भगवानना मननी आ वात तमे केवी रीते जाणी? आ भरतक्षेत्रमां पहेलां कदी नहि
देखेली एवी आ दाननी विधिने तमे न बतावी होत तो कोण जाणी शकत? हे कुरुराज!
आज तमे अमारा माटे भगवानसमान पूज्य बन्या छो. तमे दानतीर्थना प्रवर्तक छो,
थाय, ने तरस्यो मानवी पाणीथी भरेलुं सरोवर देखीने प्रसन्न थाय, तेम भगवानना
उत्कृष्ट रूपने देखीने हुं अतिशय प्रसन्न थयो, ने ते कारणे मने जातिस्मरण थयुं, एटले
में भगवाननो अभिप्राय जाणी लीधो. पूर्वे आठमा भवमां ज्यारे भगवान वज्रजंघ
अने त्यारे भगवाननी साथे में पण बे चारणमुनिओने भक्तिथी आहारदान दीधुं हतुं;
तेना संस्कार याद आवतां आजे पण में ए ज विधिथी भगवानने आहारदान दीधुं.
विशुद्धता सहित मुनिवरोने दान देवानो प्रसंग महान भाग्यथी प्राप्त थाय छे.
अभय ए चार वस्तुओ देय (दानमां देवायोग्य) छे. रागादि दोषोथी दूर ने
सम्यक्त्वादि गुणसहित पुरुष ते पात्र छे. तेमां जे मिथ्याद्रष्टि छे पण व्रतशीलसहित छे
ते जघन्यपात्र छे; अव्रती सम्यग्द्रष्टि मध्यम पात्र छे; अने व्रत–शील–सहित सम्यग्द्रष्टि
ते उत्तम पात्र छे. व्रतशीलथी रहित एवा मिथ्याद्रष्टि ते पात्र नथी पण अपात्र छे.
मोक्षना साधक एवा उत्तम गुणवान मुनिराजने देवामां आवेलुं आहारदान
अपुनर्भवनुं (मोक्षनुं) कारण थाय छे. अहीं जे दिव्य पंचाश्चर्य (रत्नवृष्टि वगेरे) थया
ते दानना ज महिमाने प्रगट करे छे. हवे भगवान ऋषभदेवना तीर्थमां मुनि वगेरे
भक्तिपूर्वक उत्तमदान देवुं जोईए.
सोमप्रभनुं तथा श्रेयांसकुमारनुं सन्मान कर्युं. पछी गुरुदेव–ऋषभनाथना गुणोनुं
चिन्तन करता करता ते अयोध्यापुरी गया.