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करे छे ते ज त्रणलोकमां अतिशयरूप एवी तीर्थंकरप्रकृतिनुं उपार्जन करे छे. माटे जेओ
कल्याणना ईच्छुक छे तेओ भगवान जिनेन्द्रदेवना उपदेशेला (सम्यक्त्वपूर्वकना)
वात्सल्यगुणनो महिमा जाणी आ १६ मा वात्सल्यअंगनुं स्तवन–पूजन अने अर्चन
देवलोकने पामीने पछी जगतना उद्धारक तीर्थंकर थई निर्वाणने पामे छे.
साधीने हवे मोक्षमां जवाना टाणां आव्या छे...तो
आत्मार्थीने तेमां प्रमाद के अनुत्साह केम होय? घोरातिघोर
अडगपणे आत्माना अवलंबने मोक्षमार्गमां टकी रह्या
छे...ने मारे पण एमनुं ज अनुकरण करीने आत्माने
मोक्षमार्गे लई जवानो छे... संसारना घोरतिघोर दुःखोथी
हवे आ आत्माने बस थाओ...” आम संवेग–निर्वेद वगेरे
अनेक प्रकारे आत्माने उत्साह जगाडीने, मोक्षमार्गनो
महिमा प्रसिद्ध करीने समकिती पोताना आत्माने तेम ज
बीजाना आत्माने मोक्षमार्गमां द्रढपणे स्थिर करे छे, एनुं
नाम स्थितिकरण छे.
बतावीने तेने मार्ग प्रत्ये उत्साह जगाडे छे.–आवो
स्थितिकरणनो भाव धर्मीने सहेजे आवी जाय छे.