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आकाशमार्गने प्रकाशित करता करता पोताना स्वर्गमां चाल्या गया. ते ज वखते
आसन डोलवाथी ईन्द्र वगेरे देवोए भगवानना तपकल्याणकनो अवसर जाण्यो ने सौ
ते उत्सव करवा अयोध्यानगरीमां आवी पहोंच्या. ने क्षीरसमुद्रना जळथी भगवाननो
महाअभिषेक कर्यो. भगवान ऋषभदेवे भारतवर्षना साम्राज्य पर भरतनो अभिषेक
कर्यो ने बाहुबलीने युवराजपद आप्युं.
बंने हर्षविभोर बन्या हता. एककोर तो भगवान कम्मर कसीने राजपाट त्यागी
तपसाम्राज्य माटे कटिबद्ध थया हता ने बीजी तरफ बंने राजकुमारोने पृथ्वीनुं राज्य
सोंपातुं हतुं. एक तरफ तो देवो भगवानना वनगमन माटे पालखी तैयार करता हता,
बीजी तरफ कारीगरो भरतना अभिषेक माटे मंडप अने महेल बनावता हता; एक
तरफ तो ईन्द्राणी रंगबेरंगी रत्नोना चोक पूरती हती, बीजी तरफ यशस्वती अने
सुनंदादेवी आनंदपूर्वक रंगावलीनी रचना करती हती. दिग्कुमारीदेवीओ मंगळद्रव्यो
लईने ऊभी हती..चारेकोर पडघम वगेरे मंगल वाजांना घमकार थई रह्या हता. आ
रीते करोडो देवो ने करोडो मनुष्यो एकसाथे बे उत्सव उजवी रह्या हता.
अयोध्यानगरीमां चारेकोर आनंद–आनंद फेलाई गयो हतो. बे पुत्रोने राज्यभार
सोंपीने, तथा बाकीना ९९ पुत्रोने पण राज्यनो अमुक भाग आपीने, दीक्षा माटे
भगवान एकदम नीराकुळ थई गया हता; संसार संबंधी कोई चिन्ता तेमने रही न
हती.
पोताना हाथनो सहारो आप्यो हतो. भगवान ऋषभदेव पहेलां तो परम विशुद्धता पर
आरूढ थया हता ने पछी पालखी पर आरूढ थया हता, तेथी ते समये भगवान एवा
लागता हता – जाणे के गुणस्थानोनी श्रेणी चडवानो ज अभ्यास करता होय.
भक्तिपूर्वक भगवाननी पालखी लईने प्रथम तो राजाओ सात पगलां चाल्या, पछी
विद्याधरो आकाशमार्गे सात पगलां चाल्या, ने त्यारबाद देवो अत्यंत हर्षपूर्वक
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ए प्रसंगे देवोना अधिपति ईन्द्रे पोते पण भगवाननी पालखी खभे लीधी हती.
भगवान पालखीमां आरूढ थया ते वखते ईन्द्रना करोडो दुदुंभी वाजां वागता हता.
अद्भुत वैभवथी शोभता भगवान ऋषभदेव आखा जगतने आनंदित करता थका
अयोध्यापुरीनी बहार नीकळ्या...ते वखते वैराग्य भरेला तेमना नेत्रोनी चेष्टा अत्यंत
प्रशांत हती; असंग–वैराग्यदशाने शोभे एवी तेमना अंग–उपांगनी चेष्टा हती.
अमने दर्शन देवा पधारजो. प्रभो, आप महा उपकारी छो, हवे अमने छोडीने बीजा
कोनो उपकार करवा आप जई रह्या छो?
भगवाननी एवी ज कोई क्रीडा होय! अथवा, पहेलां तेमनो जन्मोत्सव करवा माटे
ईन्द्रो तेमने मेरु उपर लई गया हता ने पाछा आव्या हता,–एवो ज कोई प्रसंग फरीने
आपणा महाभाग्यथी बनतो होय!–तो ते कोई दुःखनी वात नथी. अहा, भगवानना
पुण्य कोई महान, वचनातीत छे. आवा आश्चर्यकारी द्रश्यो अमे कदी जोया नथी.
भगवान ज्यारथी आ पृथ्वी उपर अवतर्या छे त्यारथी अवारनवार देवोनुं आगमन
थया ज करे छे.
