महान हशे!–एटले ज घणा लोको आने
जैनपुरी कहे छे. शहेरमां प्रवचन होवाथी नगरजनो पण घणी मोटी संख्यामां आव्या
हता ने अनेक विद्वानो सहित दशेक हजार जेटली संख्या थई हती. प्रवचन पछी
जयपुरना ईतिहासमां अभूतपूर्व एवी जिनेन्द्रभगवाननी भव्यविशाळ रथयात्रा
नीकळी हती. रथयात्रानी महानतानो एटला उपरथी ज ख्याल आवी जशे के श्री
जिनेन्द्रभगवानना रथना सारथि तरीके कहानगुरु बेठा हता, अने रथनी आगळ १८
अढार सुसज्जित हाथी उपर धर्मध्वज फरकावता ईन्द्रो बेठा हता. १८ हाथी उपरांत
सुसज्जित ११ ऊंट, घोडेस्वारो, त्रण रथ, बाहुबली प्रभुना तथा टोडरमलजीना मोटा
चित्रो सहित शणगारेली जीपगाडी, अनेक बेन्डवाजां, भजनमंडळीओ वगेरे
ठाठमाठसहित अने वीस–पचीस हजारना जनसमुदाय सहित ज्यारे भव्य रथयात्रा
जयपुर नगरीना त्रिपोलिया बजार अने झवेरी बजार जेवा

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: ४४ : आत्मधर्म : फागण : २४९३
मुख्य रस्ताओ उपरथी पसार थती त्यारे लाखो नगरजनो आश्चर्यथी नीहाळी रहेता
हता. दश दश दिवसनो उत्सवनो उल्लास आजे जाणे भेगो थईने एकसामटो प्रसिद्ध
थयो हतो. करफ्युना कारणे आठ दिवसथी सुमसाम देखाती नगरीमां पचीस हजार
माणसोनुं उल्लासभर्युं ठाठमाठ सहितनुं आवुं जुलुस देखीने, जैनधर्मनो आवो महान
प्रभाव देखीने, अत्यंत हर्षोल्लास थतो हतो के वाह! कहान गुरुनो प्रभाव...भारतमां
अजोड छे. नगरीमां आवेला परदेशी प्रवासीओ पण आ प्रभावशाळी रथयात्रा देखीने
मुग्ध बनी जता हता. रथयात्रा अढी कलाक सुधी नगरीमां फरी हती. राजस्थानी,
गुजराती ने मुलतानी–बधा भक्तोनी भजनमंडळी अत्यंत उल्लासपूर्वक भक्ति करती
हती, ने घणा भक्तो आनंदथी नाची ऊठ्या हता, सौ कहेता–आवी भव्य रथयात्रा कदी
जोई नथी. गुरुदेवना प्रवचनो सांभळीने पंडितो मुग्ध बनता, ने रथयात्रा देखीने पं.
चैनसुखदासजी कहेता हता के आ धर्मप्रभावनानो महान प्रवाह कानजीस्वामी द्वारा
चाल्यो छे ते कोईथी रोकी शकाय तेम नथी. रथयात्रा ज्यारे झवेरी बजारमां आवी
त्यारे तो नगरीना रस्ताओ उभराई गया हता, रस्ताओ ज नहीं परंतु मकानोनी
मोटी अगाशीओ ने अटारीओ पण हजारो माणसोनी भीडथी उभराता हता. दश
दिवसथी करफ्युना प्रतिबंधमां बंधायेली नगरी आजे जाणे मुक्तिनो आनंद माणी रही
हती, सौ कहेता के दशे दिवसनुं साटुं आ एक रथयात्रामां वाळी लीधुं. श्री गोदिकाजी
आजे खूब ज प्रसन्न हता ने हाथी उपर धर्मध्वज फरकावता हता. गुरुदेव पण बे
कलाक सुधी भक्तिभावपूर्वक भगवानना सारथि तरीके रथमां बेठा हता ने भक्तो
आनंदपूर्वक प्रभुजीनो रथ हाथोहाथ चलावता हता. रथयात्रानुं विशेष वर्णन केटलुं
लखाय? केमके–
कल्याणकाळ प्रत्यक्ष प्रभुको लखें जे सुरनर घनें,
तिह समयकी आनंद महिमा कहत क्यों मुखसों बने?
रथयात्रानुं सरघस नगरीमां फरीने रामलीला मेदानमां समाप्त थयुं. मेदानमां
जेवो प्रभुश्रीनो रथ प्रवेश्यो के तरत एकसाथे १८ हाथीओए सूंढ ऊंची करीने सलामी
आपी, ऊंटोए पोतानी सुसज्जित डोक एना करतां पण वधुं ऊंची करीने सलामी
आपी, वाजां एनाथी पण वधु अवाजे गाजी ऊठया, ने हजारो भक्तोना हर्षनादे
आनंदसन्देश आकाशमां पहोंचाडी दीधो. बराबर ए ज वखते कुदरत पण

