Atmadharma magazine - Ank 284
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 10 of 45

background image
: जेठ : २४९३ आत्मधर्म : ७ :
आत्माना अनुभवनी आ वात झीणी छे. झीणी एटले सारी, ऊंची, हितकारी;
झीणी लागे तोपण आ मारा हितनी उत्तम वात छे–एम महिमा लावीने समजवानो
उद्यम करवो जोईए.
केवो छे मारो आत्मा?–के जेना अनुभवथी मने सम्यग्दर्शन अने आनंद
थाय! ने आस्रवो टळे? प्रथम तो हुं आत्मा मारा स्वसंवेदनथी प्रत्यक्ष छुं. अखंड
विज्ञानघनस्वभावी हुं एक छुं; अनेक गुण–पर्यायना भेदोथी के प्रदेशभेदोथी हुं
भेदाई जतो नथी, पण अनंत गुण–पर्यायोथी अभेद एक विज्ञानघन छुं. वळी
आत्मानी निर्मळ अनुभूतिस्वरूप होवाथी हुं शुद्ध छुं; ते शुद्धतामां कर्ता–कर्म वगेरे
कारकोना भेदो नथी. छए कारको अभेदपणे पोतानी अनुभूतिमां समाई जाय छे.
आवी निर्मळ अनुभूतिस्वरूप होवाथी हुं शुद्ध छुं. एक शुद्ध ज्ञानस्वरूप एवो हुं,
माराथी अन्य एवा क्रोधादि परभावोना स्वामीपणे जरापण परिणमतो नथी, माटे
ममतारहित छुं. रागादि कोई अन्यभाव मारा धर्मनुं साधन थाय–एवी ममता मने
नथी. रागादि भावोनी साथे मारे कर्ता–कर्मपणानो संबंध जरापण नथी. हुं तो
चैतन्यघन छुं, चैतन्यघन एवो मारो आत्मा रागना स्वामीपणे परिणमतो नथी.
पण तेनाथी भिन्न ज्ञानपणे ज परिणमे छे; स्वभावथी ज हुं परिपूर्ण ज्ञान–
दर्शनमय छुं.–जुओ, धर्मी जीव आत्मानो आवो निर्णय करे छे. अने आवा
आत्माना अनुभव वडे ज आत्मा आस्रवोथी छूटे छे.
आवा आत्मानी ओळखाण अने अनुभव वडे ज्यारे आत्मा आस्रवोथी पाछो
वळ्‌यो त्यारे तेणे संसार छोड्यो कहेवाय. ज्ञानना अनुभव वडे आस्रवने छोडया वगर
संसार छूटे नहीं. संसार ए कोई बहारनी वस्तु नथी पण जीवमां अज्ञानवडे ऊभो
थयेलो आस्रवभाव ते ज संसार छे. अने ज्ञानवडे ते आस्रव छूटतां संसार छूटी जाय छे.
जैन शिक्षणवर्ग (प्रौढ भाईओ माटे)
सोनगढमां दर वर्षनी माफक प्रौढवयना भाईओ माटेनो जैन
शिक्षणवर्ग श्रावण सुद पांचम ने गुरुवार ता. १०–८–६७ थी शरू थशे, अने
श्रावण वद नोम ने मंगळवार ता. २९–८–६७ सुधी चालशे. वर्गमां आववा
ईच्छता जिज्ञासु भाईओए नीचेना सरनामे सूचना मोकली देवी–
श्री दि. जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ (सौराष्ट्र)