१४मुं वर्ष बेसतुं होवाथी भविष्यमां १४मुं गुणस्थान पामुं–एवी भावना जन्मदिवसे
भावुं छुं. पू. गुरुदेव अने पू. भगवती माताओनां दर्शन मने ने मारा कुटुंबीजनोने
आगळ वधवाना पुरुषार्थमां विशेष उपयोगी छे. हुं रोज ऊठीने तेमने वंदन करुं छुं
अने मारा जन्म–मरणना फेरा टळे एवी प्रार्थना करुं छुं
खरो? गुरुदेवना शरणे रही मने तो निरंतर पू. भगवती माताओनी सेवा करवानी ने
तेमना चरणमां रहेवानी भावना छे; ते सफळ थाय तेवुं मांगुं छुं.
के तेमनुं नाम नारणभाई हतुं, ने तेओ अनेक वर्ष गुरुदेवना परिचयमां रह्या हता.
दसेक वर्ष पहेलां तेओ स्वर्गवास पामी गया छे. (बयाना शहेरमां सीमंधरप्रभुना
दर्शन वखते गुरुदेवना विशिष्ट उल्लासनो खास प्रसंग बनेलो तेथी ते संबंधी केटलीक
वात प्रसिद्धिमां मुकी हती; बाकी गुरुदेवना श्रीमुखथी बीजी घणी आनंदकारी वात
आवती होय छे, ए बधी कांई आत्मधर्ममां आपी शकाय नहीं. माटे ज साक्षात्
सत्संगनी बलिहारी छे.)
जीवथी विरुद्ध एवा अजीवना छे–एम कहेवामां आवे छे. राग–द्वेष तो जो के जीवनी
अशुद्धपर्यायमां छे, पण ते अशुद्धताय जीवनो स्वभाव नथी. आ रीते राग–द्वेषने अजीव
कहीने, राग–द्वेष वगरनो शुद्धजीव केवो छे ते ओळखाव्यो छे. तेथी ‘राग–द्वेष अजीवना
छे’ ए सांभळीने अजीवमां राग–द्वेषने शोधवाना नथी परंतु राग–द्वेष वगरनो