Atmadharma magazine - Ank 284
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ३८ : आत्मधर्म : जेठ : २४९३
ए वात समजाणी. चोथी तारीखे मारो जन्म होवाथी हुं चोथुं गुणस्थान पामुं ने आ
१४मुं वर्ष बेसतुं होवाथी भविष्यमां १४मुं गुणस्थान पामुं–एवी भावना जन्मदिवसे
भावुं छुं. पू. गुरुदेव अने पू. भगवती माताओनां दर्शन मने ने मारा कुटुंबीजनोने
आगळ वधवाना पुरुषार्थमां विशेष उपयोगी छे. हुं रोज ऊठीने तेमने वंदन करुं छुं
अने मारा जन्म–मरणना फेरा टळे एवी प्रार्थना करुं छुं
मने विचारो खूब आवे छे पण प्रतिकूळ संयोगो घणा होवाथी अमलमां मुकी
शक्ती नथी; छतां आकुळता के कलेश थतो नथी. आवा गुुरु मळ्‌या पछी कलेश थाय
खरो? गुरुदेवना शरणे रही मने तो निरंतर पू. भगवती माताओनी सेवा करवानी ने
तेमना चरणमां रहेवानी भावना छे; ते सफळ थाय तेवुं मांगुं छुं.
जयजिनेन्द्र
* “खावामां जेम केरीनो रस वहालो छे एथी अधिक मने जैनधर्म वहालो छे,
ने एना उपर प्रेम छे.” (स. नं. ६६७ वींछीया)
(एम. एम. पटेल: मुंबई) भाईश्री, आत्मधर्म अंक २८२ मां जणावेल चार
जीवोमांथी त्रण जीवोने नमस्कार करीने चोथा जीव बाबत आपे पूछ्युं, तो जणाववानुं
के तेमनुं नाम नारणभाई हतुं, ने तेओ अनेक वर्ष गुरुदेवना परिचयमां रह्या हता.
दसेक वर्ष पहेलां तेओ स्वर्गवास पामी गया छे. (बयाना शहेरमां सीमंधरप्रभुना
दर्शन वखते गुरुदेवना विशिष्ट उल्लासनो खास प्रसंग बनेलो तेथी ते संबंधी केटलीक
वात प्रसिद्धिमां मुकी हती; बाकी गुरुदेवना श्रीमुखथी बीजी घणी आनंदकारी वात
आवती होय छे, ए बधी कांई आत्मधर्ममां आपी शकाय नहीं. माटे ज साक्षात्
सत्संगनी बलिहारी छे.)
प्रश्न:– घणीवार राग–द्वेषने पुद्गल के अजीव कहेवामां आवे छे–ते कई
अपेक्षाए?
(अरविंद जे. जैन, मोरबी)
उत्तर:– राग–द्वेष शुद्धजीवस्वभावमां नथी; एटले ज्यारे शुद्धजीवस्वभावने
द्रष्टिमां लईने जोईए त्यारे तेमां राग–द्वेष नथी, एटले राग–द्वेष जीवना नथी–माटे
जीवथी विरुद्ध एवा अजीवना छे–एम कहेवामां आवे छे. राग–द्वेष तो जो के जीवनी
अशुद्धपर्यायमां छे, पण ते अशुद्धताय जीवनो स्वभाव नथी. आ रीते राग–द्वेषने अजीव
कहीने, राग–द्वेष वगरनो शुद्धजीव केवो छे ते ओळखाव्यो छे. तेथी ‘राग–द्वेष अजीवना
छे’ ए सांभळीने अजीवमां राग–द्वेषने शोधवाना नथी परंतु राग–द्वेष वगरनो