Atmadharma magazine - Ank 283
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९३
दर्शन कर्या हता. (कुण गाममां वेदी–प्रतिष्ठा–महोत्सव थयो हतो; ते प्रसंगे
गुरुदेवना दर्शन माटे हजारो लोको एकठा थया हता, पण गुरुदेव पधारी शक््या न
हता. ए ज रीते अजमेरमां पण भव्य स्वागतनी तैयारीओ हती) ता. २८ (चैत्र
वद पांचम) ना रोज भव्य स्वागतपूर्वक गुरुदेवे उदयपुर शहेरमां प्रवेश कर्यो.
प्रतिष्ठा माटेना मंडपमां त्रण–चार हजार माणसोनी मेदनीमां, आत्मानुं जीवन
बतावीने अपूर्व मांगळिक कर्युं, उदयपुर शहेरना मध्य चोकमां मुमुक्षु भाईओ
तरफथी नवुं जिनमंदिर बंधायु छे, तेमां चंद्रप्रभु वगेरे भगवंतोनी वेदी–प्रतिष्ठानो
उत्सव उजवायो हतो. आसपासना अनेक गामोथी पण घणा लोको उत्सवमां
आव्या हता, जाणे मेवाडी ने गुजराती बंधुओनुं धार्मिक संमेलन हतुं. राणा
प्रतापनी आ उदयपुर नगरी रळियामणी छे, ने कुदरती सौन्दर्यथी शोभी रही छे.
जैनधर्मनुं प्राचीन गौरव हजी पण नजरे पडे छे. अहींना एक मंदिरमां
सम्मेदशिखरजी पर्वतनी सुंदर आरसनी रचना छे. बीजा पण दशेक जिनमंदिरो छे.
वेदीप्रतिष्ठामां शांतिजाप, जिनबिंब स्थापना, झंडारोपण, पूजनविधान, ईन्द्रोनी
स्थापना, वेदीकळश–ध्वजशुद्धि, जलयात्रा वगेरे बधी विधि उत्साहपूर्वक थई हती.
गुरुदेवनो उतारो उदासीन आश्रमनी सामेना एक मकानमां हतो. चैत्र वद छठ्ठनी
सांजे लक्कडवास गामनी पाठशाळानी बाळाओए संवाद द्वारा तत्त्वचर्चा करी हती.
अहीं नानी बाळाओने पण छहढाळा वगेरे मोढे हतुं. आ वखते एम थतुं हतुं के
जैनबाळकोमां धार्मिक संस्कारो आपवा माटे जेटली जरूर जिनमंदिरनी छे एटली
ज जरूर जैन पाठशाळानी छे. आ प्रत्ये घणुं विशेष लक्ष आपवानी जरूर छे.
उदयपुरमां बंने वखत नियमितपणे गुरुदेवना प्रवचन चालता हता. चैत्र वद ८
ता. १–प–६७ ना रोज सवारमां जिनमंदिरमां श्री जिनेन्द्र भगवंतोनी
मंगलप्रतिष्ठा घणा आनंदोल्लासपूर्वक थई. मूळनायक भगवान चन्द्रप्रभु स्वामीनी
प्रतिमाना स्थापननी उछामणी जयपुरना शेठ श्री पूरणचंदजी गोदिकाए रूा. पंदर
हजार ने एकमां लीधी हती.
स्वस्तिक वगेरे कर्या बाद घणा भावपूर्वक गुरुदेवे स्वहस्ते जिनेन्द्र
भगवंतोने वेदी पर बिराजमान कर्या हता. उदयपुरनी जनताने घणो ज उल्लास
हतो. पांच हजार करतां वधु मेदनी उत्सव जोवा ऊभराणी हती. चंद्रप्रभुस्वामीनी
आसपास श्री नेमिनाथप्रभु तथा महावीरप्रभु बिराजमान छे. तथा शांतिनाथप्रभु
अने सिद्धप्रभु