Atmadharma magazine - Ank 284
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : जेठ : २४९३
रागरूप विकल्प हतो तेनुं कांई आ फळ नथी, पण अंदर स्वभाव तरफ निर्णयनुं जोर
हतुं तेनुं आ फळ छे. जोके तेनुं आ फळ कहेवुं ते पण व्यवहार छे, खरेखर तो
सम्यग्दर्शन वखतनो ज जुदो प्रयत्न छे. आत्माना निर्णयना बळे वारंवार अभ्यास
करतां राग तरफनुं रुचिनुं जोर तूटवा मांडे छे ने स्वभाव तरफनुं जोर वधवा मांडे छे.
अंते रागना अवलंबननो भाव तोडीने अने स्वभावना अवलंबननो भाव प्रगट
करीने ते आत्मार्थी जीव निर्विकल्प अनुभव प्रगट करे छे.–आवी दशा प्रगट करवा माटे
अहीं जिज्ञासु शिष्य पूछे छे.
पोताना आत्माना अनुभव माटे पात्र थयेला शिष्ये पूछ्युं छे के आ आत्मा
आस्रवोथी एटले के दुःखथी केम छूटी शके?
हवे आ पूछवामां शिष्यने केटली वातनो स्वीकार आवी गयो? प्रथम तो
आत्मा छे; आत्मानी अवस्थामां दुःख छे, ते दुःख टळीने सुख प्रगटी शके छे. एवुं पूर्ण
सुख प्रगट करनारा सर्वज्ञ परमात्मा आ जगतमां छे, एना साधक सन्तो आ जगतमां
छे. एटले, मोक्षतत्त्व, संवर–निर्जरातत्त्व, तथा तेनाथी विरुद्ध एवा आस्रव ने
बंधतत्त्व, ए बधां तत्त्वोनी कबुलातपूर्वक शिष्यनो प्रश्न छे.
आत्मा सुखस्वरूप छे, ने दुःख तेनुं स्वरूप नथी, एटले दुःखथी छूटवानो उपाय
बनी शके छे. रागादि परभावोने जे आत्मानुं स्वरूप माने, अथवा शुभरागने सुखनुं
साधन माने तेने ते रागादिथी छूटवा माटेनो साचो प्रश्न ऊगे नहीं. रागने जे दुःखरूप
न स्वीकारे ते तेनाथी पाछो वळवानो उपाय केम करे?
आ रीते, रागादिने दुःखरूप जाण्या छे ने आत्मानो स्वभाव सुखरूप छे तेनी
जिज्ञासा जागी छे–एवा शिष्यनो प्रश्न छे के आत्मा दुःखरूप एवा आस्रवोथी कई रीते
छूटे? एवा शिष्यने दुःखथी छूटवानी विधि आचार्यभगवाने आ ७३मी गाथामां
बतावी छे.
भाई! प्रथम तो आत्माना स्वभावनो निर्णय कर. हुं ज्ञानदर्शनस्वरूप आत्मा
स्वसंवेदन–प्रत्यक्ष छुं; क्रोधादि परभावोनुं स्वामीत्व मारा ज्ञानमां नथी.–आम निर्णय
करीने, अंतरमां डुबकी मारतां विकल्परहित आनंदनी अनुभूति थाय छे, तेमां
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र समाय छे. आवी अनुभूति करवी ते ज दुःखथी छूटवानी
रीत छे.