चरणकमलनी स्थापना छे, पण हमणां ते स्थान मिलिटरी लश्करनी व्यवस्था नीचे
होवाथी दर्शन थई शकता नथी. बपोरे स्वागतपूर्वक गुरुदेवे शहेरना जिनमंदिरोना
दर्शन कर्या हता. पासे पासे ज चार जिनमंदिरो छे. एक विशाळ जिनमंदिरमां गुरुदेवनुं
प्रवचन थयुं. प्रवचन पछी तरत यात्रिकोए बनारस तरफ प्रस्थान कर्युं.
आगेवानोए उत्साहथी स्वागत कर्युं हतुं ने जैनसमाज तरफथी अभिनंदनपत्र
आपवामां आव्युं हतुं. शहेरमां १४४ मी कलम होवा छतां खास परवानगीथी स्वागत
अने प्रवचनादि कार्यक्रमो उल्लासथी थया हता. काशी नगरी एटले के वाराणसी
(बनारस) नगरी, –त्यां गंगा किनारे सुपार्श्वप्रभुनुं जन्मधाम छे ने गाममां
भेलुपुरमां पार्श्वप्रभुनुं जन्मधाम छे, त्यां गुरुदेव साथे आनंदथी दर्शन कर्या. बपोरे
गुरुदेव साथे चंद्रनाथ–जन्मधाम चंद्रपुरीनी यात्रा करी; मंदिरने स्पर्शीने गंगानदी चाली
जाय छे; चंद्रप्रभु भगवानने याद करीने अने तेमना दर्शन करीने गंगाजळ पीधुं. पछी
सारनाथ–सिंहपुरीमां भगवान श्रेयांसनाथना जन्मधाममां श्रेयांसप्रभुनी यात्रा करी.
फागळ सुद अगियारसना आजना मंगलदिने अगियारमा तीर्थंकरदेवनी सन्तो साथे
यात्रा थतां सौने आनंद थयो. प्रवचन पछी विद्वानोना भाषण थया ने गुरुदेवने
अभिनंदन–पत्र अपायुं. रात्रे वरसाद आव्यो हतो.
अहीं शेठ श्री शांतिप्रसादजी शाहु तरफथी संघनी सारी आगतास्वागता करवामां आवी
हती. अहींथी प्रस्थान करीने रात सुधीमां यात्रासंघ सम्मेदशिखरजी पहोंची गयो हतो.
गुरुदेव शिरपुर रात रोकाईने फागण सुद १३ नी सवारमां सम्मेदशिखरजी तरफ
पधार्या.