Atmadharma magazine - Ank 282
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९३ आत्मधर्म : २७ :
भगवाननी तपस्या
भगवान ऋषभदेव शरीरनुं ममत्व छोडी, मोक्षने साधवा माटे, छ महिनाना
उपवासनी प्रतिज्ञा करीने मौनपूर्वक स्थिर थया. तेओ ध्याननी सिद्धि माटे प्रशमगुणनी
उत्कृष्ट मूर्ति जेवा शोभता हता. तपना महिमाने लीधे कोई अद्रश्य छत्रवडे तेमना उपर
छांयो थई गयो हतो. चार ज्ञानवडे भगवाने परलोकसंबंधी गति–अगतिने संपूर्ण
जाणी लीधी हती.
भगवान तो मुनि थईने अडगपणे आत्मध्यानमां स्थिर थया; पण बीजा
राजाओनुं धैर्य तो बे–त्रण मासमां ज तूटवा मांडयुं. भगवानना मार्ग पर चालवा
असमर्थ एवा ते कल्पित मुनिओ विचार करवा लाग्या के, अरे! हवे अमाराथी भूख–
प्यास सहन थता नथी; भगवान तो कोण जाणे क्या उद्देशथी आ प्रमाणे ऊभा छे?
भगवान पोतानी रक्षानो विचार कर्या वगर आवा भयंकर वनमां ऊभा छे तो
‘पोतानी रक्षा प्रयत्नपूर्वक करवी जोईए’ –एवी नीतिने शुं भगवान नहीं जाणता
होय? भगवान तो प्राणोथी विरक्त थईने आवी तपचेष्टा करी रह्या छे, पण अमे तो
हवे खेदखिन्न थई गया छीए. तेथी भगवान ध्यान पूरुं करे त्यांसुधी अमे आ वनमां
फळ ने कंद–मूळ खाईने जीवन टकावीशुं. आम तेओ दीन थई गया; शुं करवुं ते तेमने
सुझ्युं नहि. ‘भगवान अमने जरूर कंईक कहेशे’ एवी आशाथी तेओ भगवानने
घेरीने ऊभा; भगवान तरफ द्रष्टि करतां तेमने थोडुंक धैर्य थतुं. केटलाक तो माता–
पिता–स्त्री–राजपाट वगेरेनुं स्मरण थतां घेर जवानी ईच्छाथी वारंवार भगवानना
चरणोमां नमस्कार करता हता. पण तेमने बीक लागती हती के जो अत्यारे भगवाननो
साथ छोडीने घरे जईशुं तो, भगवान ज्यारे आ कार्य पूरां करीने राज्य संभाळशे
त्यारे अमने अपमान करीने काढी मूकशे; अथवा तो भरत महाराजा अमने कष्ट देशे. –
माटे अहीं ज रहीने सहन करवुं. हवे तो आजकालमां ज भगवाननो योग सिद्ध थशे
एटले कष्ट सहन करनारा अमने घणी धन–सम्पदा आपीने संतुष्ट करशे. निर्बळ
थयेला ते मुनिओ जमीन पर पड्या पड्या पण भगवानना चरणनुं स्मरण करता
हता. केटलाक लोको भगवानने पूछीने, अने केटलाक पूछ्या वगर मात्र प्रदक्षिणा दईने,
प्राणरक्षा माटे वनमां अन्यत्र चाल्या गया हता, ने व्रत छोडीने जेमतेम वर्तवा लाग्या
हता.
अरे, खेद छे के सामान्य मनुष्यो जेने स्पर्शी न शके एवा भगवानना मार्ग पर
चालवा माटे असमर्थ थईने ते बधाय खोटा ऋषिओ मुनिमार्गथी भ्रष्ट थई गया.