प्रवेश करी रह्या छे. भगवाननी आ यात्रा तेमने सुख देनारी छे. तेओ वनमां रहेशे तो
पण सुख तेमने स्वाधीन छे. भगवाननो जय हो...भगवान विजय पामो...ने फरी
वहेला पधारीने अमारी रक्षा करो. आ रीते दीक्षा प्रसंगना जाणकार तेमज अजाण बधा
लोको भगवाननी स्तुति करता हता. तथा महात्मा भरत सोनुं हाथी घोडा वगेरेनुं
महान दान देता हता. यशस्वती, सुनंदा वगेरे स्त्रीओ तथा मंत्रीगण भगवाननी
पाछळ पाछळ जता हता ने तेमनी आंखमांथी आंसु वहेता हता. महाराजा नाभिराज
तथा माताजी मरुदेवी पण
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रह्या हता. सम्राट भरत अने तेना भाईओ पण मोटी विभूति लईने भगवाननी
पाछळ जता हता. भगवान आकाशमां एटले ऊंचे गमन करता हता के ज्यांथी लोको
तेमने बराबर जोई शके.
दीक्षाकल्याणक जोवा माटे नीचे ऊतरी होय! एना पर आश्चर्यकारी मंडप अने रत्नोनी
रंगोळी हती. ए शिला जोतां, जन्माभिषेक वखतनी पांडुकशिलानी शोभा भगवानने
याद आवी. भगवान जगतना बंधु होवा छतां स्नेहबंधनथी रहित हता. दीक्षा पहेलां
भगवाने देव–मनुष्योनी सभाने योग्य उपदेशवडे संबोधीने प्रसन्न करी. अने दीक्षा
माटे पहेलां जो के बंधुवर्गने पूछ्युं हतुं, तोपण अत्यारे फरीने गंभीरवाणीथी पूछीने
संमति लीधी.
बहिरंग परिग्रह छोडी दीधो. आत्मानी, देवोनी अने
सिद्धोनी साक्षीपूर्वक समस्त परिग्रह छोडीने भगवान
मुनि थया, पूर्वदिशासन्मुख पद्मासन लगावी,
सिद्धपरमेष्ठीने नमस्कार करीने, पंचमुष्ठिथी केशलोच
कर्यो. दिगंबर रूपधारक भगवान जिनदीक्षा लईने समस्त
जन्म्या ते ज तिथिए, फागण वद नवमीनी सांजे भगवाने मुनिदशा धारण करी.
तुं जेटलो अंदर समा, तेटली तारी अधिकता छे.
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वालीडा मारा! तुं चूकीश मा!
आ अवसर तुं चूकीश मा!
साथीडा मारा तुं चूकीश मा!
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नगरमां वसवुं–ते मंगळ छे.
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ज्ञानीओ ‘मनुष्य’ नथी कहेता, ए तो ‘
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शांतिनी सुगंध लईने बीजे दिवसे जयपुर–प्रतिष्ठा ने सम्मेदशिखरजी तीर्थनी यात्रा
माटे मंगल प्रस्थान कर्युं. (ता. २२ फेब्रुआरी) सवारमां ‘भावनगर मां प्रवेश कर्यो,
भक्तोए भावभीनुं स्वागत कर्युं. भावनगरना मंगलप्रवचनमां गुरुदेवे कह्युं के
आत्माना निर्मळ भावोरूपी जे नगरी, तेमां प्रवेश करवो ते मंगळ छे; ने एवा
चैतन्यभावनी जेने खबर नथी ते तो भान वगरना छे. भावनगरमां दिगंबर
जिनमंदिर प्राचीन छे, त्यां दर्शन–पूजन कर्या. तेमज मंडपमां (दशाश्रीमाळीना वंडामां)
पण सोनगढथी सीमंधरप्रभुजीने लावीने बिराजमान कर्या हता. तेमनी सन्मुख दर्शन–
पूजन–भक्ति थता हता, तथा रत्नत्रय–पूजन पण थयुं हतुं. सोनगढना सीमंधरनाथनी
पूजा वखते एम थतुं के, भक्तोना हृदयना भगवान तो भक्तोनी साथे ज होय ने!
(आ सीमंधरप्रभुनी प्रतिमा पू. बेनश्री–बेन तरफथी प्रतिष्ठित थयेल छे.) अहीं सं.
