तेओ जाणता हता, एटले दोषोने सर्वथा छोडीने मात्र गुणोमां ज तेओ आसक्त रहेता
हता, पापयोगोथी तेओ पूर्ण विरक्त हता; अहिंसादि व्रतोनुं निरतिचार पालन करता
हता; ब्रह्मचर्यमां तेओ एकतान हता. तेमने धैर्य, क्षमा, ध्यानमां निरंतर तत्परता
अने परिषह आवे तोपण मार्गथी अच्युतपणुं हतुं. भगवान जिनकल्पी हता. जे साधु
एकला रहे अने आत्मचिन्तनमां मशगुल रहे, उपदेशादि प्रवृत्ति न करे तेने जिनकल्पी
कहेवाय छे; अने जे साधु संघनी साथे रहे, उपदेश आपे, दीक्षा आपे तेमने स्थविरकल्पी
हता, परंतु कोई दोष लागता न होवाथी प्रतिक्रमणनी के छेदोपस्थापननी जरूर न हती.
जो के भगवान गर्भमां आव्या त्यारथी ज त्रण ज्ञानसहित हता, चोथुं ज्ञान दीक्षा
वखते प्रगट्युं हतुं ने सिद्धपद तेमने आ भवमां जरूर प्रगटवानुं हतुं, तोपण
ज्ञानलोचनवंत ते भगवाने एक हजार वर्ष सुधी उत्कृष्ट तप कर्युं हतुं ने कर्मोनी
असंख्यात गुणश्रेणी निर्जरा करी हती. सदा जागृत रहेनारा ते योगीराज कदी सूता न
हता. भगवाननुं निरतिचार चारित्र स्वयमेव प्रायश्चितरूप हतुं, अर्थात् तेमां कोई
अतिचार लागता ज न होवाथी प्रायश्चितनी जरूर ज रही न हती–जेम सूर्य पोते
प्रकाशस्वरूप छे तेमां अंधकार छे ज नहि, पछी तेने पोतामांथी अंधकार दूर करवानुं
तथा ज्ञान–दर्शन–चारित्र–तप–वीर्य ए गुणोनो विनय कर्यो हतो, ए सिवाय बहारमां
तेमने विनय करवा योग्य कोई न हतुं; जे पोते ज प्रधानपुरूष होवाथी बधाने नम्रीभूत
करनारा हता तेओ भला कोनो विनय करे? वळी रत्नत्रयरूप मार्गमां व्यापार ए ज
तेमनुं ‘वैयावृत्य’ हतुं, ए रत्नत्रय सिवाय बीजा कोनी वैयावृत्ति करे? (दीन–दुःखी
जीवोनी सेवारूप व्यावृत्ति तो शुभकषायना तीव्र उदयमां ज संभवे छे; भगवानने तो
शुभकषाय पण एवो अतिशय मंद थई गयो हतो के तेमनी प्रवृत्ति बाह्यव्यापारथी
हटीने रत्नत्रयमार्गमां ज रहेती हती.)
धर्मसृष्टिना सर्जनहार हता. जो के शास्त्रो तेमने आधीन हता अर्थात् बार अंगना
तेओ