Atmadharma magazine - Ank 281
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : फागण : २४९३
ए प्रमाणे ब्रह्मर्षि–देवो वडे जेमनी स्तुति करवामां आवी ते भगवान ऋषभदेवे
दीक्षा धारण करवामां पोतानी बुद्धि द्रढ करी. कृतार्थ थयेला लोकांतिक देवो हंसोनी जेम
आकाशमार्गने प्रकाशित करता करता पोताना स्वर्गमां चाल्या गया. ते ज वखते
आसन डोलवाथी ईन्द्र वगेरे देवोए भगवानना तपकल्याणकनो अवसर जाण्यो ने सौ
ते उत्सव करवा अयोध्यानगरीमां आवी पहोंच्या. ने क्षीरसमुद्रना जळथी भगवाननो
महाअभिषेक कर्यो. भगवान ऋषभदेवे भारतवर्षना साम्राज्य पर भरतनो अभिषेक
कर्यो ने बाहुबलीने युवराजपद आप्युं.
एक तरफ तो भगवाननो दीक्षामहोत्सव ने बीजी तरफ भरतना
राज्याभिषेकनो उत्सव,–एक साथे आवा बे महान उत्सवोथी पृथ्वीलोक अने स्वर्गलोक
बंने हर्षविभोर बन्या हता. एककोर तो भगवान कम्मर कसीने राजपाट त्यागी
तपसाम्राज्य माटे कटिबद्ध थया हता ने बीजी तरफ बंने राजकुमारोने पृथ्वीनुं राज्य
सोंपातुं हतुं. एक तरफ तो देवो भगवानना वनगमन माटे पालखी तैयार करता हता,
बीजी तरफ कारीगरो भरतना अभिषेक माटे मंडप अने महेल बनावता हता; एक
तरफ तो ईन्द्राणी रंगबेरंगी रत्नोना चोक पूरती हती, बीजी तरफ यशस्वती अने
सुनंदादेवी आनंदपूर्वक रंगावलीनी रचना करती हती. दिग्कुमारीदेवीओ मंगळद्रव्यो
लईने ऊभी हती..चारेकोर पडघम वगेरे मंगल वाजांना घमकार थई रह्या हता. आ
रीते करोडो देवो ने करोडो मनुष्यो एकसाथे बे उत्सव उजवी रह्या हता.
अयोध्यानगरीमां चारेकोर आनंद–आनंद फेलाई गयो हतो. बे पुत्रोने राज्यभार
सोंपीने, तथा बाकीना ९९ पुत्रोने पण राज्यनो अमुक भाग आपीने, दीक्षा माटे
भगवान एकदम नीराकुळ थई गया हता; संसार संबंधी कोई चिन्ता तेमने रही न
हती.
नाभिराजा वगेरे परिवारनी विदाय लईने, ईन्द्रे रचेली सुदर्शन नामनी सुंदर
पालखी उपर भगवान ज्यारे आरूढ थया, त्यारे अत्यंत आदरपूर्वक ईन्द्रे तेमने
पोताना हाथनो सहारो आप्यो हतो. भगवान ऋषभदेव पहेलां तो परम विशुद्धता पर
आरूढ थया हता ने पछी पालखी पर आरूढ थया हता, तेथी ते समये भगवान एवा
लागता हता – जाणे के गुणस्थानोनी श्रेणी चडवानो ज अभ्यास करता होय.
भक्तिपूर्वक भगवाननी पालखी लईने प्रथम तो राजाओ सात पगलां चाल्या, पछी
विद्याधरो आकाशमार्गे सात पगलां चाल्या, ने त्यारबाद देवो अत्यंत हर्षपूर्वक

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: फागण : २४९३ आत्मधर्म : १९ :
खभे पालखी लईने शीघ्र आकाशमां चाल्या. अहा, भगवानना महिमानी शी वात! के
ए प्रसंगे देवोना अधिपति ईन्द्रे पोते पण भगवाननी पालखी खभे लीधी हती.
भगवान पालखीमां आरूढ थया ते वखते ईन्द्रना करोडो दुदुंभी वाजां वागता हता.
अद्भुत वैभवथी शोभता भगवान ऋषभदेव आखा जगतने आनंदित करता थका
अयोध्यापुरीनी बहार नीकळ्‌या...ते वखते वैराग्य भरेला तेमना नेत्रोनी चेष्टा अत्यंत
प्रशांत हती; असंग–वैराग्यदशाने शोभे एवी तेमना अंग–उपांगनी चेष्टा हती.
भगवान आ शुं करी रह्या छे ने दीक्षा एटले शुं? तेना अजाण प्रजाजनो
भगवानने प्रार्थना करता हता के–हे देव! आप आपनुं कार्य पूर्ण करीने वेलावेला
अमने दर्शन देवा पधारजो. प्रभो, आप महा उपकारी छो, हवे अमने छोडीने बीजा
कोनो उपकार करवा आप जई रह्या छो?
नगरजनो एकबीजा साथे वात करता हता के आ देवो भगवानने पालखीमां
क्यांक दूरदूर लई जाय छे, परंतु शा माटे लई जाय छे ते आपणे जाणतां नथी; कदाच
भगवाननी एवी ज कोई क्रीडा होय! अथवा, पहेलां तेमनो जन्मोत्सव करवा माटे
ईन्द्रो तेमने मेरु उपर लई गया हता ने पाछा आव्या हता,–एवो ज कोई प्रसंग फरीने
आपणा महाभाग्यथी बनतो होय!–तो ते कोई दुःखनी वात नथी. अहा, भगवानना
पुण्य कोई महान, वचनातीत छे. आवा आश्चर्यकारी द्रश्यो अमे कदी जोया नथी.
भगवान ज्यारथी आ पृथ्वी उपर अवतर्या छे त्यारथी अवारनवार देवोनुं आगमन
थया ज करे छे.
भगवान हवे संसारथी अत्यंत विरक्त थईने, राजवैभवने तरणां समान मानी
रह्या छे. मस्त हाथीनी माफक स्वतंत्रतानुं सुख प्राप्त करवा माटे भगवान हवे वनमां
प्रवेश करी रह्या छे. भगवाननी आ यात्रा तेमने सुख देनारी छे. तेओ वनमां रहेशे तो
पण सुख तेमने स्वाधीन छे. भगवाननो जय हो...भगवान विजय पामो...ने फरी
वहेला पधारीने अमारी रक्षा करो. आ रीते दीक्षा प्रसंगना जाणकार तेमज अजाण बधा
लोको भगवाननी स्तुति करता हता. तथा महात्मा भरत सोनुं हाथी घोडा वगेरेनुं
महान दान देता हता. यशस्वती, सुनंदा वगेरे स्त्रीओ तथा मंत्रीगण भगवाननी
पाछळ पाछळ जता हता ने तेमनी आंखमांथी आंसु वहेता हता. महाराजा नाभिराज
तथा माताजी मरुदेवी पण

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: २० : आत्मधर्म : फागण : २४९३
सेंकडो राजाओ साथे भगवानना तपकल्याणकनो उत्सव जोवा माटे पाछळ–पाछळ जई
रह्या हता. सम्राट भरत अने तेना भाईओ पण मोटी विभूति लईने भगवाननी
पाछळ जता हता. भगवान आकाशमां एटले ऊंचे गमन करता हता के ज्यांथी लोको
तेमने बराबर जोई शके.
अयोध्याथी थोडे दूर सिद्धार्थक नामना वनमां आवीने एक पवित्र शिला उपर
प्रभु बिराज्या. चन्द्रकान्तमणिनी ए शिला एवी शोभती हती–जाणे के सिद्धशिला ज
दीक्षाकल्याणक जोवा माटे नीचे ऊतरी होय! एना पर आश्चर्यकारी मंडप अने रत्नोनी
रंगोळी हती. ए शिला जोतां, जन्माभिषेक वखतनी पांडुकशिलानी शोभा भगवानने
याद आवी. भगवान जगतना बंधु होवा छतां स्नेहबंधनथी रहित हता. दीक्षा पहेलां
भगवाने देव–मनुष्योनी सभाने योग्य उपदेशवडे संबोधीने प्रसन्न करी. अने दीक्षा
माटे पहेलां जो के बंधुवर्गने पूछ्युं हतुं, तोपण अत्यारे फरीने गंभीरवाणीथी पूछीने
संमति लीधी.
कोलाहल दूर थयो ने एकदम शान्ति प्रसरी गई,
त्यारे गंभीर मंगलनाद साथे भगवाने अन्तरंग अने
बहिरंग परिग्रह छोडी दीधो. आत्मानी, देवोनी अने
सिद्धोनी साक्षीपूर्वक समस्त परिग्रह छोडीने भगवान
मुनि थया, पूर्वदिशासन्मुख पद्मासन लगावी,
सिद्धपरमेष्ठीने नमस्कार करीने, पंचमुष्ठिथी केशलोच
कर्यो. दिगंबर रूपधारक भगवान जिनदीक्षा लईने समस्त
पापोथी विरक्त थया ने समभावरूप चारित्र (सामायिक) धारण कर्युं. जे तिथिए
जन्म्या ते ज तिथिए, फागण वद नवमीनी सांजे भगवाने मुनिदशा धारण करी.
भरतक्षेत्रना आद्यमुनिराज एवा श्री ऋषभमुनिराजने नमस्कार हो.
बाह्यप्रवृत्ति वडे तारी अधिकता नथी,
तुं जेटलो अंदर समा, तेटली तारी अधिकता छे.

