Atmadharma magazine - Ank 284
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 43 of 45

background image
: ४० : आत्मधर्म : जेठ : २४९३
आत्मानुं स्वरूप बराबर ओळख्या पछी ज तेमां परिणाम लागी शके, ने त्यारे ज
बीजा विचारो छूटे. स्वरूप समजवा माटे वारंवार तेना विचार–मंथनमां रोकातां पण
बीजा विचारो छूटता जाय छे. कदाच शरीरना विचार आवे तोपण ते शरीरथी हुं जुदो
छुं–एवी शैलीना विचार आवे छे.
प्रश्न:– चित्रोमां सिद्धभगवाननी नीचे बीज जेवो आकार केम होय छे? अने
भगवान तेनाथी अद्धर केम होय छे? (सुधाबेन पी. जैन No 1434)
उत्तर:– सिद्धभगवाननी नीचे जे बीज जेवो आकार छे तेने ‘सिद्धशिला’
कहेवाय छे. आ लोकमां नीचे ७ नरकभूमि, पछी आपणे रहीए छीए ते आ मध्यलोक,
पछी उपर देवलोक, अने ते बधाय उपर स्फटिकमणिनी सिद्धशिला छे. एनाथी पण थोडे
ऊंचे सिद्धभगवंतोना निवासरूप सिद्धलोक छे. एना पछी लोकनो छेडो आवी जाय छे,
त्यारपछी खाली आकाश सिवाय बीजुं कांई नथी. सिद्धभगवंतो सिद्धशिलाना आधारे
नथी रहेता पण निरालंबीपणे अद्धर रहे छे–एम सूचववा तेमने सिद्धशिलाथी जराक
ऊंचे बताववामां आवे छे.
बेन, तमारा प्रश्ननो जवाब चारमासथी न मळ्‌यो तेथी जरा निराश थया
हशो,–पण हवे तो तमारो उत्तर वांचीने उत्साहमां आव्या ने?
प्रश्न:– बधा तीर्थंकरोमां महावीर भगवाननुं नाम विशेष केम संभळाय छे?
(No 1434)
उत्तर:– केमके महावीर भगवान हजी हमणां (मात्र अढी हजार वर्ष पहेलां)
थई गया, बीजा तीर्थंकरो तेमना पूर्वे थई गया. अत्यारे महावीर भगवाननुं शासन
चाली रह्युं छे.–बाकी तो बधाय तीर्थंकर भगवंतो एकसरखा ज पूज्य छे.
प्रश्न:– अनेकान्त एटले शुं? (परेशकुमार जैन, नं. ३२० जामनगर)
उत्तर:– अनेक+अंत; अनेक एटले घणा, ने अंत एटले धर्म; एक ज वस्तुमां
घणा धर्मो एक साथे रहेला छे, तेथी वस्तुने अनेकान्तस्वरूप कहेवाय छे. ए जैनधर्मनी
ज खास विशेषता छे के अनेकान्त द्वारा वस्तुनुं साचुं स्वरूप देखाडे छे.
चार–पांच मासना भेगा थई गयेला बालविभागना कार्यमां अनेक सभ्योए
मदद करी छे, ते बदल तेमने धन्यवाद!