१९८६ मां (एटले ३७ वर्ष पहेलां) गुरुदेव पधारेला, ते वखतना केटलाय संस्मरणो
गुरुदेव ताजा करता हता; तेमां खास करीने पहेलवहेला एक दिगंबर साधुने जोवानो
प्रसंग अहीं बनेलो; तथा ते वखते गुरुदेवना प्रवचनो सांभळीने, पू. श्री चंपाबेन
(जेओ ते वखते मात्र १६–१७ वर्षना हता) तेओ घरे जईने ते प्रवचनो लखी लेता,
ने गुरुदेवे ते बेनने पहेलवहेलां अहीं जोया, जोतां ज तेमने लाग्युं के आ बेन कोई
अलौकिक लागे छे! –आ प्रसंगने गुरुदेव घणीवार खूब भावपूर्वक याद करे छे. ने
गुरुदेवनो ३७ वर्ष पहेलांनो ते आभास पू. बेनश्री चंपाबेने संपूर्ण सत्य सिद्ध कर्यो छे.
आवा तो बीजा घणाय पवित्र स्मरणो गुरुदेवने जागता हता. –ए भावनगरनी
विशेषता छे.
गुरुदेवना प्रवचननो सार हंमेश प्रगट करतुं हतुं. शेठश्री वृजलालभाईए गुरुदेव
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वीतरागधर्मनी प्रभावना करनारा अने अनादिना मिथ्यात्वनुं झेर उतारी नांखनारा
आ सन्तने तमे ओळखो, अने तेमनो लाभ ल्यो; अने न ओळखी शको तोपण तेनुं
बहुमान करो, अवर्णवाद तो न ज करो. चारे दिवस उत्साहपूर्वक हजारो माणसोए
प्रवचननो लाभ लीधो हतो. अने रविवार ता. २६ ना रोज जिनेन्द्रभगवानना दर्शन
करीने जयजयकारपूर्वक अमदावाद तरफ प्रस्थान कर्युं.
साथेना तीर्थप्रवासथी भक्तोने आनंद थतो हतो. आगळ जुओ तो सन्त, पाछळ
जुओ तो सन्तो, –एवा सन्तो साथेना प्रवासथी कोने आनंद न थाय? अमदावादमां
बपोरे ३ थी ४ सो जेटला मुमुक्षु भाई–बहेनो आवेला. तेमनी समक्ष विविध तत्त्वचर्चा
गुरुदेवे करी हती, तथा श्रीमद् राजचंद्रजीनी खास शैली उपर प्रकाश पाडयो हतो. सांजे
अमदावादथी प्रस्थान करीने हिंमतनगर रात रोकाया हता. फरीने महावीरादि
भगवंतोनां दर्शन कर्या, उपरना भागमां शांतिनाथ प्रभुजी समीपनुं उपशांत
वातावरण चित्तमां शांति प्रेरतुं हतुं. हजी तो पांच दिवस पहेलां ता. २० मी ए
पुष्पवृष्टि करता हेलिकोप्टरना गगनभेदी अवाजथी अने २०–२प हजार माणसोना
हर्षनादथी गाजतुं आ महावीरनगर आज केटलुं बधुं शांत देखातुं हतुं! एवा शांत
वातावरणमां रात्रे भक्ति तथा चर्चा चाली. सवारमां प्रभुजीना दर्शन करीने आबु
तरफ प्रस्थान कर्युं. वच्चे ईडर आव्युं–श्रीमद् राजचंद्रजीए ज्यां आत्मसाधना करी एवा
आ ईडरना पहाडोने जोतां तेमनुं जीवन स्मरणमां आवतुं हतुं. आ पहाडने अर्ध
प्रदक्षिणा करीने आगळ जतां पहाडी रस्ते प्रवास करीने गुजरातनी हदमांथी
राजस्थाननी हदमां प्रवेश्या, ने दस वागे आबु पहोंच्या...स्वागत पूर्वक जिनमंदिरमां
दर्शन कर्या. बपोरे टाउनहोलमां प्रवचन हतुं. तेमां, मोक्षने साधवो ते ज मानवदेहनी
विशेषता छे–ए वात समजावी हती. सांजे आबुथी प्रस्थान करीने शिरोही आव्या, ने
बीजे दिवसे सवारमां शिवगंज थई पाली गामे आव्या. गुरुदेवे जेमनी पासे
