Atmadharma magazine - Ank 282
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९३
आ पारमेश्वरी जिनदीक्षा त्रण जगतनुं हित करनारी छे, ने सम्यक्त्वभावनी देनारी छे,
ते अमने सदा पवित्र करो. आपनी आ दीक्षा सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप रत्नोथी
अलंकृत छे. प्रभो! भव–तन–भोगरूप संसारने स्वप्नसमान जाणीने आपे छोड्यो छे
ने अविनाशी मोक्षमार्गमां गमन कर्युं छे. प्रभो, आपनामां राग न होवा छतां मोक्षमां
आप आसक्त थया–ए आश्चर्यनी वात छे! वळी हे प्रभो! हेय अने उपादेय वस्तुओने
जाणीने आपे छोडवा जेवी वस्तुओने छोडी दीधी ने उपादेय वस्तुओना ग्रहण माटे
उद्यमी थया, –अने छतांय आप समदर्शी कहेवाओ छो–ए पण आश्चर्यनी वात छे!
आप पराधीन सुख छोडीने स्वाधीन सुख प्राप्त करवा मांगो छे, तथा अल्प विभूति
छोडीने भारे महान विभूति प्राप्त करवा चाहो छो,–तो पछी आप विरक्त अने त्यागी
कई रीते थया! हे भगवान! आप निर्ग्रंथ होवा छतां कुशल पुरुषो आपने ज सुखी कहे
छे. ज्ञानदीपक लईने आप मोक्षमार्गे जई रह्या छो. आपना ध्यानरूपी महान अग्निमां
आठे कर्मो भस्मीभूत थई रह्या छे; आठ कर्मना वनने छेदी नांखवा माटे आपे
रत्नत्रयरूपी कुहाडो उठाव्यो छे. प्रभो! बीजे क््यांय न होय एवी अद्भुत आपनी आ
ज्ञान–वैराग्यरूपी सम्पत्ति ज आपने मोक्ष प्राप्त कराववा माटे समर्थ साधन छे तथा
आपना शरणे आवेला भक्तजीवोना संसारने पण ते नष्ट करे छे. –आवी उत्कृष्ट
ज्ञानसम्पत्तिने धारण करनार हे वीतराग! आपने नमस्कार हो.
महाराजा भरते पण पोताना अनेक नाना बंधुओ तथा पुत्रो सहित, भक्तिना
भारथी अतिशय नम्र थईने पोताना पितानी अनेक प्रकारे स्तुति तथा पूजा करी.
आत्मध्यानमां लीनअने मोक्षप्राप्तिरूप कार्यने साधवामां तत्पर एवा मोहविजेता
भगवान ऋषभमुनिराजना चरणोनी अत्यंत भावपूर्वक भरते पूजा करी.
ए प्रमाणे
जेणे भगवाननी पूजा करी छे तथा जेना घूंटण पृथ्वी पर पडेला छे (अर्थात्
जे घूंटणभर थईने वंदन करे छे), अने जेनां नेत्रोमां हर्षनां आंसु छे–एवा ते
भरते पोताना मुगटना उत्कृष्टमणिना किरणो वडे भगवानना चरणोनुं
प्रक्षालन करतां उत्कृष्ट भक्तिपूर्वक नमीने पोतानुं मस्तक भगवानना
चरणोमां झुकाव्युं; ने महान गुरुभक्ति प्रगट करी.
ए प्रमाणे भगवाननो
दीक्षाकल्याणक ऊजवीने सौ अयोध्या तरफ विदाय थया.
दीक्षा बाद ऋषभमुनिराज आत्मध्यानमां लीन थया...तरत तेमने
मनःपर्ययज्ञान तेम ज अनेक लब्धिओ प्रगट थई.
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