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: फागण : २४९३ आत्मधर्म : २१ :
हिंमतनगरमां संवरधर्म
हिंमतनगर (गुजरात) मां पंचकल्याणक–प्रतिष्ठामहोत्सव निमित्ते
पू. गुरुदेव आठ दिवस (माह सु. ४ थी ११) पधार्या हता; ते दरमियान
आ आत्मा असंख्यप्रदेशी उपयोगस्वरूप वस्तु छे. रागादि परभावो ते खरेखर
आत्माना चैतन्यक्षेत्रनो पाक नथी; चैतन्यक्षेत्रमां तो ज्ञानना ने आनंदना पाक पाके
एवो एनो स्वभाव छे. आवा आत्माने जेणे जाण्यो तेने अनंत भवनुं मूळ एक
क्षणमां छेदाई गयुं.
प्रभु, आत्मानुं हित करवा माटे आ ऊंचो अवसर छे. विकारनो जेमां स्पर्श
नथी–एवो जे भूतार्थ आत्मस्वभाव उपयोगस्वरूप छे, ते ज धर्मीने ध्याननुं ध्येय छे,
सम्यग्द्रष्टिनुं ध्यान खाली होय नहीं; एना ध्यानमां आनंदना तरंग उल्लसे छे. तारे
आत्माने ध्यानमां लेवो होय तो अच्छिन्नपणे रागथी भिन्न उपयोगनी भावना कर.
भेदज्ञाननी अच्छिन्न भावना वडे शुद्धात्मानुं ध्यान अने संवर थाय छे. –एनुं नाम धर्म छे.
रागनी भावना करे तेने तो आस्रवनी भावना छे; ते तो रागनी रुचिमां अटके
छे; एटले राग अने ज्ञाननुं भेदज्ञान नहि होवाथी ते बंधाय छे. राग अने ज्ञाननी
अत्यंत भिन्नतानी भावना वडे भेदज्ञान करवुं, ते भेदज्ञान ज सिद्धिनो उपाय छे.
भाई, आवुं भेदज्ञान निरंतर भाववा योग्य छे; आ मनुष्य अवतारमां ने आवा
सत्समागममां अपूर्व भेदज्ञाननो अवसर तने मळ्‌यो छे. तेथी कहे छे के अरे! आवो
अवसर आव्यो छे तो–
हे आत्मा! तुं चूकीश मा!
वालीडा मारा! तुं चूकीश मा!
आ अवसर तुं चूकीश मा!
साथीडा मारा तुं चूकीश मा!
आवो मोंघो अवसर अनंतकाळे मळ्‌यो छे, तेमां आत्माना भवनो अंत केम
आवे ने मोक्षसुख केम प्रगटे–एवो उपाय करजे.
भगवान पार्श्वनाथ प्रभुए आवो आत्मा साध्यो ने तीर्थंकर थईने आवो
उपयोगस्वरूप आत्मा जगतने देखाड्यो. तेनुं ज्ञान करवुं ते संवरधर्म छे.

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: २२ : आत्मधर्म : फागण : २४९३
‘भाव–नगर’ मां मंगल प्रवचन
ज्ञान–आनंद वगेरे शुद्ध चैतन्य ‘भाव’ थी भरेला
नगरमां वसवुं–ते मंगळ छे.
– –
भावनगरना मंगल प्रवचनमां ‘भावनगर’ नो अर्थ समजावतां पू. गुरुदेवे
कह्युं के ‘भाव’ एटले ज्ञान–आनंद वगेरे अनंत स्वभावोथी भरेलो आत्मा, तेनुं ज्ञान
करीने तेमां वसे एटले के ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानुं भान करे ते ‘भाव–नगर’ मां
आव्यो, बाकी तो बधा भानवगरना छे. ‘नगर’ तेने कहेवाय के जेमां कांई कर न होय
(न कर) कांई ऊपाधि न होय, पर भावनो बोजो न होय; आवा शुद्ध चैतन्यभावथी
भरेलुं जे नगर, एवा ‘भावनगर’ ने ओळखवुं, ने रागथी भिन्न थईने तेमां वसवुं
ते मंगळ छे. ते मम्–गल एटले ममतारूपी पापने गाळनार छे ने ‘मंगल’ एटले
सुखने लावनार छे तेथी ते ‘भाव’ ने मंगळ कहे छे. मंगळ कहो के धर्म कहो, केम के धर्म
ते ज जगतमां उत्कृष्ट मंगळ छे. आवो मंगळभाव प्रगट करवा माटे आत्मानुं स्वरूप
ओळखवुं जोईए. ते कई रीते ओळखाय? एटले के शास्त्रभाषामां जेने भेदज्ञान
अथवा आत्मअनुभव कहे छे–ते केम थाय? तेनी आ वात छे.
आ आत्मा देहथी जुदुं अरूपी तत्त्व छे, ते ज्ञानस्वरूप छे. जेम लींडीपीपरमां
६४ पहोरी तीखाश भरेली छे, तेम दरेक आत्मामां सर्वज्ञ थवानी ने पूर्ण आनंद प्रगट
करवानी ताकात शक्तिरूपे भरेली छे, पण पोते पोतानी शक्तिने, पोतानी प्रभुताने
भूलीने रागद्वेषादि परभावोने ज निजस्वरूप मानी रह्यो छे, तेथी ते अज्ञानभावथी
संसारनी चारगतिमां भ्रमण करी रह्यो छे, पण आत्मा देहथी पार रागथी पार, शुद्ध
चैतन्यसत्ताथी भरपूर छे. –ए ज मारुं स्वरूप छे. पुण्यना शुभ, के पापना अशुभ
एवा जे कोई रागभावो थाय तेनाथी ज्ञानतत्त्व जुदुं छे, ते ज्ञानतत्त्वने रागथी भिन्न
अनुभवतां भेदज्ञानरूप धर्म थाय छे ने भाव–नगर एवुं जे आत्मानुं शुद्धस्वरूप तेमां
आत्मा प्रवेशे छे ने आनंदना भावने अनुभवे छे.