स्थानकवासी–दीक्षा लीधी हती ते हीराचंदजी महाराजनुं आ वतन हतुं तेथी ते संबंधी
स्मरणो गुरुदेव याद करता हता... हीराचंदजी महाराज गुरुदेवने घणीवार
‘जैनशासननो स्थंभ’ थवानुं कहेता; अने एमनी ए आगाही
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शेठनो विशाळ आश्रम छे. त्यारबाद नगरीमां प्रवेशीने सुखदेव आश्रममां अनेक
जिनबिंबोना दर्शन करतां खूब आनंद थयो. वीस लाख रूा. ना खर्चे थयेल शेठ
वछराजजी अने तेमना भाईओए बंधावेल आ मनोरम्य विशाळ रचनामां प्रवेशतां
वेंत ज चोकमां ऊभेला ध्यानस्थ बाहुबली भगवान सौनुं ध्यान खेंचे छे ने अद्भुत
जीवनआदर्श देखाडीने मुमुक्षुने तृप्त करे छे. पछी मानस्तंभ ओळंगीने मंदिरजीमां
प्रवेशतां ज सुवर्णप्रतिमा जेवी एक भव्य प्रतिमा आपणी आंखद्वारा झडपथी हृदयमां
प्रवेशी जाय छे–ए छे भगवान आदिनाथ! हर्षथी आदिनाथप्रभुना दर्शन करीने जराक
आसपासमां नजर करतां ज एकबाजु भगवान भरतेश्वर ने बीजी बाजु भगवान
बाहुबलीना विशाळ प्रतिमाजीना दर्शन थाय छे.–आम गुरुदेव साथे पिता–पुत्रोनी
त्रिपुटीनां दर्शन करतां पू. बेनश्रीबेन वगेरे सौने घणो आनंद थयो. घणा आनंदथी
दर्शन–पूजन कर्या. गुरुदेवनो उतारो पण आ आश्रममां ज हतो. गुरुदेव लाडनु
पधारवाथी श्री वछराजजी शेठने तेमज मनफूलादेवीने घणो हर्षोल्लास थयो, ने तेओ
खूब लागणीवश बनी गया हता. गुरुदेवे सिद्धोनी स्थापनानुं सुंदर मंगलाचरण
संभळाव्युं, मंगलाचरण बाद भव्य जिनमंदिरमां पू. बेनश्री–बेने आदिनाथ भगवाननुं
समूहपूजन भावपूर्वक कराव्युं. भक्तोए बाहुबलिप्रभुनो मस्तकाभिषेक पण कर्यो.
गुरुदेव साथे बडा मंदिरजीमां तथा बीजा मंदिरोमां दर्शन करतां आनंद थयो. बडा
मंदिरमां प्राचीन प्रतिमाओ तेमज कारीगरीवाळुं तोरणद्वार खास दर्शनीय छे. आ
तोरण अनुसार ज बीजुं तोरण आरसनुं लगभग वीस हजार रूा. ना खर्चे करावेलुं छे.
अहीं २७ वखत तो पंचकल्याणक–महोत्सव थया छे–ए आ नगरीनुं एक गौरव छे.
अने सुखदेव आश्रमनी विशाळता, शांत वातावरण अने भव्यजिनबिंबोना दर्शन–ते
आ नगरीना गौरवमां ओर वधारो करे छे. वारंवार जिनेन्द्रभगवंतोना दर्शन करतां
दिल तृप्त थतुं हतुं. बपोरे प्रवचनमां पण हजार उपरांत माणसो आव्या हता. प्रवचन
पछी तेमज रात्रे जिनमंदिरमां भक्ति थई हती. रात्रे सेंकडो वीजळी प्रकाशना
झगझगाट वच्चे जिनमंदिरनी ने बाहुबलीभगवाननी शोभामां ओर वृद्धि थाय छे.
बीजे दिवसे जिनेन्द्रदेवनी रथयात्रा सहितनुं भव्य स्वागतसरघस आखी नगरीमां फर्युं
हतुं. बपोरे प्रवचन पछी लाडनु–जैनसमाज तरफथी गुरुदेवने अभिनंदनपत्र अपायुं
हतुं. अने बडामंदिरजीमां भक्ति थई हती; रात्रे पण भक्ति थई हती. बे दिवसना
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ने छूटो एक ठेकाणे स्थिर रहे, –ते कोण?
