: जेठ : २४९३ आत्मधर्म : ३९ :
शुद्धजीव केवो छे ते लक्षमां लेवानुं छे. अने आ रीते शुद्धजीवने जे लक्षमां ल्ये. तेने ज
राग–द्वेषने अजीव कहेवानुं रहस्य समजाय छे.
प्रश्न:– चैतन्यशक्ति आत्मा, आ जडरूप शरीरमां शुं भाग भजवे छे?
(बकुल खारा, रायपुर No. 1317)
उत्तर:– शरीरमां कांई ज भाग भजवतो नथी; आत्मा पोते पोतामां कां तो
ज्ञान अथवा तो मोहभाव करे छे.
प्रश्न:– आत्मा अने शरीर भिन्न होवा छतां नवा नवा शरीरोमां आत्मा केम
स्थानांतर कर्या करे छे? ने जुना रूपने केम भूली जाय छे.? (No 1317)
उत्तर:– आत्मा अने शरीर जुदा होवा छतां, शरीर साथे एकत्वबुद्धिने लीधे
(एटले के शरीर हुं छुं एवी देहबुद्धिने लीधे) जीवने नवा नवा शरीरनो संयोग थया करे
छे जो ते भेदज्ञान करीने निर्मोहदशा प्रगट करे तो तेने फरीने शरीरनो संबंध थाय नहीं.
जुना रूपने एटले के पूर्वना भवोने ते भूली जाय छे तेनुं कारण ए छे के
अज्ञानने लीधे तेनी ज्ञानशक्ति घणी ज अल्प थई गई छे. ज्ञानशक्तिनी खीलवट करे
तो जीव बधुं जाणी शके छे.
प्रश्न:– जड–शरीरना अंगोने गतिमान करती शक्ति क्यांथी आवे छे? (No
1317)
उत्तर:– जड–शरीरना पुद्गलोमां ज गमन करवानी एक ताकात छे, एटले तेनुं
गतिमान थवुं के स्थिर थवुं–ए तेना स्वभावथी थाय छे, कोई बीजावडे नहीं.
प्रश्न:– निश्चित समय थतां आत्मा आ शरीरमांथी प्रस्थान केम करी जाय छे?
(1317)
उत्तर:– शरीर ए आत्मानी स्वाभाविक वस्तु नथी, ए तो संयोगरूप छे, ने
संयोग तेनो वियोग थाय ज. एटले आत्मा अविनाशीपणे पोताना भावअनुसार
बीजे चाल्यो जाय छे. संयोग सदा एक सरखा रहे नहीं. शरीरनो संयोग छे त्यारे पण
आत्मा चेतनरूपे रह्यो छे ने शरीर जडरूपे रह्युं छे,–बंने जुदां ज रह्या छे.–ए जुदांने
जुदा स्वरूपे ओळखवां तेनुं नाम भेदज्ञान छे.
प्रश्न:– आत्मामां लीनता करवा जतां वच्चे शरीरना विचारो केम आवे छे?
उत्तर:– लीनताना प्रयत्न पहेलां आत्मानुं वास्तविकस्वरूप लक्षगत करवुं
जोईए.