Atmadharma magazine - Ank 283
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९३ आत्मधर्म : १३ :
बिराजे छे. कळश तथा ध्वजारोहण पण हर्षथी थयुं. तथा जिनवाणी समयसारनी
पण स्थापना थई. आम गुरुदेवना प्रतापे मेवाडमां राणा प्रतापनी राजधानीमां
जिनेन्द्रभगवंतोनी प्रतिष्ठा थई, ते देखीने अनेक भक्तो भक्तिथी नाची ऊठया
हता.
जिनेन्द्रप्रतिष्ठा पछी गुरुदेवना मंगल–प्रवचन बाद श्री जिनेन्द्रभगवाननी
भव्य रथयात्रा नीकळी हती. आ रथयात्रा माटे अजमेरथी एक खास रथ
मंगाववामां आव्यो हतो; आ रथ ८० वर्ष पहेलां ८०, ००० रूा. मां तैयार थयो
हतो, अत्यारे ४–प लाख रूा. थाय एवो सुंदर ने भव्य सोनेरी रथ हतो. रथमां
आगळ अंबाडी सहित बे हाथी तथा बे सफेद अश्व (प्लास्टरना) घणा सुशोभित
हता, ने सोनेरी कारीगरीथी शोभता रथमां वच्चे जिनेन्द्रदेव बिराजता हता, बंने
बाजु चामर ढळता हता. रथना सारथि तरीके गुरुदेव बेठा हता. आ उपरांत
आगळ हाथी, अजमेर–मंडळी, बेन्डवाजां वगेरे अनेक ठाठमाठथी रथयात्रा शोभती
हती. रथयात्रा लगभग त्रण कलाक सुधी शहेरमां फरी हती, ने आवी उल्लासकारी
रथयात्रा देखीने उदयपुरना नगरजनो आश्चर्य पामता हता. आ रीते उदयपुरना
मुमुक्षु मंडळे आनंद अने उत्साहपूर्वक गुरुदेवनी मंगळछायामां श्री जिनेन्द्र
भगवाननी प्रतिष्ठानो उत्सव कर्यो हतो. जिनेन्द्र भगवंतोनी भावभीनी प्रतिष्ठा
करीने बीजे दिवसे (ता. २) सवारमां उदयपुरथी बामणवाडा तरफ प्रस्थान कर्युं.
वच्चे, उदयपुरथी ४० माईल पर केसरीयाजीमां मंदिरमां दर्शन कर्या ने पछी
थोडीवारमां गुजरातमां प्रवेश कर्यो; –प्रवेशतांवेंत लख्युं हतुं के ‘गुजरात आपनुं
स्वागत करे छे.’ बामणवाडा पहोंचतां गुजरातना भाईओए तेम ज गामनी
जनताए उत्साहथी स्वागत कर्युं. शरूमां ज चैत्यालयमां भगवान पार्श्वनाथप्रभुनां
दर्शन कर्या...ने मांगळिक प्रवचन कर्युं. बामणवाळा जोके नानुं गाम छे पण अहींना
भाईश्री चंदुभाईए उत्साहपूर्वक बधी व्यवस्था करी हती ने गुजरातना सेंकडो
भाईओ पण आव्या हता. बपोरे पण आखा गामनी जनता प्रवचन सांभळवा
उमटी हती ने गुरुदेवे पण देशी गुजराती भाषामां प्रसन्नतापूर्वक भावभीनुं
प्रवचन कर्युं हतुं. लगभग बे मास बाद मीठी गुजराती भाषामां गुरुदेवना
प्रवचननो प्रवाह मुक्तपणे वहेतो हतो, ने ग्राम्यजनता पण समजे एवी सुगम
शैलीथी प्रवचन थयुं हतुं. प्रवचन बाद अहींना चैत्यालयमां पू. बेनश्री–बेने भक्ति
करावी हती.–आ