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: फागण : २४९३ आत्मधर्म : ४प :
जाणे आ आनंदोत्सवमां अमीवृष्टि करीने साथ पुरावती होय तेम आकाशमांथी झरमर
झरमर छांटणां पडवा लाग्या. कुदरतना वातावरणनो आवो आश्चर्यकारी मेळ जोईने
सौने विशेष आनंद थयो...ने जिनेन्द्रदेवना तथा कहानगुरुना जयजयकारवडे
जयपुरनगरी गुंजी ऊठी.
बोलीये श्री जिनेन्द्रभगवानकी जय हो.
बोलीये श्री कहानगुरुदेवकी जय हो.
बोलीये महाप्रतापी जैनधर्मकी जय हो.
कहानगुरुना प्रतापे जैनधर्मनी जाहोजलाली जयपुरमां आजे फरीथी खीली
ऊठी. आखी नगरीमां आजे रथयात्राना प्रभावनी ज चर्चा चालती हती. आम घणा
महान हर्षोल्लासपूर्वक मंगलउत्सव पूर्ण थयो. जयपुरना आंगणे आवो महान उत्सव
उजववा माटे धर्मप्रेमी उदार अने नम्र श्रीमान शेठश्री पूरणचंदजी गोदिकाजीने शतश:
धन्यवाद! तेमने माटे ए गौरवनी वात छे के श्रीमान पं. टोडरमलजी तेमना गोदिका
परिवारमां ज थया हता.
बपोरनुं प्रवचन पं. टोडरमलजी–स्मारकभवनमां थयुं हतुं अने पछी पू.
बेनश्री–बेने भक्ति करावी हती; त्यारबाद श्री जिनेन्द्रदेवनो अभिषेक श्री गोदिकाजी
वगेरे ए कर्यो हतो; ने उत्सवनी खुशालीमां तेओ प्रभुजी सन्मुख खूब आनंदथी नाची
ऊठ्या हता. पछी गोदिकाजीए पू. गुरुदेवना सुहस्ते चंद्रप्रभ जिनेन्द्रदेवना प्रतिमाजीने
मंडपमांथी वेदी उपर बिराजमान कराव्या हता.
रात्रे शेठश्री पूरणचंदजीने समस्त जैनसमाज तरफथी अभिनंदनपत्र समर्पण
करवामां आव्युं हतुं; ते अभिनंदन–समारोह प्रसंगे अध्यक्षस्थानेथी भाषण करतां पं.
श्री चैनसुखदासजीए कह्युं के स्वामीजी द्वारा महान पवित्र नदीनो प्रवाह वही रह्यो छे.
तेमना द्वारा जे धर्मप्रभावना थई रही छे ते रोकावानी नथी; तेमां स्नान करनारा जीवो
पवित्र थई जशे. स्वामीजी द्वारा वास्तविक जैनधर्मनी हजी पण विशेष प्रभावना थईने
फरीने भगवान महावीर जेवो समय आवी जाय! –जैनधर्मनुं वास्तविक स्वरूप तेओ
जगत सामे राखे छे. पूर्व–आचार्योए जे वात करी ते ज स्वामीजीनी वाणीमां आवे छे.
–आ रीते पं. चैनसुखदासजीए गुरुदेव प्रत्ये हृदयना सुंदर भावो व्यक्त कर्या हता. आ
उपरांत पं. श्री बंसीधरजीए पण भावभीनी

