Atmadharma magazine - Ank 283
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९३
ए वखते आकाशमांथी देवो रत्नवृष्टि करवा लाग्या, पुष्पवृष्टि करवा लाग्या;
देवोनां नगारा गंभीर नादथी गाजवा लाग्या, सुगंधी वायु वहेवा लाग्यो ने देवो हर्षित
थईने “धन्य दान...धन्य पात्र...ने धन्य दाता...” एवी आकाशवाणी करवा लाग्या.
अहा, दाननी अनुमोदना करवाथी पण घणा लोको महानपुण्यने पाम्या.
अहीं कोई आशंका करे के मात्र अनुमोदना करवाथी पुण्यनी प्राप्ति कई रीते
थाय? तो तेनुं समाधान ए छे के पुण्य अने पापनुं बंधन थवामां एकला जीवना
परिणाम ज कारण छे, बाह्यकारणोने तो जिनेन्द्रदेवे फक्त ‘कारणनुं कारण (एटले के
निमित्त) कह्युं छे. ज्यारे पुण्यना साधन तरीके जीवोना शुभ परिणाम ज प्रधानकारण
छे त्यारे शुभकार्यनी अनुमोदना करनार जीवोने पण ते शुभफळनी प्राप्ति जरूर थाय छे.
कृतकृत्य एवा भगवान पोताना आंगणे पधारवाथी अने तेमने आहारदान
करवाथी बंने भाईओ परम हर्षथी पोताने कृतकृत्य मानवा लाग्या. ए रीते मुनिओना
आहारनी विधि प्रसिद्ध करीने, अने बंने भाईओने हर्षित करीने भगवान पुन: वन
तरफ चाल्या गया. केटलेक दूर सुधी बंने भाईओ भक्तिभीनां चित्ते भगवाननी
पाछळ गया, ने पछी रोकाता रोकाता पाछा फर्या; क्षणे क्षणे पोतानुं मुख पाछुं वाळीने
तेओ बंने, निरपेक्षपणे वनमां जई रहेला भगवानने फरीफरीने देखता हता. दूर दूर
जई रहेला भगवान ज्यांसुधी देखाया त्यांसुधी भगवान तरफ लागेली पोतानी
नजरने तथा चित्तवृत्तिने तेओ पाछी खेंची शक््या नहीं. तेओ वारंवार भगवाननी
कथा तथा तेमना गुणनी स्तुति करता हता; ने पृथ्वीपर पडेला भगवानना चरण–
चिह्नने (पगलांने) वारंवार प्रेमथी निहाळीने नमस्कार करता हता. नगरजनो आ बे
भाईने देखीने कहेता के राजा सोमप्रभ महाभाग्यवान छे के जेमने आवो उत्तम भाई
मळ्‌यो छे. रत्नवृष्टिथी चारेकोर वेरविखेर पडेला रत्नोने नगरजनो एकठा करता हता.
रत्नोरूपी पाषाणना ढगलाथी जे ऊंचुंनीचुं थई गयुं हतुं एवा राज–आंगणने
मुश्केलीथी ओळंगीने बंने भाईओ राजमहेलमां आव्या.
भगवान ऋषभदेवने पारणुं कराववाथी श्रेयांसकुमारनो यश समस्त जगतमां
प्रसरी गयो. मुनिने दान देवानी विधि सौथी पहेलां श्रेयांसकुमारे जाणी हती, ने
त्यारथी दानमार्ग शरू थयो. दाननी आवी विधि जाणीने राजा भरत वगेरेने महान
आश्चर्य थयुं; आश्चर्यथी तेओ विचारवा लाग्या के मौन धारण करनारा भगवाननो
अभिप्राय तेणे केवी रीते जाणी लीधो? देवोए पण आश्चर्य पामी श्रेयांसकुमारनुं
सन्मान कर्युं. महाराजा भरते पोते श्रेयांसकुमारने त्यां आवीने तेनो आदर