मल्ल भागी जवाथी विजेता मल्ल एकलो शोभे, तेम मोहरहित भगवान शोभता
हता.
थया. पछी ज्ञान–दर्शन अने वीर्यमां विघ्न करनारी उद्धत्तप्रकृत्तिओने एकत्ववितर्क
नामना बीजा शुक्लध्यानवडे नष्ट करी, आ अतिशय दुःखकर एवा चारे घातीकर्मोने
ध्यानाग्निमां भस्म करीने भगवान ऋषभमुनिराज केवळज्ञानी अने विश्वदर्शी थया.
अहो! भगवान सर्वज्ञ थया! अनंत ज्ञान, दर्शन, चारित्र शुद्धसम्यक्त्व, दान, लाभ,
भोग, उपभोग ने वीर्य–एवी नवलब्धिरूप किरणोवडे प्रकाशमान, ऋषभजिनेन्द्ररूपी
सूर्य माह वद अगियारसे जगतने प्रकाशतो अने भव्यजीवोरूपी कमळने विकसावतो
उदय पाम्यो. अहा! त्रणलोकने आनंदकारी एवा सर्वज्ञतारूपी सूर्यना प्रकाशथी
भगवाननो आत्मा शोभी ऊठ्यो.
राजानो वैभव जोवा मळे तो केवा रसथी जुए छे!
पण अरे चेतनराजा! तारो पोतानो वैभव केवो
अपार छे ते तो जाण! जगतमां सौथी मोटो
महिमावंत चेतनराजा तुं छो. तारा अचिंत्य
चैतन्यवैभवनी पासे चक्रवर्तीना राजनीये कांई
एवा आत्मवैभवने जाणवो ते सर्व जैनसिद्धांतनो
सार छे.