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: ४६ : आत्मधर्म : फागण : २४९३
गदगद शैलिथी गुरुदेवनो खूब महिमा प्रसिद्ध कर्यो हतो. पं. कैलाशचंदजी वगेरे
विद्वानोए पण गुरुदेवना प्रभावनो महिमा बताव्यो हतो. तथा शहेरमां करफ्यु
(हरवा–फरवानो प्रतिबंध) जेवी विकट परिस्थिति वखते पण हजारो माणसोथी मंडप
ऊभरातो ने शांतिपूर्वक महोत्सव उजवायो–ते आ लोकोत्तर महान पुरुषनो ज प्रभाव
छे. आवा महान पुरुष ज्यां बिराजता होय त्यां कोई उपद्रव नडी शके ज नहि–वगेरे
घणा प्रकारे महिमा कर्यो हतो. ने गुजरातना जैनबंधुओना प्रेम वगेरेनी प्रशंसा करी
हती.
सभाना अध्यक्ष श्री पं. चैनसुखदासजीए जयपुर–जैनसमाज तरफथी शेठश्री
गोदिकाजीने अभिनंदनपत्र अर्पण करतां तेमना धर्मप्रेमनी, साहित्य प्रचार माटेनी
धगशनी, उदारता–नम्रता वगेरे गुणोनी योग्य प्रशंसा करी हती. एक ज व्यक्ति द्वारा
आवडा महान उत्सवनुं आयोजन करवामां आव्युं होय एवुं भाग्ये ज बनतुं हशे.
अभिनंदनपत्रनो टूंको जवाब आपतां शेठश्री गोदिकाजीए कह्युं के–हुं तो सेवक छुं;
अभिनंदननो खरो अधिकारी हुं नथी परंतु जेमना प्रतापे आ उत्सव उजवायो ते पू.
श्री कहानगुरुदेव ज अभिनंदनना खरा अधिकारी छे; तेथी हुं तेओश्रीनुं अभिनंदन करुं
छुं; मारा उपर तेमनो महान उपकार छे. उत्सवनी पूर्णतामां मंगल आशीर्वादरूपे
गुरुदेवे शुद्धात्माना स्वानुभवनी सुंदर वात संभळावीने कह्युं हतुं के आवो स्वानुभव
करवो ते मंगळ छे.
जय जिनेन्द्र
आ प्रमाणे जयपुर नगरीमां अत्यंत प्रभावशाळी उत्सव उजवायो...ते सर्व
भव्य जीवोनुं कल्याण करो.
(जयपुर ता. १६–३–६७ रात्रे अढी वागे: ब्र. हरिलाल जैन)
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फागण सुद छठ्ठ ता. १७ मार्चना रोज सवारमां भगवान सीमंधरनाथना दर्शन
करीने आनंदोल्लासपूर्वक गुरुदेवे सम्मेदशिखरजी तीर्थ तरफ प्रस्थान कर्युं...साथे ४००
जेटला यात्रिकोना संघे पण प्रस्थान कर्युं. –पहेलो मुकाम ‘महावीरजी’ मां थयो.

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: फागण : २४९३ आत्मधर्म : ४७ :
–: यात्रानो कार्यक्रम:–
जयपुरथी महावीरजी, बयाना, (रात्रे आग्रा, फिरोजाबाद थईने) ईटावा,
कानपुर, अल्लाहाबाद, बनारस, डालमियानगर अने शिरघाट थईने ता. २४ नी
सवारे शिखरजी–मधुवनमां पहोंचशे. ने ता. २९ सुधी त्यां बिराजशे. तीर्थनी
मंगलयात्रा गुरुदेव साथे अष्टाह्निकापर्वना अंतिम दिवसे फागण सुद पूर्णिमा ता. २६
ना रोज थशे. (अगाउ यात्रानी तारीख पचीसमी जाहेर थयेल, तेने बदले ता.
छवीसमी राखवामां आवी छे.)
शिखरजीनी यात्रा पछी पावापुरी वगेरेनी यात्रा तेमज कलकत्ता (चार दिवस),
रांची (बे दिवस) बीजा गामो थई दिल्ही (चार दिवस)–वगेरे कार्यक्रमो नक्की
करवामां आव्या छे.
वीतरागी मोक्षमार्गकी ललकार करते हुए सन्त कहते है
कि अरे, रागको धर्म माननेवाले कायरो! तुम चैतन्यके
वीतरागमार्गमें चल नहीं सकोगे। स्वाधीन चैतन्यका तुम्हारा
पुरुषार्थ कहां चला गया? यदि तुम धर्म करना चाहते हो तो
चैतन्यशक्ति की वीरता तुम्हारेमें प्रगट करो। इस वीतरागी
वीरताके द्वारा ही मोक्षमार्ग सधेगा।
वीतरागी सन्तोंकी ऐसी ललकार सुनके कौन नहीं

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: ४८ : आत्मधर्म : फागण : २४९३
आत्माने साधवानी रीत
दर्शन–ज्ञान–चारित्रवडे आत्मानी आराधनाथी ज सिद्धि थाय छे, ए
छे.
(‘सम्यग्दर्शन’ मांथी)