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: फागण : २४९३ आत्मधर्म : २३ :
जीवने नथी कंई ध्रुव; ध्रुव उपयोग–आत्मक जीव छे
माह सुद दसमे जीपअकस्मातमां ईंदोरना बे भाईओना स्वर्गवासनी
अरे, आ जीवन तो अनित्य छे–क्षणभंगुर छे; कई क्षणे एनो वियोग थशे!
–ए गवानना ज्ञानमां भास्युं छे, तेने फेरववा कोई समर्थ नथी. सूरज ऊगे छे
ते अस्त थाय छे; तेम जन्म ते मरण सहित ज छे. जुओने, आजे ज
क्षणभंगुरतानो बनाव बनी गयो. अनित्य संसारमां जीवने कोई शरण नथी,
उपयोगस्वरूप एनो पोतानो ध्रुव आत्मा ज एनुं शरण छे. आयुष्य पूरुं थाय
त्यां ईन्द्रनो देह पण क्षणमां छूटी जाय छे; ८४००० अंगरक्षक देवोनी टूकडी पण
एना मरणने रोकी शकती नथी. शरण तो ज्ञान छे, ते ज्ञानमां मरण नथी,
ज्ञानमां अकस्मात नथी. आवा ज्ञानस्वरूप आत्माने ओळख भाई! तारुं तो
ज्ञान छे. शरीर तारुं नथी. राग पण तारुं स्थायी टकतुं स्वरूप नथी, तेने टकावी
राखवा मांगे–ते टकी शके नहि. ज्ञानना स्वानुभव वडे ज्ञानी पर द्रव्यना हर्ष–
शोकने छोडे छे, जगतना पदार्थोना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भाव केवळज्ञानमां जणाय
छे, केवळज्ञाननी आणने कोई लोपी शकतुं नथी, –आवी जगतनी राजनीति छे.
पाणीमां ऊठेलो परपोटो शुं कायम रहेशे? नहीं. –तेम आ विकार अने शरीरादि
संयोग ते तो परपोटा जेवा छे, ते क्षणिक छे, तेमां जीवनुं साचुं जीवन नथी.
पारस–भगवानने आजे केवळज्ञान थयुं, ते ज आत्मानुं खरूं जीवन छे. शांत–
वीतराग स्वरूप आत्मा ज आ जगतमां सार छे, बाकी तो बधुंय असार–असार
छे. बापु! सर्वज्ञदेवे तारो आत्मवैभव खुल्लो मूक््यो, ते आत्मवैभवने तुं जाण.
बाकी तो जगतमां बधुं असार छे. ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती मरीने बीजी क्षणे सातमी
नरके गयो, त्यां महा दुःख पामे छे, तेने चक्रवर्तीनो वैभव नरके जतां रोकी न
शक््यो, शरण तो पोतानो आत्मवैभव छे, अनंतगुणरूप आत्मवैभव ते ज
पोतानो साचो वैभव छे. आम जाणी जगत प्रत्ये वैराग करीने आत्मानुं स्वरूप
चिंतववुं जोईए. तो शोक रहे नहीं, ने आत्मानुं कल्याण थाय.

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: २४ : आत्मधर्म : फागण : २४९३
आबुनगरीमां गुरुदेव समजावे छे–
मनुष्यजीवननी महत्ता
ता. २७–२–६७ ना रोज आबुशहेरना टाउनहोलमां
भाई, आवो मनुष्यदेह मळ्‌यो छे, ज्ञानीओ आ मनुष्यभवने बीजा बधा करतां
उत्तम कहे छे. –तेने उत्तम कहेवानुं कारण ए छे के धर्मनुं साधन मुख्यपणे आ
मनुष्यदेहमां ज थाय छे. जो के मनुष्योमां कांई बधाय मनुष्यो धर्मनुं साधन करता
नथी, पण जेओ विवेक–बुद्धिवाळो छे, सत्य–असत्यनो विवेक करीने समजे छे, ने
देहादिथी भिन्न चैतन्य तत्त्वने जाणे छे ते ज मनुष्यो धर्मने साधे छे. बाकी तो मनुष्यनुं
शरीर अनंतवार मळी चूक्युं, पर देहथी भिन्न आत्माने न जाण्यो तो तेने खरेखर
ज्ञानीओ ‘मनुष्य’ नथी कहेता, ए तो
मनुष्यरूपेण मृगाः चरन्ति।’ मन्यते ते
मनुष्याः एटले के ज्ञानानंदस्वरूप सिद्धसमान आत्मा शुं चीज छे तेने जे माने–जाणे–
अनुभवे ते साचो मानव छे.’ तेणे मनुष्यपणाने सफळ कर्युं छे.
आचार्यदेव ऊंघता जीवोने जगाडीने कहे छे के अरे जीवो! आत्मा तो सुखनुं
धाम छे; आ देह के राग–तेमां तमारुं पद खरेखर नथी, तमारुं पद तो चैतन्यमय छे,
आनंदमय छे; तारा आवा पदनुं मनन तो कर. आ मनुष्यपणुं पामीने तारा
चैतन्यपदमां आवी जा, बहारमां सुख मानीने बहारमां भटके छे, तेने बदले अंतरमां
तारा चैतन्यपदमां आवी जा. निजपदने भूलीने तुं पर पदने पोतानुं मानी रह्यो छे ने
तेमां सूतो छे, तेने बदले हे जीव! तुं आ स्थिर चैतन्यपद तरफ आव! तुं जाग, ने
तारा शुद्ध चैतन्यपदने संभाळ. –तारुं ए पद महा आनंदमय छे. आवा तारा स्वघरमां
तुं कदी आव्यो नथी. माटे हवे तो तेने ओळखीने निजपदरूपी स्वघरमां आव.
आवा निजपदने संभाळीने तेनी श्रद्धा–ज्ञान–रमणता वडे धर्मनी साधना
करवी–तेमां ज आ मनुष्यभवनी महत्ता छे. अने मनुष्यपणुं पामीने पण जो आत्मानी
दरकार न करी, धर्मनी साधना न करी. तो ए मनुष्यभवनी शी किंमत! पशुमां ने एमां
शो फेर? माटे ज्ञानीओ कहे छे के हे भाई! आवुं मोंघुं मनुष्यपणुं मळ्‌युं छे तो तेमां हवे
आत्मानुं स्वरूप विचारजे, ने आत्मानुं कल्याण केम थाय–तेवो उद्यम करजे. –एमां ज
मनुष्यपणानी सफळता छे.

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: फागण : २४९३ आत्मधर्म : २प :
गुरुदेवनी साथे साथे
सोनगढ थी...........................जयपुर
जसदणमां वेदीप्रतिष्ठा, आंकडिया तथा हिंमतनगरमां पंचकल्याणक प्रतिष्ठाना
मंगलकार्यो करीने गुरुदेव माह सुद १२ना रोज सोनगढ पधार्या...ने सोनगढनी
शांतिनी सुगंध लईने बीजे दिवसे जयपुर–प्रतिष्ठा ने सम्मेदशिखरजी तीर्थनी यात्रा
माटे मंगल प्रस्थान कर्युं. (ता. २२ फेब्रुआरी) सवारमां ‘भावनगर मां प्रवेश कर्यो,
भक्तोए भावभीनुं स्वागत कर्युं. भावनगरना मंगलप्रवचनमां गुरुदेवे कह्युं के
आत्माना निर्मळ भावोरूपी जे नगरी, तेमां प्रवेश करवो ते मंगळ छे; ने एवा
चैतन्यभावनी जेने खबर नथी ते तो भान वगरना छे. भावनगरमां दिगंबर
जिनमंदिर प्राचीन छे, त्यां दर्शन–पूजन कर्या. तेमज मंडपमां (दशाश्रीमाळीना वंडामां)
पण सोनगढथी सीमंधरप्रभुजीने लावीने बिराजमान कर्या हता. तेमनी सन्मुख दर्शन–
पूजन–भक्ति थता हता, तथा रत्नत्रय–पूजन पण थयुं हतुं. सोनगढना सीमंधरनाथनी
पूजा वखते एम थतुं के, भक्तोना हृदयना भगवान तो भक्तोनी साथे ज होय ने!
(आ सीमंधरप्रभुनी प्रतिमा पू. बेनश्री–बेन तरफथी प्रतिष्ठित थयेल छे.) अहीं सं.
१९८६ मां (एटले ३७ वर्ष पहेलां) गुरुदेव पधारेला, ते वखतना केटलाय संस्मरणो
गुरुदेव ताजा करता हता; तेमां खास करीने पहेलवहेला एक दिगंबर साधुने जोवानो
प्रसंग अहीं बनेलो; तथा ते वखते गुरुदेवना प्रवचनो सांभळीने, पू. श्री चंपाबेन
(जेओ ते वखते मात्र १६–१७ वर्षना हता) तेओ घरे जईने ते प्रवचनो लखी लेता,
ने गुरुदेवे ते बेनने पहेलवहेलां अहीं जोया, जोतां ज तेमने लाग्युं के आ बेन कोई
अलौकिक लागे छे! –आ प्रसंगने गुरुदेव घणीवार खूब भावपूर्वक याद करे छे. ने
गुरुदेवनो ३७ वर्ष पहेलांनो ते आभास पू. बेनश्री चंपाबेने संपूर्ण सत्य सिद्ध कर्यो छे.
आवा तो बीजा घणाय पवित्र स्मरणो गुरुदेवने जागता हता. –ए भावनगरनी
विशेषता छे.
भावनगरना प्रवचनमां बे हजार जेटला भाई–बेनो प्रेमथी भाग लेता हता,
ने प्रवचन सांभळीने प्रसन्न थता हता. भावनगरनुं दैनिकपत्र ‘सौराष्ट्र समाचार’
गुरुदेवना प्रवचननो सार हंमेश प्रगट करतुं हतुं. शेठश्री वृजलालभाईए गुरुदेव

