आजे पण संयमीजनो स्वाध्याय करे छे. बार तपमां स्वाध्याय समान तप बीजो छे
नहि ने थशे नहि; विनयपूर्वक स्वाध्यायमां तल्लीन थयेला बुद्धिमान मुनिने मनना
संकल्प–विकल्पो दूर थई जवाथी चित्तनी एकाग्रता थाय छे, एटले स्वाध्याय वडे
भगवान आत्माने शरीरथी भिन्न देखता हता, त्रण गुप्तिनुं पालन करता हता ने
शरीरथी निस्पृह थई, तेनुं ममत्व छोडीने आत्माने ध्यावता हता. ध्यानरूपी उत्तम
संपदाना स्वामी भगवान ध्यानाभ्यासरूप तपवडे ज कृतकृत्य थई गया हता; केमके
ध्यान ज उत्तम तप छे, बीजा बधा तप तो तेना परिकर छे. ध्याननी सिद्धिने माटे
अनुकुळ एवा द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावनुं ज भगवान सेवन करता हता. अध्यात्मतत्त्वने
जाणनारा भगवान अध्यात्मनी शुद्धिने माटे गिरिगूफा वगेरेमां ध्यान करता हता.
(जेने हाल प्रयाग–तीर्थ कहेवाय छे.) शुद्ध बुद्धिवाळा भगवान ध्याननी सिद्धिने माटे
त्यां एक वडवृक्ष नीचे मोटी शिला पर बिराज्या; अने पूर्वमुखे पद्मासने बेसीने,
लेश्यानी उत्कृष्ट शुद्धिपूर्वक चित्तने एकाग्र करीने ध्यान लगाव्युं.
अवगाहनत्व, अव्याबाधत्व अने अगुरुलघुत्व;–सिद्धपदना अभिलाषीए सिद्धप्रभुना
आ आठ गुणोनुं ध्यान करवुं जोईए, तथा द्रव्य क्षेत्र काळ ने भाव ए चारनी
अपेक्षाए पण तेमना स्वरूपनुं चिन्तन करवुं जोईए. ए रीते बारगुणयुक्त, मुक्त,
योगीओए ध्यान करवायोग्य छे. ध्यानना परिवार जेवी अनुप्रेक्षाओ पण भगवाने
चिन्तवी. धर्मध्यानमां तत्पर एवा ए विरागी भगवानने ज्ञानादिनी शक्तिने लीधे
जरापण प्रमाद रह्यो न हतो. ते अप्रमत्त भगवानने ज्ञानादि परिणामोमां परम
विशुद्धि प्रगटी ने अशुभलेश्या रंचमात्र न रही, शुक्ललेश्या प्रगटी. ते वखते
देदीप्यमान भगवानने मोहनो नाश करवा माटे ध्याननी एवी शक्ति स्फूरायमान थई–
जाणे के मोटी वीजळी झबकी! भयरहित भगवाने संकल्प–विकल्प दूर करीने,
मोहशत्रुनी सेनानो नाश करवा माटे पोताना