ते अमने सदा पवित्र करो. आपनी आ दीक्षा सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप रत्नोथी
अलंकृत छे. प्रभो! भव–तन–भोगरूप संसारने स्वप्नसमान जाणीने आपे छोड्यो छे
ने अविनाशी मोक्षमार्गमां गमन कर्युं छे. प्रभो, आपनामां राग न होवा छतां मोक्षमां
जाणीने आपे छोडवा जेवी वस्तुओने छोडी दीधी ने उपादेय वस्तुओना ग्रहण माटे
उद्यमी थया, –अने छतांय आप समदर्शी कहेवाओ छो–ए पण आश्चर्यनी वात छे!
आप पराधीन सुख छोडीने स्वाधीन सुख प्राप्त करवा मांगो छे, तथा अल्प विभूति
छोडीने भारे महान विभूति प्राप्त करवा चाहो छो,–तो पछी आप विरक्त अने त्यागी
कई रीते थया! हे भगवान! आप निर्ग्रंथ होवा छतां कुशल पुरुषो आपने ज सुखी कहे
छे. ज्ञानदीपक लईने आप मोक्षमार्गे जई रह्या छो. आपना ध्यानरूपी महान अग्निमां
आठे कर्मो भस्मीभूत थई रह्या छे; आठ कर्मना वनने छेदी नांखवा माटे आपे
रत्नत्रयरूपी कुहाडो उठाव्यो छे. प्रभो! बीजे क््यांय न होय एवी अद्भुत आपनी आ
आपना शरणे आवेला भक्तजीवोना संसारने पण ते नष्ट करे छे. –आवी उत्कृष्ट
ज्ञानसम्पत्तिने धारण करनार हे वीतराग! आपने नमस्कार हो.
आत्मध्यानमां लीनअने मोक्षप्राप्तिरूप कार्यने साधवामां तत्पर एवा मोहविजेता
भगवान ऋषभमुनिराजना चरणोनी अत्यंत भावपूर्वक भरते पूजा करी.
जे घूंटणभर थईने वंदन करे छे), अने जेनां नेत्रोमां हर्षनां आंसु छे–एवा ते
भरते पोताना मुगटना उत्कृष्टमणिना किरणो वडे भगवानना चरणोनुं
प्रक्षालन करतां उत्कृष्ट भक्तिपूर्वक नमीने पोतानुं मस्तक भगवानना
चरणोमां झुकाव्युं; ने महान गुरुभक्ति प्रगट करी.