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: २६ : आत्मधर्म : फागण : २४९३
प्रत्ये खूब भावभीना उद्गारो व्यक्त कर्या अने जनताने खास भलामण करी के
वीतरागधर्मनी प्रभावना करनारा अने अनादिना मिथ्यात्वनुं झेर उतारी नांखनारा
आ सन्तने तमे ओळखो, अने तेमनो लाभ ल्यो; अने न ओळखी शको तोपण तेनुं
बहुमान करो, अवर्णवाद तो न ज करो. चारे दिवस उत्साहपूर्वक हजारो माणसोए
प्रवचननो लाभ लीधो हतो. अने रविवार ता. २६ ना रोज जिनेन्द्रभगवानना दर्शन
करीने जयजयकारपूर्वक अमदावाद तरफ प्रस्थान कर्युं.
श्री जिनेन्द्रप्रतिष्ठा माटे अने तीर्थयात्रा माटे गुरुदेव जेवा सन्तो साथे प्रस्थान
करतां हर्ष थतो हतो. सवासो माईलना प्रवासमां साथे ने साथे रहेती मोटरथी गुरुदेव
साथेना तीर्थप्रवासथी भक्तोने आनंद थतो हतो. आगळ जुओ तो सन्त, पाछळ
जुओ तो सन्तो, –एवा सन्तो साथेना प्रवासथी कोने आनंद न थाय? अमदावादमां
बपोरे ३ थी ४ सो जेटला मुमुक्षु भाई–बहेनो आवेला. तेमनी समक्ष विविध तत्त्वचर्चा
गुरुदेवे करी हती, तथा श्रीमद् राजचंद्रजीनी खास शैली उपर प्रकाश पाडयो हतो. सांजे
अमदावादथी प्रस्थान करीने हिंमतनगर रात रोकाया हता. फरीने महावीरादि
भगवंतोनां दर्शन कर्या, उपरना भागमां शांतिनाथ प्रभुजी समीपनुं उपशांत
वातावरण चित्तमां शांति प्रेरतुं हतुं. हजी तो पांच दिवस पहेलां ता. २० मी ए
पुष्पवृष्टि करता हेलिकोप्टरना गगनभेदी अवाजथी अने २०–२प हजार माणसोना
हर्षनादथी गाजतुं आ महावीरनगर आज केटलुं बधुं शांत देखातुं हतुं! एवा शांत
वातावरणमां रात्रे भक्ति तथा चर्चा चाली. सवारमां प्रभुजीना दर्शन करीने आबु
तरफ प्रस्थान कर्युं. वच्चे ईडर आव्युं–श्रीमद् राजचंद्रजीए ज्यां आत्मसाधना करी एवा
आ ईडरना पहाडोने जोतां तेमनुं जीवन स्मरणमां आवतुं हतुं. आ पहाडने अर्ध
प्रदक्षिणा करीने आगळ जतां पहाडी रस्ते प्रवास करीने गुजरातनी हदमांथी
राजस्थाननी हदमां प्रवेश्या, ने दस वागे आबु पहोंच्या...स्वागत पूर्वक जिनमंदिरमां
दर्शन कर्या. बपोरे टाउनहोलमां प्रवचन हतुं. तेमां, मोक्षने साधवो ते ज मानवदेहनी
विशेषता छे–ए वात समजावी हती. सांजे आबुथी प्रस्थान करीने शिरोही आव्या, ने
बीजे दिवसे सवारमां शिवगंज थई पाली गामे आव्या. गुरुदेवे जेमनी पासे
स्थानकवासी–दीक्षा लीधी हती ते हीराचंदजी महाराजनुं आ वतन हतुं तेथी ते संबंधी
स्मरणो गुरुदेव याद करता हता... हीराचंदजी महाराज गुरुदेवने घणीवार
‘जैनशासननो स्थंभ’ थवानुं कहेता; अने एमनी ए आगाही

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: फागण : २४९३ आत्मधर्म : २७ :
गुरुदेवे साची ज पाडी छे. पालीमां सवारे प्रवचन तथा जिनमंदिरना दर्शन करीने
बपोरे सोजत गामे आव्या; त्यां बपोरे प्रवचन थयुं. बीजे दिवसे (ता. १ मार्च)
किसनगढ आव्या; स्वागत पछी मंगल प्रवचन करतां गुरुदेवे कह्युं के सिद्धभगवंतोनुं
स्वागत करवुं एटले के तेमने ओळखीने आत्मामां पधराववा–ते मांगळिक छे. जेने
जेनुं बहुमान आवे तेनुं ते स्वागत करे छे; साधकने शुद्धआत्मानुं बहुमान छे तेथी ते
सिद्ध पदनुं स्वागत करे छे. ए सिवाय बीजानो–रागनो, अल्पतानो ते आदर करतो
नथी. बपोरे समयसारना पहेला कळश उपर प्रवचन करतां कह्युं के आत्मानुं शुद्ध
स्वरूप ते सार छे–के जेने जाणतां जाणनारने सुखनो अनुभव थाय छे. बपोरे तथा
रात्रे जैन विद्यालयमां विद्यार्थीओनो कार्यक्रम, तेम ज संगीत मंडल तरफथी पार्श्वनाथ–
उपसर्गना द्रश्यनो कार्यक्रम हतो. घोर उपसर्ग अने पार्श्वप्रभुनुं धैर्य, तथा धरणेन्द्र अने
पद्मावतीनी प्रभु प्रत्येनी भक्ति–ए द्रश्य भगवानना जीवनमांथी उत्तम प्रेरणाओ
आपतुं हतुं.
शेठ श्री लाडुलालजीने त्यां घरचैत्यमां बिराजमान महावीर भगवानना तेम ज
बीजा जिनमंदिरोमां बाहुबली वगेरे भगवंतोनां दर्शन कर्या. बीजे दिवसे सवारमां
कुचामन तरफ प्रस्थान कर्युं.
कुचामनमां जिनमंदिरमां प्रभुना दर्शन कर्या पछी गुरुदेवनुं भव्य स्वागत थयुं.
ठाठमाठ सहित उल्लासभर्युं स्वागत जोईने सौ हर्षित थया. ऊंट–हाथी–घोडा,
बेन्डवाजां, भजनमंडळी, पाठशाळाना बाळको, भव्य रथमां जिनवाणी, बीजा रथमां
जिनेन्द्रदेव, एवा ठाठमाठ सहित त्रणचार हजार माणसोए उमंगथी स्वागत कर्युं.
स्वागत दरमियान नगरीमां रत्न अने पुष्टिवृष्टि करवा माटे दिल्हीथी विमान
आववानुं हतुं परंतु त्यांना खराब हवामानने कारणे रवाना थई शक््युं न हतुं.
बपोरना प्रवचनमां तो चार पांच हजार माणसोए शांतिथी प्रवचन सांभळ्‌युं हतुं ने
प्रसन्न थया हता. हजारो माणसो बहारगामथी ऊंटीयागाडी वगेरेमां आव्या हता.
बपोरे तेमज रात्रे भक्तिनो कार्यक्रम हतो. एक दिवसमां तो उत्सव जेवुं वातावरण
सर्जाई गयुं हतुं. अहीं बीजा त्रण चार विशाळ जिनमंदिरो छे,
–प्राचीन सोनेरी कारीगरीथी ने पंचकल्याणक वगेरे द्रश्योथी मंदिरो सुशोभित छे.
माह वद ८ (ता. ३) कुचामनथी लाडनु आव्या. वछराजजी शेठनुं आ गाम–
जेमणे सोनगढमां गोगीदेवी ब्रह्मचर्याश्रम बंधावी आपेल छे. लाडनुमां प्रवेशतां

