एप्रिलना त्रण दिवस दिल्ही शहेरमां पधार्या ने
दिल्हीनी जनताने जे अध्यात्मसन्देश संभळाव्यो तेनो
थोडोक सार अहीं आप्यो छे.
साथे एकमेक एवा आत्मस्वभावने जाण्या वगर जीव संसारनी चार गतिमां
रखडी रह्यो छे. पुण्य करीने स्वर्गादिमां ने पाप करीने नरकादिमां–एम चार
गतिना भवचक्रमां भ्रमण करी रह्यो छे. ए भवनो आंटो केम मटे? तेनी आ वात
छे. श्रीमद् राजचंद्रजी १६ वर्षनी नानी वयमां भवचक्रनो आंटो मटाडवानी वात
करतां लखे छे के–
तोये अरे! भवचक्रनो आंटो नही एके टळ्यो.
आत्मानी नथी. अरे, रागनी क्रिया पण खरेखर आत्मानी नथी. ज्ञानानंदस्वरूप
आत्मानो जेने अनुभव नथी ते ज रागनी क्रियानो कर्ता थाय छे. ज्ञानने भूलीने
क्रोधादि परभावनो जे कर्ता थयो एटले के परभाव साथे एकत्वबुद्धिरूप प्रेम कर्यो
तेने आत्माना स्वभाव उपर क्रोध छे, अरुचि छे; तेने शास्त्रो मिथ्यात्व कहे छे ने ते
ज संसारनुं मूळ छे.