Atmadharma magazine - Ank 283
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : वैशाख : २४९३
बाद टूंकुं प्रवचन करीने गुरुदेवना प्रभावनी प्रशंसा करी हती ने प्रेम व्यक्त कर्यो हतो.
ते उपरांत श्री अक्षयकुमारजी जैने पण उपाध्यक्ष तरीके स्वागत–प्रवचन कर्युं हतुं.
प्रवचनमां कर्ताकर्म अधिकार वंचातो हतो ने लाल किल्ला सामे लाल मंदिरनी बाजुमां
प्रवचन–मंडपमां चार–पांच हजार श्रोताजनो श्रवण करता हता.
प्रथम दिवसे रात्रे शेठ शांतिप्रसादजी शाहु गुरुदेव पासे आवेल, ने
भक्तिपूर्वक तत्त्वचर्चा करी हती, आत्माने शांति केम मळे ते जिज्ञासापूर्वक पूछता
हता. तथा गुरुदेवने पोताने त्यां उतरवा माटे विंनति करी हती; तेथी गुरुदेव तेमने
त्यां पधार्या हता. रात्रे चर्चा थई हती. लालमंदिरमां सांजे भक्ति थई हती. ता.
१९ना रोज सवारे प्रवचन पछी श्री जिनेन्द्र भगवाननी भव्य उल्लासकारी
रथयात्रा नीकळी हती; सफेद अश्वो सहित सोनेरी रथ अनेकविध कारीगरीथी
शोभतो हतो, ने भगवान जिनेन्द्रदेवना रथना सारथि तरीके गुरुदेव बेठा हता.
घणा उल्लास अने भक्तिपूर्वक रथयात्रा लालमंदिरथी शरू थईने वैझवाडा–मंदिरे
आवी हती. बपोरे समन्तभद्र–विद्यालयमां गया हता; त्यां विद्यानंदजी महाराज
साथे मुलाकात थई हती ने वात्सल्यपूर्वक अनेकविध चर्चा थई हती; आथी सौने
विशेष प्रसन्नता थई हती. श्री विद्यानंदजी महाराज बपोरे प्रवचन वखते पण
मंडपमां उपस्थित हता; ने प्रवचन पछी वीस मिनिटना प्रवचनमां प्रसन्नता व्यक्त
करी हती तथा जैन समाजमां शांति वधे एवी प्रेरणा करी हती. त्यारबाद विद्यानंदजी
महाराजना आदेशपूर्वक श्री शांतिप्रसादजी शाहुए दिल्ही जैनसमाज तरफथी
गुरुदेवने अभिनंदन–पत्र अर्पण कर्युं हतुं.
आम दिल्हीनो त्रण दिवसनो कार्यक्रम आनंदपूर्वक चाल्यो हतो, दिल्हीना
गौरवने शोभे एवो गुरुदेवनो प्रभाव हतो. दिल्हीमां लगभग पचीस जेटलां
जिनमंदिरो छे, तेमांथी अनेक मंदिरोना दर्शन यात्रिकोए कर्या. ता. १९ नी सांजे
यात्रासंघे दिल्हीथी मथुरा तीर्थधाममां प्रस्थान कर्युं.
ता. २० (चैत्र सुद ११) ना रोज सवारमां दिल्हीथी प्रस्थान करीने गुरुदेव
मथुरा पधार्या; मथुरा ए अंतिम केवळी भगवान जंबुस्वामीनुं मोक्षधाम छे; तथा
चोथाकाळमां भगवान रामचंद्रजीना वखतमां श्री मनु आदि सप्तर्षि श्रुतकेवळी
भगवंतोना पुनित चरणोथी पावन थयेलुं तीर्थधाम छे. आसपासनी भूमिमांथी