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: २८ : आत्मधर्म : फागण : २४९३
मंगलपुरामां जिनेन्द्रदेवनां दर्शन कर्या ने भावस्वागत थयुं. मंगलपुरामां वछराजजी
शेठनो विशाळ आश्रम छे. त्यारबाद नगरीमां प्रवेशीने सुखदेव आश्रममां अनेक
जिनबिंबोना दर्शन करतां खूब आनंद थयो. वीस लाख रूा. ना खर्चे थयेल शेठ
वछराजजी अने तेमना भाईओए बंधावेल आ मनोरम्य विशाळ रचनामां प्रवेशतां
वेंत ज चोकमां ऊभेला ध्यानस्थ बाहुबली भगवान सौनुं ध्यान खेंचे छे ने अद्भुत
जीवनआदर्श देखाडीने मुमुक्षुने तृप्त करे छे. पछी मानस्तंभ ओळंगीने मंदिरजीमां
प्रवेशतां ज सुवर्णप्रतिमा जेवी एक भव्य प्रतिमा आपणी आंखद्वारा झडपथी हृदयमां
प्रवेशी जाय छे–ए छे भगवान आदिनाथ! हर्षथी आदिनाथप्रभुना दर्शन करीने जराक
आसपासमां नजर करतां ज एकबाजु भगवान भरतेश्वर ने बीजी बाजु भगवान
बाहुबलीना विशाळ प्रतिमाजीना दर्शन थाय छे.–आम गुरुदेव साथे पिता–पुत्रोनी
त्रिपुटीनां दर्शन करतां पू. बेनश्रीबेन वगेरे सौने घणो आनंद थयो. घणा आनंदथी
दर्शन–पूजन कर्या. गुरुदेवनो उतारो पण आ आश्रममां ज हतो. गुरुदेव लाडनु
पधारवाथी श्री वछराजजी शेठने तेमज मनफूलादेवीने घणो हर्षोल्लास थयो, ने तेओ
खूब लागणीवश बनी गया हता. गुरुदेवे सिद्धोनी स्थापनानुं सुंदर मंगलाचरण
संभळाव्युं, मंगलाचरण बाद भव्य जिनमंदिरमां पू. बेनश्री–बेने आदिनाथ भगवाननुं
समूहपूजन भावपूर्वक कराव्युं. भक्तोए बाहुबलिप्रभुनो मस्तकाभिषेक पण कर्यो.
गुरुदेव साथे बडा मंदिरजीमां तथा बीजा मंदिरोमां दर्शन करतां आनंद थयो. बडा
मंदिरमां प्राचीन प्रतिमाओ तेमज कारीगरीवाळुं तोरणद्वार खास दर्शनीय छे. आ
तोरण अनुसार ज बीजुं तोरण आरसनुं लगभग वीस हजार रूा. ना खर्चे करावेलुं छे.
अहीं २७ वखत तो पंचकल्याणक–महोत्सव थया छे–ए आ नगरीनुं एक गौरव छे.
अने सुखदेव आश्रमनी विशाळता, शांत वातावरण अने भव्यजिनबिंबोना दर्शन–ते
आ नगरीना गौरवमां ओर वधारो करे छे. वारंवार जिनेन्द्रभगवंतोना दर्शन करतां
दिल तृप्त थतुं हतुं. बपोरे प्रवचनमां पण हजार उपरांत माणसो आव्या हता. प्रवचन
पछी तेमज रात्रे जिनमंदिरमां भक्ति थई हती. रात्रे सेंकडो वीजळी प्रकाशना
झगझगाट वच्चे जिनमंदिरनी ने बाहुबलीभगवाननी शोभामां ओर वृद्धि थाय छे.
बीजे दिवसे जिनेन्द्रदेवनी रथयात्रा सहितनुं भव्य स्वागतसरघस आखी नगरीमां फर्युं
हतुं. बपोरे प्रवचन पछी लाडनु–जैनसमाज तरफथी गुरुदेवने अभिनंदनपत्र अपायुं
हतुं. अने बडामंदिरजीमां भक्ति थई हती; रात्रे पण भक्ति थई हती. बे दिवसना

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: फागण : २४९३ आत्मधर्म : २९ :
कार्यक्रम दरमियान श्री वछराजजी शेठे पण उत्साहथी भाग लीधो हतो. सोनगढना
ब्रह्मचारीबहेनो पण आव्या हता. ने आनंदित थया हता. ता. प नी सवारे
जिनेन्द्रदेवना दर्शन करीने लाडनुथी सीकर आव्या.
सीकरमां उल्लासपूर्ण स्वागत बाद मंगल–प्रवचन थयुं. बपोरे अहींना ७
जिनालयोना गुरुदेव साथे दर्शन कर्या. बपोरना प्रवचन बाद जिनमंदिरमां भक्ति थई;
तथा रात्रे पोणी कलाक निश्चय–व्यवहार वगेरे संबंधमां सुंदर तत्त्वचर्चा थई. बीजे
दिवसे ता. ६ मार्चे सवारमां सीकरथी जयपुर आव्या.
जयपुर नगरीमां भव्य महोत्सव
जयपुर नगरीमां प१ दरवाजा, र हाथी वगेरे द्वारा भव्य स्वागतनी तैयारीओ
हती. परंतु राजकीय कारणोसर ते दिवसोमां १४४ मी कलम चालती होवाथी स्वागतनुं
सरघस नीकळी शक््युं न हतुं. रामलीला मेदानमां भव्य समियाणामां लगभग पांच
हजार माणसो स्वागतनिमित्ते एकठा थया हता ने त्यां गुरुदेवे मांगळिक संभळाव्युं
हतुं. वंदित्तु सव्वसिद्धे द्वारा सिद्धभगवंतोना स्वागतरूप अपूर्व मांगळिक कर्युं हतुं.
त्यारबाद वच्चे टोडरमल स्मारकभवन थई शेठ पूरणचंदजीना मकानमां गुरुदेवनो
उतारो हतो. बपोरे ३ थी ४ प्रवचन तथा रात्रे भक्ति तेमज पंचकल्याणकनी फिल्मनुं
प्रदर्शन हतुं. बीजे दिवसे पण ए ज कार्यक्रम हतो. (विशेष माटे जुओ पानुं ३४)
भक्त अने भगवान
एक वात आवे छे के–सुरदास–भक्तनो हाथ छोडीने श्रीकृष्ण
एकवार दूर संताई गया; त्यारे सुरदास कहे छे–हे हरि! तमे हाथ छोडीने
भले दूर गया, पण मारा हृदयमांथी दूर नहि जई शको! तेम
सर्वज्ञभगवानना भक्तो कहे छे के हे सीमंधरनाथ! अमे भरतमां, ने आप
विदेहमां,–क्षेत्रथी भले आप दूर वस्या, पण अमारा अंतरमांथी आप जराय
दूर नहि रही शको. आपने ओळखीने अमारा हृदयमां आपने पधराव्या छे,
ते कदी दूर थवाना नथी.

