Atmadharma magazine - Ank 283
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९३
रीते राजस्थान–बिहार–बंगाळ वगेरे प्रदेशोनी यात्रा बाद आजे पुन: गुजरात–
प्रवेशनो जाणे उत्सव थतो होय!–एवुं वातावरण हतुं.
बीजा दिवसे सवारमां गुरुदेव गुजरातना पाटनगर अमदावाद शहेरमां पधार्या.
अने त्यांथी चैत्र वद दशम (ता. ४) ना रोज बोटाद शहेरमां पधार्या...जन्म–जयंती
उत्सवनिमित्ते गुरुदेव पधारता होवाथी बोटादमां उत्साहभर्युं भव्य स्वागत थयुं...
मंगळमां गुरुदेवे आत्मानुं आनंदमय जीवन बताव्युं. आत्माने ओळखतां पोतानी
जीवत्व शक्तिनी ताकातथी आत्मा आनंदमय जीवन जीवे छे–ते जीवन मांगळिक छे,
बोटादनुं जिनमंदिर ऊंचुं अने विशाळ छे, मूळनायक श्रेयांसनाथ भगवान, तथा उपर
नेमिनाथ भगवान वगेरे अनेक जिनभगवंतो बिराजे छे; जिनमंदिर तेम ज नगरी
अनेक सुशोभनो वडे शोभे छे अने गुरुदेवना जन्मोत्सवनी उत्साहभरी तैयारी चाली
रही छे.
एक पिता अपने
पुत्रोंको सीख देता है–
लौकिक योग्यता एवं
सज्जनताके उपरान्त, भगवान
अर्हन्तदेव द्वारा उपदिष्ट रत्नत्रयधर्मको
कभी मत भूलो! शास्त्रज्ञकी संगति
करो। रत्नत्रयसे भूषित सज्जनोंका
आदर व समागम करो। मुनि–
आर्यिका–श्रावक–श्राविका ऐसे चतुर्विध
संघकी जब जब अवसर मिले तब
आदरपूर्वक वन्दना करो
.....और
रत्नत्रयके सेवनमें सदैव तत्पर रहो।