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* ता. प–२–६७ नी रात्रे उमराळाना भाईश्री अभेचंद रामजीना धर्मपत्नी श्री
शांताबेन भावनगर मुकामे स्वर्गवास पाम्या छे.
* वांकानेरना भाईश्री लालचंद सुंदरजीना धर्मपत्नी श्री व्रजकुंवरबेन पोष वद
बीजना रोज ६९ वर्षनी वये स्वर्गवास पाम्या छे. गुरुदेव प्रत्ये तेमने घणो
भक्तिभाव हतो, अने वांकानेरमां पूजनादि कार्योमां उत्साहथी भाग लेता हता.
* ता. २९–१–६७ ना रोज राणपुरना भाईश्री रायचंद जीवराज खंधार शांताक्रुझ
मुकामे स्वर्गवास पाम्या छे. राणपुर जिनमंदिरना कार्योमां तेमणे उत्साहपूर्वक भाग
लीधो हतो. घणा वर्षोथी तेओ गुरुदेवना परिचयमां हता.
* वासणावाळा बेन नंदुबेन केशवलाल पोषवद १० ना रोज स्वर्गवास पाम्या छे.
तेओने गुरुदेव प्रत्ये भक्तिभाव हतो, तेम ज सोनगढसाहित्यनो पण अभ्यास
हतो.
* ता. १९–२–६७ ना रोज हिंमतनगरमां ज्यारे पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव
उजवाई रह्यो हतो तेमां भाग लेवा ईन्दोरना शेठश्री रतनलाल कस्तुरचंद (उ. व.
प८) तथा रूपचंद पृथ्वीचंद (उ. व. ६०) पण हिंमतनगर आवेला; ता. १९ ना
रोज हिंमतनगरथी वीसेक माईल दूर ईडरना दर्शन करीने, प्रवचनमां तथा
भगवानना आहारदानमां पहोंची जवानी आशाथी जीप गाडीमां झडपभेर
हिंमतनगर तरफ आवी रह्या हता; पांचेक माईल दूर हता त्यां तो सामेथी आवी
रहेला एक मोटा ट्रक खटारा साथेनी अथडामणथी जीवलेण अकस्मात सर्जाई गयो
ने ते बंने भाईओ त्यां ज स्वर्गवास पामी गया. आ अकस्मातना वैराग्य–
समाचार सांभळतां हजारो माणसो स्तब्ध बनी गया; ने बपोरे प्रवचनने बदले
शांतिजापपूर्वक गुरुदेवे अनित्यभावना वांची हती. स्वर्गस्थ बंने भाईओ
ईन्दोरना प्रतिष्ठित वेपारीओ हता ने गुरुदेवना समागममां सोनगढ आवीने
वारंवार लाभ लेता हता; ईन्दोर मुमुक्षुमंडळमां पण तेओ अग्रीम कार्यकरो हता.
ईन्दोरमां पण आ समाचारथी करुणतानी सनसनाटी छवाई गई हती. बंने
भाईओ धार्मिकभावना साथे लईने गया छे अने तेमां आगळ वधीने तेओ
आत्महित साधे–एम ईच्छीए छीए. जीवननी आवी क्षणभंगुरताना उदाहरणथी
बीजा जिज्ञासुओए हरक्षणे जीवनमां जागृत रहेवा जेवुं छे.
* फागण सुद १ ता. १२–३–६७ ना रोज जामनगरमां भाईश्री खेतशीभाई
पोपटभाईना सुपुत्र श्री भगवानजीभाईनुं हार्टफेईलथी अवसान थयुं छे.
जिनशासनना शरणे तेओ आत्महित साधे एम ईच्छीए छीए.

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ATMADHARMA Regd. No. G. 182
राजकोटमां–
जैन विद्यार्थीओनो शिक्षण वर्ग
उनाळानी रजाओ दरम्यान जैन–विद्यार्थीओ माटे दर वर्षे सोनगढमां धार्मिक
शिक्षण वर्ग चाले छे. जेमां सेंकडो विद्यार्थीओ धर्म–संस्कारनो लाभ ल्ये छे.
आ वखते वैशाख सुद ३ ना रोज पू. गुरुदेव राजकोट पधारवाना होवाथी
शिक्षण वर्ग पण त्यां ज पू. गुरुदेवनी छत्रछायामां चालशे. आवो धार्मिक शिक्षण वर्ग
राजकोटमां चालवानो आ प्रथम ज प्रसंग होवाथी राजकोटसंघने घणो उत्साह छे.
शिक्षण वर्ग ता. १३–प–६७ ने शनिवार–वैशाख सुदी चोथथी शरू थशे अने ता.
१–६–६७ ने गुरुवार–वैशाख वद ९ सुधी २० दिवस चालशे. तो राजकोटनां आंगणे
आ शिक्षण वर्गमां लाभ लेवा माटे जैनविद्यार्थी भाईओने आमंत्रण छे.
रहेवा तथा जमवानी व्यवस्था राजकोटसंघ तरफथी करवामां आवशे. आ वर्ग
मात्र पुरुषवर्गना जैनो माटे ज छे.
आ उपरांत राजकोटना समवसरणनी अने मानस्तंभनी प्रतिष्ठानो वार्षिक–
उत्सव पण वैशाख सुद ११ ना रोज पू. गुरुदेवनी छत्रछायामां उजवाशे. तो सौने
पधारवा विनंती छे.
लि.
ठे. पंचनाथ प्लोट, राजकोट
श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती प्रकाशक अने मुद्रक:
मगनलाल जैन, अजित मुद्रणालय सोनगढ (सौराष्ट्र)