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: ३० : आत्मधर्म : फागण : २४९३
(ता. ३–४ मार्च : लाडनु शहेरना प्रवचननी प्रसादी)
जीवे अनादिकाळथी पोताना शुद्ध ज्ञानस्वरूपनो अनुभव कर्यो नथी, रागथी
भिन्न तेना स्वादने जाण्यो नथी. तेणे अनादिथी शुं कर्युं? के रागना विकारी स्वादने
पोतानो मानीने अनुभव्यो छे. अहीं भगवान कुंदकुंदस्वामी कहे छे के भाई, रागनो
स्वाद ते तारो स्वाद नथी, तारो स्वाद तो आनंदरूप छे, चैतन्यरूप छे. कुंदकुंदाचार्यदेव
विदेहक्षेत्रमां सीमंधर परमात्माना समवसरणमां पधार्या हता, ने तेमनी वाणी
सांभळीने तेमणे आ समयसार शास्त्र रच्युं छे. तेमां कहे छे के आत्माना स्वरूपमां
ज्ञान–आनंदनी पूर्ण ताकात भरी छे, तेना अनुभव विना तुं रागना स्वादने तारामां
मिश्रित करी रह्यो छे. जडनो स्वाद तो अत्यंत जुदो छे, ने रागनो स्वाद पण तारा
चैतन्यना मधुर स्वादथी जुदो छे. अरे जीव! आ तारा चैतन्यस्वादनी वात संतो तने
समजावे छे.–भाई, बहारनी ने रागनी वात तो तें अनंतवार सांभळी, तेनो प्रेम कर्यो,
पण चैतन्यनी वात तें प्रेमथी कदी सांभळी नथी. माटे एवा दुर्लभ चैतन्यस्वरूपनी
वात समजवानो आ अवसर छे. आत्मानुं भान थतां ते ज क्षणे अपूर्व आनंदनो
अनुभव थाय छे ने आत्मामां मोक्षना भणकारा आवी जाय छे. आवा आत्मभान
विना बीजुं बधुं एकडा वगरना मींडां जेवुं व्यर्थ छे. अशुभ ने शुभरागनी वात तो
अनंतकाळथी तें सांभळी छे ने अनुभवी छे, तेमां कांई धर्म नथी; पण ए रागथी पार
चैतन्यतत्त्व शुं छे तेने अनुभवमां ले तो अपूर्व धर्म थाय. एक क्षणनो धर्म जरूर मोक्ष
आपे. पण ए धर्मनी रीत शुं छे ते जीव समज्यो नथी ने रागनी क्रियाने धर्म मान्यो
छे. भाई, धर्म कहो के सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र कहो, तेमां तो आत्मानो अतीन्द्रिय
आनंद छे. धर्मीने आवा आनंदनो अनुभव थाय छे. तारुं आनंदमय निजघर–के जेमां
रागनो कदी प्रवेश नथी, ते निजघर सन्तो तने ओळखावे छे. अरे, आवुं मनुष्यपणुं
पामीने जो तें तारुं निजघर न जोयुं ने आत्मज्ञान न कर्युं तो तें कांई कर्युं नथी, तारुं
मनुष्यपणुं आत्मज्ञान वगर निष्फळ चाल्युं जशे. माटे, आत्मानी रुचि करीने आ वात
समजवा जेवी छे.

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: फागण : २४९३ आत्मधर्म : ३१ :
गतांकना प्रश्नोना उत्तर
(१) बंधायेल चारेकोर फरे,
ने छूटो एक ठेकाणे स्थिर रहे, –ते कोण?
तेनो जवाब ए छे के–जीव ज्यारे कर्मथी बंधायेलो होय छे त्यारे ते संसारमां
चारेकोर एटले के चारे गतिमां भमे छे, अने ज्यारे ते छूटे एटले के मोक्ष पामे त्यारे ते
सिद्धलोकमां सदा स्थिर रहे छे.
(२) चार अक्षरनुं शहेर ते –जयपुर
ते घणुं रळियामणुं छे, जैनधर्मनी जाहोजलालीथी भरपूर छे; मोक्षमार्ग प्रकाशकनी
रचना त्यां पं. टोडरमलजीए करी छे तेथी ते मोक्षमार्गप्रकाशकनी जन्मभूमि छे; तेमज
समयसारनी हिंदी टीका पण जयपुरना पं. जयचंदजीए करी छे तेथी तेनी पण ते जन्मभूमि
छे. आरसनी मूर्तिओ जयपुरमां बने छे तेथी सौराष्ट्रना जिनमंदिरोमां घणाखरा भगवंतो ते
नगरीमांथी आव्या छे. आ महिने त्यां पं. टोडरमलजी–स्मारकभवननुं उद्घाटन करवा माटे,
तथा सीमंधरप्रभुनी प्रतिष्ठा करवा माटे पू. गुरुदेव जयपुर पधार्या ने मोटा उत्सव द्वारा घणी
धर्मप्रभावना थई.–बंधुओ आवी जयपुरनगरी जरूर जोवा जेवी छे.
(३) २४ तीर्थंकरोमांथी ‘म’ उपर नामवाळा ३ भगवान छे–
मल्लिनाथ, मुनिसुव्रतनाथ अने महावीर.
जवाब मोकलनार सभ्योने धन्यवाद!
जवाब मोकलनार सभ्योना नंबर
१०४९ ६४० ४३१ ४३२ ३२० प२९ ३२१ १प६प ३३९ ३७८ १३२१ ३७७ १८प०
७१० ७११ १६४८ ३२२ ८४६ १००२ ११७ ४० ३१ प८२ ४९ १७७१ ३४७ ३४६ ६६६
६६७ २६२ ७१४ ३६९ १००प १७७२ २७६ ६१९ १६६ ३९३ ३९२ ११७३ ९०९ ११६प
११६६ प३३ प३४ ३२० १४३४ १८२३.

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: ३२ : आत्मधर्म : फागण : २४९३
अमने...गमे
“तमने शुं गमे”–ए वात बालविभागना सभ्योने पूछी हती; घणा सभ्योए
उत्साहपूर्वक सरस जवाब लख्या छे. अमे विचारेलो टूंको जवाब आ छे के “–अमने
गमे आत्मा.” हवे बालविभागना नाना–मोटा सभ्योए पण पोताने शुं गमे ते संबंधी
जे विचारो लख्या छे. ते उपरथी बाळकोना हृदयमां केवी सुंदर भावनाओ रमी रही छे
तेनो ख्याल आवे छे. कोई लखे छे–अमने आतमराम गमे, कोई लखे छे अमने मोक्ष
गमे, कोई लखे छे के अमने मुनि थवुं गमे, कोई लखे छे के सम्यग्दर्शन गमे, तो कोई
लखे छे–अमने बालविभाग गमे. आ उपरांत बालविभागमां घणा बंधुओना पत्रो
आव्या छे, तेमना जवाबो वैशाख मासमां प्रगट करीशुं. माटे सौए धीरज राखवा
विनंति छे. बालविभाग प्रत्ये बाळकोनो खूब प्रेम होवाथी पोताना पत्रना जवाब माटे
तेओ खूब आतुर रहे–ए स्वाभाविक छे, परंतु गुरुदेव साथेना यात्राप्रवासमां
महत्वना कार्यक्रमोने लीधे आमां पहोंची शकातुं नथी. माटे बंधुओ, बे महिना धीरज
राखजो. आनंदथी धार्मिक अभ्यास करजो. आत्मधर्ममां यात्राप्रवासनुं थोडुं थोडुं वर्णन
आवे छे ते आनंदथी वांचजो. तमे पत्र लखवो होय तो खुशीथी (सोनगढना सरनामे)
लखजो. तमने धार्मिक उत्साह आपवा माटे ज आपणो बालविभाग छे. जय जिनेन्द्र
अमने...गमे
“तमने शुं गमे?” तेना जवाबमां नीचेनुं
काव्य गोंडलना सभ्य नं. २४६ अरविंद
जैन तरफथी मळ्‌युं छे–जे अगाउ पण
आपणा बालविभागमां आवी गयुं छे:–
मनेगमे आतमाराम,
करुं शाने बीजुं काम;
तन–धनमां नहीं सुखनं नाम,
सुखशांतिनुं हुं छुं धाम.
जग जाणे नहीं एनुं नाम,
गुरु बतावे–सुखनुं धाम;
जेने समजाये आ भेद,
तेनो थाये संसार छेद.
सूचना:–
पू. गुरुदेव साथेना प्रवास
दरमियान गामे गामे जिज्ञासु साधर्मीओ
मळे छे, ‘आत्मधर्म’ संबंधी पोतानी
प्रसन्नता व्यक्त करे छे; अने आनंदथी
गुरुदेवनो लाभ ल्ये छे. ते उपरांत अनेक
जिज्ञासु पाठको तरफथी ‘आत्मधर्म’ ना
अंको न मळवा संबंधी मुश्केली पण रजु
करवामां आवे छे,–तो आ संबंधमां
जणाववानुं के रवानगी व्यवस्था संपादक
हस्तक नथी; माटे व्यवस्था बाबतमां जे
कांई सूचना के फरियाद होय ते ‘मेनेजर,
जैन– स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट” सोनगढ
(सौराष्ट्र)–ने लखवा विनंती छे.

