राजाओनी उछामणी तो एक घडीकमां थई गई ने वधु ने वधु मागणी पण चालु रही.
रात्रे १०० राजाओनी भव्य राजसभा थई हती. पिताजी वगेरेए लग्न माटे
पारसकुमारने कह्युं पण वैरागी पारसकुमारे आयु वगेरेनी अल्पता जाणीने तेनो
अस्वीकार कर्यो. बीजे दिवसे (माह सुद ८) सवारमां अयोध्याना राजदूत द्वारा
अयोध्यापूरीनुं ने त्यां थयेला तीर्थंकरोनुं वर्णन सांभळतां प्रभुने जातिस्मरण सहित
वैराग्य थयो ने मुनिदशा लेवा तैयार थया. लौकांतिक देवोए आवीने स्तुति करी तथा
वैराग्यने अनुमोदन आप्युं...ने ईन्द्रो प्रभुनो दीक्षामहोत्सव करवा वनमां लई गया.
दीक्षायात्रा घणी महान हती; छ सात हजार भक्तो प्रभुनी साथे साथे दीक्षावनमां जई
रह्या हता. “
दशानी भावनानुं खूब घोलन कर्युं...मुनिदशानो आवो महिमा सांभळतां श्रोताजनो
मुग्ध थई जता हता. दीक्षा पछी मुनिभक्ति थई हती. दीक्षाना आ वैराग्य प्रसंगे अनेक
भाई–बहेनोए ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा अंगीकार करी हती; तेमां फत्तेपुर दि. जैन पाठशाळाना
शिक्षिकाबहेन ललिताबेन (उ. व. ३०) जेओ बालब्रह्मचारी छे–तेमणे पण आजीवन
ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा लीधी हती. रात्रे चित्रोद्वारा पार्श्वनाथप्रभुना पूर्वभवोनुं दिग्दर्शन पं.
श्री नाथुलालजीए कराव्युं हतुं. वेर सामे क्षमानुं उत्तम उदाहरण पार्श्वनाथप्रभुना
जीवनमां छे, क्षमानो महान बोध ए जीवन आपी रह्युं छे. अनेक भव सुधी क्रोधपूर्वक
उपसर्ग करवा छतां अंते पारसप्रभुनी परमक्षमा पासे ए कमठना क्रोधनी हार थाय छे,
ने घोरातिघोर उपद्रव सामे पण अडग आत्मध्यानमां मग्न पार्श्वनाथप्रभु ज्यारे
केवळज्ञान पामे छे त्यारे कमठनो जीव (संवरदेव) क्रोध छोडी पश्चात्तापपूर्वक प्रभु पासे
क्षमा मांगे छे ने अंते धर्म पामे छे–‘पारसना संगे ए पथरो पण सुवर्ण बनी जाय छे.’
–पारसप्रभुना जीवनना क्षमाप्रेरक प्रसंगो धैर्य, क्षमा ने धर्मद्रढता जगाडता हता. –
आठदश हजार माणसोनी सभा थती हती.
कर्युं. आहारदाननी खुशालीमां एककोर रत्नवृष्टि थई तो बीजीकोर दाननो वरसाद