Atmadharma magazine - Ank 283
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९३
भगवाननुं निरतिचार उत्कृष्ट चारित्र
आहार ग्रहण कर्या बाद भगवान वनमां पधार्या ने निजगुणचिन्तनमां आरूढ
थया. भगवानने हेय अने उपादेय तत्त्वोनुं बराबर ज्ञान हतुं, गुण–दोषनी भिन्नताने
तेओ जाणता हता, एटले दोषोने सर्वथा छोडीने मात्र गुणोमां ज तेओ आसक्त रहेता
हता, पापयोगोथी तेओ पूर्ण विरक्त हता; अहिंसादि व्रतोनुं निरतिचार पालन करता
हता; ब्रह्मचर्यमां तेओ एकतान हता. तेमने धैर्य, क्षमा, ध्यानमां निरंतर तत्परता
अने परिषह आवे तोपण मार्गथी अच्युतपणुं हतुं. भगवान जिनकल्पी हता. जे साधु
एकला रहे अने आत्मचिन्तनमां मशगुल रहे, उपदेशादि प्रवृत्ति न करे तेने जिनकल्पी
कहेवाय छे; अने जे साधु संघनी साथे रहे, उपदेश आपे, दीक्षा आपे तेमने स्थविरकल्पी
कहेवाय छे. तीर्थंकरभगवंतो जिनकल्पी होय छे. भगवान सामायिक–चारित्रमां वर्तता
हता, परंतु कोई दोष लागता न होवाथी प्रतिक्रमणनी के छेदोपस्थापननी जरूर न हती.
जो के भगवान गर्भमां आव्या त्यारथी ज त्रण ज्ञानसहित हता, चोथुं ज्ञान दीक्षा
वखते प्रगट्युं हतुं ने सिद्धपद तेमने आ भवमां जरूर प्रगटवानुं हतुं, तोपण
ज्ञानलोचनवंत ते भगवाने एक हजार वर्ष सुधी उत्कृष्ट तप कर्युं हतुं ने कर्मोनी
असंख्यात गुणश्रेणी निर्जरा करी हती. सदा जागृत रहेनारा ते योगीराज कदी सूता न
हता. भगवाननुं निरतिचार चारित्र स्वयमेव प्रायश्चितरूप हतुं, अर्थात् तेमां कोई
अतिचार लागता ज न होवाथी प्रायश्चितनी जरूर ज रही न हती–जेम सूर्य पोते
प्रकाशस्वरूप छे तेमां अंधकार छे ज नहि, पछी तेने पोतामांथी अंधकार दूर करवानुं
क््यां रह्युं? ते परमेष्ठी भगवाने दीक्षा वखते सिद्धोने नमस्काररूप विनय कर्यो हतो,
तथा ज्ञान–दर्शन–चारित्र–तप–वीर्य ए गुणोनो विनय कर्यो हतो, ए सिवाय बहारमां
तेमने विनय करवा योग्य कोई न हतुं; जे पोते ज प्रधानपुरूष होवाथी बधाने नम्रीभूत
करनारा हता तेओ भला कोनो विनय करे? वळी रत्नत्रयरूप मार्गमां व्यापार ए ज
तेमनुं ‘वैयावृत्य’ हतुं, ए रत्नत्रय सिवाय बीजा कोनी वैयावृत्ति करे? (दीन–दुःखी
जीवोनी सेवारूप व्यावृत्ति तो शुभकषायना तीव्र उदयमां ज संभवे छे; भगवानने तो
शुभकषाय पण एवो अतिशय मंद थई गयो हतो के तेमनी प्रवृत्ति बाह्यव्यापारथी
हटीने रत्नत्रयमार्गमां ज रहेती हती.)
आ जगतमां जे कांई धर्मसृष्टि (धर्मनी रचना) छे ते बधी, सनातन भगवान
ऋषभदेवे स्वयं धारण करीने युगनी आदिमां प्रसिद्ध करी हती, ए रीते भगवान
धर्मसृष्टिना सर्जनहार हता. जो के शास्त्रो तेमने आधीन हता अर्थात् बार अंगना
तेओ