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: फागण : २४९३ आत्मधर्म : ३३ :
अमे जिनवरनां संतान: (बालविभागना नवा सभ्यो)
१७९प राजेशकुमार कीर्तीकान्त जैन मुंबई–९२ १८१० रंजन शान्तीलाल जैन चलाल
१७९६ विरेनकुमार कीर्तीकान्त जैन मुंबई–९२ १८११ मधुकांत शान्तीलाल जैन चलाल
१७९७ दिलीपकुमार कान्तीलाल जैन अमदावाद १८१२ हंसाबेन शान्तीलाल जैन चलाल
१७९८ कमलेशभाई नौतमलाल जैन कलकता १८१३ हरषदा शान्तीलाल जैन चलाल
१७९९ मीलनकुमार नौतमलाल जैन कलकता १८१४ वसंतराय कनैयालाल जैन मुंबई
१८०० संजयकुमार नौतमलाल जैन कलकता १८१प लीनादेवी कनैयालाल जैन मुंबई
१८०१ मुकुंदराय चुनीलाल जैन सोनगढ १८१६ प्रकाशचंद कनैयालाल जैन मुंबई
१८०२ अकलंक चुनीलाल जैन सोनगढ १८१७ भरतदेव कनैयालाल जैन मुंबई
१८०३ बाबुलाल वाडीलाल जैन सलाल १८१८ चैतन्यकुमार कनैयालाल जैन मुंबई
१८०४ ईलाबेन ब्रिजलाल जैन पूना १८१९ हसमुखलाल चंदुलाल जैन नीकोडा
१८०प रीटा रमणीकलाल जैन मुंबई–८० १८२० शैलाबेन हीरालाल जैन महुवा
१८०६ चेतन रमणीकलाल जैन मुंबई–८० १८२१ भारतीबेन हीरालाल जैन महुवा
१८०७ अरवींदकुमार चंदुलाल जैन मोढुका १८२२ अनीलकुमार हीरालाल जैन महुवा
१८०८ प्रवीणचंद साकरलाल जैन प्रांतीज १८२३ मलपंती वसंतराय जैन मुंबई–७७
१८०९ अंजना शान्तीलाल जैन चलाल
सुरेन्द्रनगरमां जैन पाठशाळानुं उद्घाटन
सुरेन्द्रनगरमां स्व. भाई श्री चंदुलाल फूलचंद शाहना स्मरणनिमित्ते जैन
पाठशाळा चालु थयेल छे, जेनुं उद्घाटन ता. १४–२–६७ ना रोज थयुं हतुं; ने
आ पाठशाळामाटे अगाउ फूलचंद चतुरभाई तरफथी रूा. प००१) आपेल ते
उपरांत बीजा रूा. प००१) उद्घाटनप्रसंगे आपेल छे. जैनपाठशाळाना विद्यार्थी
बंधुओ आनंदपूर्वक धार्मिक अभ्यास करे ने पाठशाळा उन्नति पामे एवी
शुभेच्छा. गामेगामना जैनसंघोए आनुं अनुकरण करीने वहेलामां वहेली तके
पाठशाळा चालु करवी जोईए. बाळकोने धार्मिक संस्कार आपवा माटे
पाठशाळानी खूब आवश्यकताछे.

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: ३४ : आत्मधर्म : फागण : २४९३
ज य पु र मां–
–– * –– सिद्धभगवंतोना स्वागतरूप अपूर्व मांगळिक –– * ––
ता. ६ मार्चना रोज पू. गुरुदेव अनेकविध मंगलमहोत्सव निमित्ते
जयपुरनगर पधार्या, अने मंगळप्रवचनमां ‘वंदित्तु सव्वसिद्धे’ ...ए
समयसारनी पहेली गाथानो उल्लेख करीने कह्युं के सिद्धभगवंतोने ओळखीने

कुंदकुंदाचार्यदेवे पहेली गाथामां सिद्धोने नमस्काररूप महामांगळिक कर्युं छे. तेनी
टीकामां अमृतचंद्राचार्यदेवे अथप्रथमत एटले के साधकभावनी शरूआतमां साध्यरूप
सिद्धोने आत्मामां ऊतारीने तेमनुं स्वागत कर्युं छे. सिद्धोनुं जेणे स्वागत कर्युं तेणे
शुद्धात्मानो आदर कर्यो, तेने रागनो आदर रहे नहि.–आवा भेदज्ञानरूप साधकभाव
प्रगट्यो ते अपूर्व स्वागत ने अपूर्व मांगळिक छे.
आत्माना पूर्णानंदस्वरूपनी प्राप्ति केम थाय तेनो उपाय आ समयसारमां
बताव्यो छे. जेणे सिद्धने ओळखीने आत्मामां स्थाप्या तेणे साधकभावनुं अपूर्व मंगळ
कर्युं, साधकभावनी शरूआत करी. सिद्धने साथे राखीने साधकभावनी अप्रतिहत
शरूआत करी तेमां हवे वच्चे भंग पडे नहि.
मंग’ एटले आनंद तेने जे ‘ल’ लावे–प्राप्त करे एवो भाव ते मंगल छे, एटले
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते मंगल छे. आ ‘मंगल’ शब्दनो अस्तिसूचक अर्थ छे. अने,
‘मम्’ एटले पाप, तेने जे ‘गल’–गाळे–नष्ट करे ते मंगळ छे;–आ नास्तिसूचक अर्थ
छे. जे आनंदरूप पवित्रताने पमाडे, अने दुःखरूप पापने–अज्ञानने नष्ट करे एवा
सम्यग्दर्शनादि ते मंगळ छे. लोको पुत्रप्राप्ति, विवाह वगेरे जेने मंगळ कहे छे ते खरेखर
मंगळ नथी. अहीं तो अनंता सिद्धभगवंतोने आत्मामां स्थापीने, सिद्धोना स्वागतरूप
मंगळ कर्युं छे.
मैं सिद्धोंका स्वागत करता हूं; छ मास ने आठ समयमां ६०८ जीवो
सिद्ध थाय छे–मोक्ष पामे छे; सिद्धनो आवो प्रवाह अनादिथी चाल्यो आवे छे;–अनंता
जीवो सिद्ध थया, ते सर्वे सिद्धभगवंतोने मारा ज्ञानमां

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: फागण : २४९३ आत्मधर्म : ३प :
लईने हुं तेमनुं स्वागत करुं छुं. एक सामान्य महेमान आंगणे पधारे तोपण लोको
शोभा–शणगार ने स्वच्छता करे छे; अहीं तो साधक अनंत सिद्ध भगवंतोने आंगणे
पधरावे छे,
–तो तेना ज्ञानमां केटली स्वच्छता होय? रागनी मलिनतानो ज्यां आदर होय त्यां ते
मलिन आंगणामां सिद्ध भगवंतो न पधारे; रागथी भिन्न अंतर्मुख थयेलुं जे
स्वसंवेदनरूप पवित्र ज्ञान, ते ज्ञानना आंगणाने सम्यग्दर्शन वडे शोभावीने धर्मीजीव
अनंत सिद्ध भगवंतोने पोताना आंगणे पधरावे छे, तेमनुं स्वागत करे छे एटले के
शुद्धआत्मानो ज आदर करे छे.–आ साधकदशानुं अपूर्व मंगळ छे. संसार ते विकार छे
ने मोक्ष ते पूर्ण शुद्धता छे; एवी शुद्धताने पामेला सिद्ध भगवंतो स्वानुभूतिरूप
आनंदनी अनुभूतिथी प्रकाशमान छे. ते सिद्ध भगवंतोने हुं मारा शांतिना स्वयंवरमां,
एटले के मुनिदशाना महोत्सवमां आमंत्रीने तेमनुं स्वागत करुं छुं एटले के हुं मारा
आत्मामां वीतरागी समभावरूप चारित्रदशा प्रगट करुं छुं–एम कहीने प्रवचनसारमां
आचार्यदेवे अपूर्व मांगळिक कर्युं छे.
हे सिद्धो, हे पंच परमेष्ठि भगवंतो! शुद्धोपयोगी चारित्रदशारूप जे मोक्षनो
महोत्सव–तेमां आप पधारो, आपने साक्षीरूपे साथे लईने हुं मोक्षने साधवा नीकळ्‌यो
छुं, तेथी मारी मोक्षपरिणतिमां वच्चे विघ्न आववानुं नथी.
जे ज्ञाने अनंत सर्वज्ञ–सिद्धोने पोतामां स्थापीने तेमनुं स्वागत कर्युं ते ज्ञान
रागथी जुदुं पड्युं ने आनंदरूप थयुं. हुं सिद्धने वंदन करुं छुं एटले तेना जेवा
शुद्धात्मानो ज आदर करुं छुं ने एनाथी विरुद्ध कोई भावनो आदर करतो नथी. हे
श्रोताओ! मारा ने तमारा आत्मामां हुं सिद्धने स्थापुं छुं: पधारो प्रभु पधारो! अमारा
ज्ञाननुं लक्ष सिद्धपद प्राप्त करवा उपर छे, वच्चे रागनो के संयोगनो आदर नथी;
अमारा ज्ञाननी परिणति हवे सिद्धस्वरूप तरफ ज ढळशे.–आम सिद्धस्वरूपने ध्येयपणे
राखीने आ समयसार हुं कहुं छुं ने तमे पण एवा ज ध्येये तेनुं श्रवण करजो. आ रीते
जे समयसार सांभळे तेनो मोक्ष थया वगर रहे नहि. तेने सम्यग्दर्शनादि अपूर्व
साधकभावनी शरूआत थाय छे, ते मांगळिक छे. आ रीते जयपुरमां सिद्धोना
स्वागतरूप मंगळ कर्युं.

