Atmadharma magazine - Ank 284
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : जेठ : २४९३
जेम दीवाने देखवा माटे बीजा दीवानी जरूर पडती नथी, दीवो पोते ज
पोताने प्रकाशी रह्यो छे के हुं दीवो छुं; तेम आ आत्मा चैतन्यप्रकाशी दीवो पोते ज
पोताने स्वसंवेदनमां प्रकाशी रह्यो छे, ज्ञान पोते ज पोताने प्रकाशी रह्यो छे के हुं
ज्ञान छुं.–आ रीते आत्मा स्वयं प्रकाशी रह्यो छे, एने प्रकाशवा माटे बीजानी जरूर
पडती नथी. उपयोगमां मारो आत्मा छे ने रागमां मारो आत्मा नथी–एम धर्मी
स्पष्टपणे पोताने रागथी भिन्न अनुभवे छे. रागथी ने ईन्द्रियोथी पार एवा
अन्तर्मुख उपयोगवडे आत्मा पोते पोताने साक्षात् अनुभवे छे, ने ए अनुभवमां
परम आनंद थाय छे.
रागमां एवी ताकात नथी के आत्माने जाणे; ज्ञानमां ज एनी ताकात छे के
आत्माने जाणे. आ रीते राग अने ज्ञाननी भिन्नतानो निर्णय करीने ज्ञानवडे
आत्मानुं स्वसंवेदन करतां भेदज्ञान थाय छे; भेदज्ञान थतां ज आत्मा पोताने रागादि
बंधभावोथी जुदो अनुभवे छे.–आवा अनुभव वडे बंधनथी छूटाय छे ने मोक्ष पमाय
छे. चोथा गुणस्थाने सम्यग्द्रष्टिने पण आवो अनुभव थाय छे. अहा, आ स्वसंवेदननो
अपार महिमा छे, बधा गुणोनो रस स्वसंवेदनमां समाय छे. आवा शांत
अनुभवरसने ‘रसेन्द्र’ कह्यो छे एटले के बधा रसोमां शांतरस ते श्रेष्ठ छे. आवा
रसनो अनुभव केम प्रगटे तेनी आ वात छे.
शिष्ये पूछयुं छे के मारो आत्मा आस्रवोथी कई रीते छूटे?
आ प्रश्न पूछवा आव्यो त्यारे अशुभथी तो छूटेलो ज छे, अशुभथी निवर्त्यो
त्यारे तो आ सत्समागमे आवीने प्रश्न पूछे छे.
तेनो प्रश्न एम सूचवे छे के एकला अशुभथी छूटीने ते अटकी जतो नथी, पण
अशुभ ने शुभ एवा बधा आस्रवोथी छूटीने आनंदस्वरूप आत्मानो अनुभव करवा
मांगे छे. प्रभो, मारो आत्मा पापथी केम छूटे? एम न पूछ्युं, पण आस्रवोथी एटले के
पाप अने पुण्य बंनेथी मारो आत्मा केम छूटे ने ज्ञानस्वरूप आत्मा कई रीते
अनुभवमां आवे? एम पूछ्युं छे. आटली तो प्रश्नकार जिज्ञासुनी भूमिका छे; आटली
विचारदशा सुधी तो ते आव्यो छे.
एवा जिज्ञासु शिष्यने आचार्यभगवान प्रथम तो आत्माना स्वरूपनो निर्णय
करवानुं कहे छे. केवो निर्णय करवो तेनुं आ वर्णन चाले छे.