Atmadharma magazine - Ank 282
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९३
सम्मेदशिखर–तीर्थधाममां
फागण सुद १३ (ता. २४ मार्च) : गुरुदेव साथे घणा दिवसथी जेना दर्शननी
प्रतीक्षा करता हता ते पवित्र सम्मेदशिखरधामना दर्शन थतां आजे सौने घणो हर्ष
थयो. हजी तो अनेक माईल दूर हता, आकाशमां पण वादळा घेरायेला हता, छतां पण
जेम घनघोर कर्मवादळने भेदीने पण साधक पोताना साध्यरूप सिद्धस्वरूपने देखी ल्ये छे
तेम वादळने वींधीने पण भक्तोनी द्रष्टि शिखरजी तीर्थधामने देखी लेती हती.
मधुवननी झाडीना मधुर द्रश्यो नीहाळतां नीहाळतां शिखरजी तीर्थनी तळेटीमां आवी
पहोंच्या. गुरुदेव तीर्थमां पधारतां भक्तोए होंशथी स्वागत कर्युं. तीर्थधाममां
बिराजमान भगवंतोने गुरुदेव भावभीनां हृदये भेट्या, दर्शन करीने अर्ध चडाव्यो.
तीर्थधाममां गुरुदेव साथे दर्शन करतां पू. बेनश्री–बेन वगेरे सौने घणो हर्ष थयो. ए
पुष्पदंत स्वामी ने पार्श्वनाथ स्वामी, ए महावीरादि २४ भगवंतो ने नंदीश्वरधाम,
चंद्रप्रभ भगवान अने मानस्तंभ, तेमज बाहुबली भगवान वगेरेना आनंदपूर्वक
दर्शन कर्या. स्वागत पछीना मंगलाचरणमां गुरुदेवे कह्युं के आ सम्मेदशिखरजी तीर्थ ते
मंगळ छे. द्रव्य–क्षेत्र–काळ ने भाव ए चार प्रकारे मंगळ छे. भगवंतोए मंगळ भाववडे
ज्यां सिद्धपदने साध्युं ते क्षेत्र पण मंगळ छे. आ सम्मेदशिखरजी धामथी अनंता जीवो
सिद्ध थया छे ने उपर लोकाग्रे समश्रेणीए बिराजे छे. ते सिद्धभगवंतोना स्मरणमां
निमित्तरूप आ क्षेत्र पण मंगळ छे ने सिद्धस्वरूपना स्मरणनो पोतानो भाव ते पण
मंगळ छे. आ रीते तीर्थधाममां मंगळ कर्युं. बपोरे समयसार–कर्ताकर्म अधिकार (गा.
७२) उपर प्रवचन थयुं. सात बस तथा वीस जेटली मोटर द्वारा प०० जेटला यात्रिको
संघमां हता, ते उपरांत घणा यात्रिको सीधा ट्रेईन द्वारा शिखरजी पहोंच्या हता. त्रण
हजार उपरांत श्रोताजनोथी सभामां गुरुदेवे प्रथम तो सीमंधरनाथने याद कर्या, अने
कुंदकुंदआचार्यदेव विदेहक्षेत्रमां पधार्या हता–तेनो ईतिहास कह्यो. पछी ७२ मी गाथा शरू
करतां कह्युं के अहो! आत्मा अने आस्रवोनी भिन्नतानुं आवुं भेदज्ञान करीने अंतरमां
रागथी भिन्न चैतन्यना अनुभवमां झुलता झुलता आचार्यदेव ज्यारे आ गाथा
लखता हशे, –त्यारे केवो काळ हशे!! अहो, धन्य एमनी दशा!! सम्मेदशिखर उपर
बिराजमान अनंत सिद्धभगवंतो प्रत्ये अंगुलिनिर्देश करीने गुरुदेवे कह्युं: प्रभो! अहींथी