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: ३६ : आत्मधर्म : फागण : २४९३
गुरुदेवनी साथे साथे
(पृष्ठ २९ थी चालु)
जयपुरमां महान उत्सव
१८ हाथी सहित भव्य रथयात्रा द्वारा नगरीमां
जैनधर्मनो जयजयकार
अनेकविध उत्सवनिमित्ते गुरुदेव जयपुर पधार्या. शरूना दिवसोमां करफ्यु
(हरवा–फरवानो प्रतिबंध) होवा छतां गुरुदेवना प्रवचनो, भक्ति, रात्रि–सभा वगेरे
कार्यक्रमो शांतिथी चालु हता ने हजारो श्रोताजनो मंडपमां लाभ लेता हता. आखी
नगरी ज्यारे सुमसाम हती त्यारे पण आ मंडप जिनवाणीना प्रवचनथी ने उत्सवना
जयनादथी गुंजतो हतो. ता. १० ना रोज ‘श्री महावीर दि. जैन महाविद्यालय’ ना
सभाहोलनुं उद्घाटन शेठश्री गोदिकाजीना हस्ते थयुं. आ प्रसंगे गुरुदेव त्यां पधार्या
हता ने प्रवचन पण ते विद्यालयना प्रांगणमां थयुं हतुं. प्रवचनमां त्रणचार हजार
माणसो हता; हजारो माणसो शहेरमांथी पण आव्या हता. लगभग दसेक लाख रूा. ना
खर्चे तैयार थई रहेला आ विशाळ विद्यालयना फंडमां श्री गोदिकाजीनो पण मोटो फाळो
छे. स्कुलमां बे हजार जेटला बाळको भणे छे. प्रवचनमां गुरुदेवे साची आत्मविद्यानुं
स्वरूप समजाव्युं हतुं; भेदज्ञानरूप आत्मविद्या ए ज साची विद्या छे ने ते विद्या वडे ज
मुक्ति पमाय छे. आत्मविद्या ए भारतनी मुख्य विद्या छे ने ते विद्यानो प्रचार करवा
जेवुं छे. तेवी विद्या माटे सन्तोना आशीर्वाद छे. आ प्रसंगे उपस्थित जिज्ञासुओ
तरफथी विद्यालयने हजारो रूा. नुं दान जाहेर करवामां आव्युं हतुं.
ता. ११ मार्च : श्री टोडरमल–स्मारक–भवनना चैत्यालयमां सीमंधर
भगवाननी वेदीप्रतिष्ठाना उत्सवनी विधि आजथी शरू थई. शांतिजाप तथा
नांदीविधानपूर्वक, सवारमां प्रतिष्ठामंडपमां जिनेन्द्रदेवने बिराजमान करीने गोदिका
परिवारने हस्ते जैन झंडारोपण थयुं, गुरुदेवनी उपस्थितिमां धर्मध्वज गगनमां फरकी
ऊठ्यो. तथा

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: फागण : २४९३ आत्मधर्म : ३७ :
ईन्द्रप्रतिष्ठामां आठ ईन्द्रोनी स्थापना थई, अने आचार्यअनुज्ञा तरीके गुरुदेवना
आशीर्वाद प्राप्त कर्या. प्रवचन पछी टोडरमलनगर (कीर्तिमंडप) थी ईन्द्रोनुं भव्य
जुलुस नीकळ्‌युं. पांच हाथी सहित ईन्द्रोनुं सरघस तेम ज साथे साथे जलयात्रानुं
सरघस देखीने सौने घणो उल्लास थयो. केमके छ दिवसथी जयपुर आव्या छतां ने
उत्सव चालतो होवा छतां शहेरनी परिस्थिति घणी तंग होवाथी, करफयुने कारणे जाहेर
रस्ता पर कोई विशेष कार्यक्रम हजी सुधी बनी शक््यो न हतो, न तो शहेरना माणसो
उत्सवमां आवी शकता हता, के न महेमानो शहेरमां हरीफरी शकता हता, सुमसाम
रस्ताओ उपर पोलीसो सिवाय बीजुं माणस भाग्ये ज देखातुं, –एवी परिस्थिति वच्चे
आजे पांच हाथीना ठाठमाठ ने हजारो माणसोना हर्षनाद पूर्वक भव्य जुलुस नीकळ्‌युं–
तेथी घणो आनंद थयो...ने जयपुर नगरी जाणे जागृत बनी. शरूमां चोसठ ऋद्धिमंडल
विधानपूजा थई, ते आजे अभिषेकपूर्वक पूर्ण थई.
उत्सवमां भाग लेवा बहारगामथी हजारो माणसो आव्या हता. पंदर हजार
माणसोनो समावेश थई शके एवडो विशाळ मंडप ऊभो करवामां आव्यो हतो.
बाजुमां टोडरमलनगर हतुं–जेमां महेमानोने रहेवा माटे अढीसो जेटला तंबु खडा
करवामां आव्या हता...तेमां पाणी–प्रकाशनी सुंदर सगवड हती; भोजनव्यवस्था पण
त्यां ज हती. जाणे गुरुदेवना प्रतापे रेतीना रण वच्चे दैवी नगरी रचाई गई
हती...गुरुदेव प्रवचनमां समयसार–कर्ताकर्म अधिकार तथा ऋषभजिनस्तोत्र वांचता
हता. सांजे भक्ति तथा रात्रे विद्वानोना भाषण के पंचकल्याणकनी फिल्मनुं प्रदर्शन थतुं
हतुं.
ता. १२ (फा. सुद एकम) : आज बपोरे यागमंडलविधानपूजन थयुं; तथा
प्रवचन आदर्शनगरमां थयुं हतुं. आदर्शनगर ए जयपुरनुं एक सुंदर परुं छे; भारत–
पाकिस्तानना भागला वखते मुलतान छोडीने अहीं आवेला घणा मुलतानी साधर्मी
भाईओ अहीं वसे छे; ने तेमणे एक भव्य जिनालय बंधाव्युं छे. जिनालय माटेनी
जमीन (जेनी किंमत अत्यारे बे–त्रण लाख रूा. जेटली थाय ते) राज्य तरफथी भेट
आपवामां आवी हती. जिनालयनी वेदीमां मुलतानथी आवेला सो जेटला जिनप्रतिमा
बिराजे छे. ज्यारे मुलतान छोडीने जयपुर तरफ आववुं पड्युं त्यारे साधर्मी भक्तोने
एम थयुं के बीजो सामान तो भले साथे आवे के न आवे, पण भगवानने केम
भूलाय? एटले सो जेटला जिनप्रतिमाओ तथा सेंकडो हस्त–