Atmadharma magazine - Ank 284
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९३ आत्मधर्म : ३ :
श्री गुरु समजावे छे–
(राजकोट शहेरना प्रवचनोमांथी दोहन: वैशाख २०२३)
आत्मानुं हित करवा माटे ज्ञान अने राग बंनेना स्वरूपनी भिन्नता ओळखवी
जोईए. बंनेनी भिन्नतानो निर्णय करीने, हुं ज्ञान ज छुं, ज्ञानथी भिन्न जात ते हुं नहि–
एम अंतरमां अभ्यास वडे ज्ञानस्वरूप आत्मानो अनुभव थाय छे. ने आवा अनुभव
वडे ज मोक्षमार्ग प्रगटे छे.
आवा अनुभव माटेनो व्यवहार कयो? के सविकल्प दशामां ज्ञानद्वारा आत्माना
स्वभावनो निर्णय करवो ते व्यवहार छे. जेने पोतामां दुःख लागतुं होय ने ते दुःखथी
छूटवा चाहतो होय ते जीव गुरु पासे आवीने उपाय पूछे छे के प्रभो! आ आत्मा
दुःखोथी केम छूटे? बंधनथी बंधायेल गाय वगेरे पशु पण तेनाथी छूटकाराना प्रसंगे
आनंदथी उल्लसित थाय छे; तो अनादि काळथी बंधनथी बंधायेला आत्माने सन्तो
तेनाथी छूटकारानी रीत संभळावे छे ते सांभळतां मोक्षार्थी जीवने उल्लास आवे छे के
वाह! आ मारा आत्माना मोक्षनी वात सन्तो मने बतावे छे.–आम घणा आदरपूर्वक
मोक्षनो उपाय सांभळे छे.
आत्माने केम जाणवो तेनी आ वात छे. स्वसन्मुख थईने आत्माने जाणतां
सम्यग्दर्शन थाय छे ने तेमां सिद्ध जेवा सुखनो स्वाद आवे छे. सम्यग्दर्शन पामवानी
तैयारीवाळा जीवनी परिणतिनुं वर्णन करतां गुरुदेव कहे छे के स्वभावनो निर्णय करीने
तेना लक्षे अनुभवनो उद्यम करी रहेला जीवने विकल्प तो छे पण तेनुं जोर विकल्प
तरफ नथी जातुं; तेनुं जोर तो अंर्तस्वभाव तरफ ज जाय छे, जेवो स्वभाव ज्ञानना
निर्णयमां लीधो छे तेवो ज अनुभवमां लेवा मांगे छे, एटले तेनी परिणति स्वभाव
तरफ झुकती जाय छे ने विकल्प तूटीने निर्विकल्प अनुभव थाय छे. पहेलां