तेनो जवाब ए छे के–जीव ज्यारे कर्मथी बंधायेलो होय छे त्यारे ते संसारमां
सिद्धलोकमां सदा स्थिर रहे छे.
ते घणुं रळियामणुं छे, जैनधर्मनी जाहोजलालीथी भरपूर छे; मोक्षमार्ग प्रकाशकनी
समयसारनी हिंदी टीका पण जयपुरना पं. जयचंदजीए करी छे तेथी तेनी पण ते जन्मभूमि
छे. आरसनी मूर्तिओ जयपुरमां बने छे तेथी सौराष्ट्रना जिनमंदिरोमां घणाखरा भगवंतो ते
नगरीमांथी आव्या छे. आ महिने त्यां पं. टोडरमलजी–स्मारकभवननुं उद्घाटन करवा माटे,
तथा सीमंधरप्रभुनी प्रतिष्ठा करवा माटे पू. गुरुदेव जयपुर पधार्या ने मोटा उत्सव द्वारा घणी
धर्मप्रभावना थई.–बंधुओ आवी जयपुरनगरी जरूर जोवा जेवी छे.
मल्लिनाथ, मुनिसुव्रतनाथ अने महावीर.
जवाब मोकलनार सभ्योने धन्यवाद!
६६७ २६२ ७१४ ३६९ १००प १७७२ २७६ ६१९ १६६ ३९३ ३९२ ११७३ ९०९ ११६प
११६६ प३३ प३४ ३२० १४३४ १८२३.
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जैन तरफथी मळ्युं छे–जे अगाउ पण
आपणा बालविभागमां आवी गयुं छे:–
मळे छे, ‘आत्मधर्म’ संबंधी पोतानी
प्रसन्नता व्यक्त करे छे; अने आनंदथी
गुरुदेवनो लाभ ल्ये छे. ते उपरांत अनेक
जिज्ञासु पाठको तरफथी ‘आत्मधर्म’ ना
अंको न मळवा संबंधी मुश्केली पण रजु
करवामां आवे छे,–तो आ संबंधमां
जणाववानुं के रवानगी व्यवस्था संपादक
हस्तक नथी; माटे व्यवस्था बाबतमां जे
कांई सूचना के फरियाद होय ते ‘मेनेजर,
जैन– स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट” सोनगढ
(सौराष्ट्र)–ने लखवा विनंती छे.
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कुंदकुंदाचार्यदेवे पहेली गाथामां सिद्धोने नमस्काररूप महामांगळिक कर्युं छे. तेनी
शुद्धात्मानो आदर कर्यो, तेने रागनो आदर रहे नहि.–आवा भेदज्ञानरूप साधकभाव
प्रगट्यो ते अपूर्व स्वागत ने अपूर्व मांगळिक छे.
कर्युं, साधकभावनी शरूआत करी. सिद्धने साथे राखीने साधकभावनी अप्रतिहत
शरूआत करी तेमां हवे वच्चे भंग पडे नहि.
सम्यग्दर्शनादि ते मंगळ छे. लोको पुत्रप्राप्ति, विवाह वगेरे जेने मंगळ कहे छे ते खरेखर
मंगळ नथी. अहीं तो अनंता सिद्धभगवंतोने आत्मामां स्थापीने, सिद्धोना स्वागतरूप
मंगळ कर्युं छे.
जीवो सिद्ध थया, ते सर्वे सिद्धभगवंतोने मारा ज्ञानमां
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–तो तेना ज्ञानमां केटली स्वच्छता होय? रागनी मलिनतानो ज्यां आदर होय त्यां ते
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कार्यक्रमो शांतिथी चालु हता ने हजारो श्रोताजनो मंडपमां लाभ लेता हता. आखी
नगरी ज्यारे सुमसाम हती त्यारे पण आ मंडप जिनवाणीना प्रवचनथी ने उत्सवना
जयनादथी गुंजतो हतो. ता. १० ना रोज ‘श्री महावीर दि. जैन महाविद्यालय’ ना
सभाहोलनुं उद्घाटन शेठश्री गोदिकाजीना हस्ते थयुं. आ प्रसंगे गुरुदेव त्यां पधार्या
हता ने प्रवचन पण ते विद्यालयना प्रांगणमां थयुं हतुं. प्रवचनमां त्रणचार हजार
माणसो हता; हजारो माणसो शहेरमांथी पण आव्या हता. लगभग दसेक लाख रूा. ना
खर्चे तैयार थई रहेला आ विशाळ विद्यालयना फंडमां श्री गोदिकाजीनो पण मोटो फाळो
छे. स्कुलमां बे हजार जेटला बाळको भणे छे. प्रवचनमां गुरुदेवे साची आत्मविद्यानुं
स्वरूप समजाव्युं हतुं; भेदज्ञानरूप आत्मविद्या ए ज साची विद्या छे ने ते विद्या वडे ज
मुक्ति पमाय छे. आत्मविद्या ए भारतनी मुख्य विद्या छे ने ते विद्यानो प्रचार करवा
जेवुं छे. तेवी विद्या माटे सन्तोना आशीर्वाद छे. आ प्रसंगे उपस्थित जिज्ञासुओ
तरफथी विद्यालयने हजारो रूा. नुं दान जाहेर करवामां आव्युं हतुं.
