Atmadharma magazine - Ank 284
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 8 of 45

background image
: जेठ : २४९३ आत्मधर्म : प :
आत्मा पोते पोताने प्रत्यक्ष न थई शके–एम कोई माने तो ते वात साची
नथी. ज्ञानमां एवी ताकात छे के स्वसंवेदनथी आत्माने प्रत्यक्ष करे. आत्माने
प्रत्यक्ष करवानी रागमां ताकात नथी पण ज्ञानमां तेवी ताकात छे. पोताना ज्ञानमां
पोतानी वस्तु गुप्त केम रही शके? बीजा विचार छोडीने सत्यस्वरूपने विचारमां
लईने शिष्य पहेलां तेनो निर्णय करे छे. पछी ते निर्णयना बळे अनुभव थाय छे.
चैतन्यस्वरूपने पामवा माटे शिष्य ते तरफ ढळतो जाय छे. रागनी अपेक्षा वगर
ज्ञानमां सीधो आत्माने पकडवा मांगे छे, एटले के आत्माने स्वसंवेदन–प्रत्यक्ष
करवा मांगे छे, ते माटे निर्णय कर्यो छे के मारो स्वभाव ज स्वसंवेदन–प्रत्यक्ष
थवानो छे, तेमां वच्चे रागनो पडदो रही शके नहि. अथवा, स्वानुभव करवा माटे
रागनी ओथ लेवी पडे एम पण नथी.–आटला निर्णय सुधी आव्या पछी हवे
साक्षात् अनुभव माटे शिष्यनो उद्यम छे.–तेनुं घणुं सरस वर्णन आचार्यदेवे कर्युं छे.
अज्ञानीनो तो काळ परद्रव्यनी ज चिन्तामां चाल्यो जाय छे, स्वद्रव्य शुं छे
तेना विचारनोय तेने अवकाश नथी. अहीं तो जेणे पोतानुं चित्त स्वद्रव्यनी
चिन्तामां जोड्युं छे, एवा जिज्ञासु शिष्यनी वात छे. तेने बहारनी बधी चिन्ता
छूटीने अंतरमां एक ज चिन्ता छे के मने मारा आत्मानो प्रत्यक्ष अनुभव कई रीते
थाय! अनुभव माटे तेनो निर्णय केवो छे तेनुं आ वर्णन छे. पहेलां ज्ञानवडे
आत्माना स्वभावनो निर्णय करवो. निर्णयमां ज जेने भूल होय तेने साचो
अनुभव थाय नहीं. रागने साधन बनावीने आत्मानो अनुभव करवा मांगे तो
थई शके नहीं. आत्माना प्रत्यक्ष अनुभवमां वच्चे बीजुं साधन छे ज नहीं.
आत्माना स्वभावने विकार साथे कारण–कार्यपणुं नथी. आवा आत्मानो प्रत्यक्ष
अनुभव करवो, अने ते पहेलां तेनो निर्णय करवो–ते करवा जेवुं छे. राग वखते
कांई राग ते निर्णय करतो नथी, पण ते वखतनुं ज्ञान पोतानी जाणवानी शक्तिथी
ते निर्णय करे छे, एटले ते निर्णय रागनुं कार्य नथी पण ज्ञाननुं ज कार्य छे. आवो
निर्णय करवो ते प्रत्यक्ष अनुभव माटेनो उपाय छे.
स्वानुभव ते मंगल छे. स्वानुभवमां आत्मा पोते पोताने स्पष्ट प्रकाशे छे;
स्वानुभवमां आत्मा सिवाय बीजा कोईनो हाथ नथी. आवा स्वसंवेदननी
ताकातवाळो जीव छे. आत्माना स्वरूपनो निर्णय करीने तेनुं आवुं स्वसंवेदन
करवुं–ते बंधनथी छूटवानो उपाय छे. आवा स्वसंवेदन वडे ज मोक्षमार्ग थाय छे.