भगवान ऋषभदेव. भगवान ऋषभदेवनो आत्मा महाबलराजाना भवमां तेना
मुनिराजने भक्तिपूर्वक आहारदान करीने भोगभूमिमां अवतर्यो, ने प्रीतिकर
मुनिराजना उपदेशथी सम्यक्त्व पाम्यो. त्यांथी स्वर्गमां जईने पछी सुविधिराजा थया.
फरी स्वर्गमां जईने पछी वज्रनाभि चक्रवर्ती थया ने तीर्थंकरप्रकृति बांधी. त्यांथी
सर्वार्थसिद्धिमां गया...ने पछी ऋषभ अवतार थयो. ईन्द्रोए गर्भकल्याणक तथा
जन्मकल्याणक कर्या. राज व्यवस्था वगेरे द्वारा प्रजापालन करीने पछी संसारथी विरक्त
थईने मुनि थया. एक वर्ष सुधी तपश्चर्या बाद श्रेयांसकुमारना हाथे शेरडीना रसवडे
पारणुं कर्युं. अहीं सुधी आपणी कथा पहोंची छे.)
सहित दान दीधुं हतुं. मोक्षना साधक धर्मात्माना गुणो प्रत्ये आदरपूर्वक, श्रद्धापूर्वक, जे
दाता उत्तम दान दे छे ते मोक्षप्राप्ति माटे तत्पर थाय छे. अतिशय ईष्ट तथा सर्वोत्तम
पात्र एवा भगवानने श्रेयांसकुमारे पूर्वना संस्कारथी प्रेरित थईने नवधाभक्तिथी
प्रासुक आहारनुं दान दीधुं हतुं. भगवान ऋषभमुनिराज ऊभा ऊभा पोताना हाथमां
साधारण मनुष्य जेने धारण करी शकता नथी, जे हिंसादिथी रहित छे अने निर्वाणनुं
कारण छे एवा दिगंबररूपने भगवान धारण करता हता. तेओ ज्ञानदान देवा समर्थ
हता, ने आहारदान देनारने शीघ्र संसारसागरथी पार करनारा हता. मोक्षमार्गनो
उपदेश देनारा भगवानना बे हाथनी अंजलिमां श्रेयांसकुमार वगेरेए शेरडीना प्रासुक
रसनुं (ईक्षुरसनुं) दान दीधुं. ए दिवस हतो–वैशाख सुद त्रीज.