नांदीविधानपूर्वक, सवारमां प्रतिष्ठामंडपमां जिनेन्द्रदेवने बिराजमान करीने गोदिका
परिवारने हस्ते जैन झंडारोपण थयुं, गुरुदेवनी उपस्थितिमां धर्मध्वज गगनमां फरकी
ऊठ्यो. तथा
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आशीर्वाद प्राप्त कर्या. प्रवचन पछी टोडरमलनगर (कीर्तिमंडप) थी ईन्द्रोनुं भव्य
जुलुस नीकळ्युं. पांच हाथी सहित ईन्द्रोनुं सरघस तेम ज साथे साथे जलयात्रानुं
सरघस देखीने सौने घणो उल्लास थयो. केमके छ दिवसथी जयपुर आव्या छतां ने
उत्सव चालतो होवा छतां शहेरनी परिस्थिति घणी तंग होवाथी, करफयुने कारणे जाहेर
रस्ता पर कोई विशेष कार्यक्रम हजी सुधी बनी शक््यो न हतो, न तो शहेरना माणसो
उत्सवमां आवी शकता हता, के न महेमानो शहेरमां हरीफरी शकता हता, सुमसाम
रस्ताओ उपर पोलीसो सिवाय बीजुं माणस भाग्ये ज देखातुं, –एवी परिस्थिति वच्चे
आजे पांच हाथीना ठाठमाठ ने हजारो माणसोना हर्षनाद पूर्वक भव्य जुलुस नीकळ्युं–
तेथी घणो आनंद थयो...ने जयपुर नगरी जाणे जागृत बनी. शरूमां चोसठ ऋद्धिमंडल
विधानपूजा थई, ते आजे अभिषेकपूर्वक पूर्ण थई.
बाजुमां टोडरमलनगर हतुं–जेमां महेमानोने रहेवा माटे अढीसो जेटला तंबु खडा
करवामां आव्या हता...तेमां पाणी–प्रकाशनी सुंदर सगवड हती; भोजनव्यवस्था पण
त्यां ज हती. जाणे गुरुदेवना प्रतापे रेतीना रण वच्चे दैवी नगरी रचाई गई
हती...गुरुदेव प्रवचनमां समयसार–कर्ताकर्म अधिकार तथा ऋषभजिनस्तोत्र वांचता
हता. सांजे भक्ति तथा रात्रे विद्वानोना भाषण के पंचकल्याणकनी फिल्मनुं प्रदर्शन थतुं
हतुं.
पाकिस्तानना भागला वखते मुलतान छोडीने अहीं आवेला घणा मुलतानी साधर्मी
भाईओ अहीं वसे छे; ने तेमणे एक भव्य जिनालय बंधाव्युं छे. जिनालय माटेनी
जमीन (जेनी किंमत अत्यारे बे–त्रण लाख रूा. जेटली थाय ते) राज्य तरफथी भेट
आपवामां आवी हती. जिनालयनी वेदीमां मुलतानथी आवेला सो जेटला जिनप्रतिमा
बिराजे छे. ज्यारे मुलतान छोडीने जयपुर तरफ आववुं पड्युं त्यारे साधर्मी भक्तोने
एम थयुं के बीजो सामान तो भले साथे आवे के न आवे, पण भगवानने केम
भूलाय? एटले सो जेटला जिनप्रतिमाओ तथा सेंकडो हस्त–