Atmadharma magazine - Ank 282
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधम" : चैत्र : २४९३
करतां करतां उमंगथी यात्रिको पर्वत चडी रह्या हता; गुरुदेवना पगले पगले यात्रा करी
रहेला पू. बेनश्री–बेन विधविध भक्तिपूर्वक आनंद करावता हता...एटले कठिन मार्ग
पण सुगम बनी जतो हतो. जाणे भक्तिना बळथी ज पर्वतारोहण थई जतुं हतुं;
यात्रिक जराक थाके त्यां सन्तोनो साथे एना थाकने उतारी देतो हतो ने सिद्धिधाममां
पहोंचवानुं बळ आपतो हतो. कुदरत पण यात्रामां साथ आपती होय तेम आकाशमां
पूर्णचन्द्र प्रकाशीने मार्गने प्रकाशित करतो हतो, हवामान पण खुशनुमा हतुं; वच्चे वच्चे
गुरुदेव तीर्थंकरोनुं ने सिद्धोनुं स्मरण करीने उद्गार काढता; खाडा–टेकरावाळो मार्ग
देखीने तेओ कहेता के भगवान तीर्थंकरदेव तो आकाशमां पांचहजार धनुष ऊंचे
विचरता हता. भगवंतो अहीं विचरतां हता; मुनिओ अहीं बिराजता हता; ने उपर
अनंत सिद्धभगवंतो अत्यारे बिराजी रह्या छे.–सादिअनंत काळ एम ने एम
बिराजमान रहेशे. तेमनी स्मृति माटे आ यात्रा छे.
आम गुरुदेव साथे सिद्धोने याद करता हता ने भक्ति करता करता सम्मेदशिखर
पावनतीर्थनी यात्रा करता हता. वनझाडीना रमणीय अने शांत वातावरण वच्चे
मोक्षमार्गनी वीतरागी भावनाओ स्फूरती हती. पगले पगले सन्तोना साथमां आवा
महान तीर्थनी यात्रा करता भक्तोने घणो ज हर्षोल्लास थतो हतो. अढी कलाक बाद
शीतलनाला ने गंधर्वनाला वटावीने लगभग पांच वागे दूर दूर देखाती पारसप्रभुनी
सुवर्णभद्र टूंकना दर्शन थया. ऊंची ऊंची टूंक देखतां, आपणे अहीं सुधी पहोंचवानुं छे’
एम पोताना ध्येयना लक्षे यात्रिकना पगमां नवुं ज जोर आवे छे ने पारसप्रभुना
जयजयकार करता आगळ वधे छे. थोडीवारमां चंद्रप्रभुनी टूंक पण देखाय छे.
शिखरजीना बंने छेडानी ऊंची ऊंची बे टूंक एकसाथे जोतां आखा शिखरजीतीर्थने जाणे
नयनोमां समावी दईए...ने बधाय सिद्धभगवंतोने ज्ञानमां समावी दईए–एवी
भक्तिभीनी ऊर्मि जागे छे; ने आ पावन तीर्थराजनी विशाळता पासे यात्रिकनुं शिर
झूकी जाय छे. थोडीवारमां पहेली टूंक आवी ने सौ यात्रिकोमां आनंद व्यापी गयो.
जयजयकार करता भीडने भेदीने कुंथुनाथ प्रभुना चरणोने भेट्या. बेनश्री–बेन
पूजनमंत्र बोल्या ने गुरुदेव साथे सौए ‘अर्घं–...स्वाहा’ कर्युं. दर्शन करीने गुरुदेव तो
झडपभेर बीजी टूंके पहोंच्या. नव टूंकना दर्शन बाद चंद्रप्रभुनी टूंक आवी. बधी टूंकोथी
जुदी दूर आवेली आ ललित टूंक जाणे के संसारथी दूर एवा चंद्रप्रभुनी एकत्वभावनाने
प्रसिद्ध करी रही छे...दूर के नजीक अमारे अमारा