Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९३ आत्मधर्म : ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : १९ :
दशे जीवोना पूर्वभवो बतावीने गणधरदेव भरतने कहे छे के हे भरत! आपणे
बधा चरमशरीरी छीए. आ संसारमां तो ईष्ट–अनिष्ट वस्तुनो संयोग–वियोग थया ज
करे छे, ए जाणवा छतां तुं केम खेदखिन्न थाय छे!! परमपिता भगवान ऋषभदेव तो
अष्ट कर्मने नष्ट करीने अनुपम मोक्षपदने पाम्या, ए तो परम ईष्ट छे; ने आपणे पण
थोडा ज समयमां ए मोक्षमां जवानुं छे; तो भला, आवी संतोषनी वातमां विषाद केम
करे छे? भगवानना समागमथी आपणे शुद्धबुद्धिने पाम्या छीए, आत्मस्वरूपने जाण्युं
छे, ने मिथ्याद्रष्टिओने दुर्लभ एवा भगवानना ते श्रेष्ठपदने आपणे पण तुरतमां ज
पामवाना छीए. शुभाशुभकर्मवडे ईष्टमित्रनुं मरण थतां तो भले शोक थाय–केमके तेने
तो पाछो संसारमां जन्म थाय छे; परंतु जो भवनो नाश करीने परम ईष्ट एवुं सिद्धपद
मळे तो ए तो महान हर्षनी वात छे, तेमां खेद शानो? अरे भरत! भगवानना आठे
शत्रु नष्ट थया ने महान आठ गुण प्राप्त थया, तो भला! एमां शुं हानि थई गई?–के
जेथी तुं शोक करे छे? माटे हवे मोहने छोड....ने शोकने जीतवा माटे विशुद्धबुद्धिने धारण
कर. पूज्य पिताजीनुं शरीर छूटी जतां तुं आटलो बधो शोक करे छे तो देख, आ
देवलोको के जेओ भगवानना जन्म्या पहेलां ज अत्यंत अनुरागथी तेमनी सेवा करी
रह्या छे तेओ भगवानना शरीरने भस्म करीने आटला बधा आनंदथी केम नाची रह्या
छे!
कदाचित तुं एम कहीश के–‘हवे हुं प्रभुना दर्शन नहीं करी शकुं, हवे एमनां
दिव्यवचनो सांभळवा नहीं मळे ने एमनां चरणोमां मस्तक झुकाववानुं हवे नहीं मळे
एटले स्नेहवश घणो शोक थाय छे.’
तारुं ए कहेवुं भले ठीक होय, पण वीतेली वस्तुने प्राप्त करवानी प्रार्थना करवी
ए पण शुं भ्रान्ति नथी? अरे भरत! पिताजी तो त्रण लोकना अद्वितीय गुरु हता ने
तुं पण त्रण ज्ञाननो धारक छो, तो पछी मोहजन्य स्नेहवडे तारी उत्तमताने केम नष्ट
करी रह्यो छो? शुं तने आ ईन्द्रनी पण शरम नथी आवती? अने शुं तने खबर नथी
के ईन्द्रनी पहेलां ज तुं मोक्ष जवानो छो? अरे, आ संसारमां शुं ईष्ट? ने शुं अनिष्ट?
जीव व्यर्थ संकल्प करीने क्यांक राग ने क्यांक द्वेष करे छे, ने दुःखी थाय छे. दुःखथी
भरेली संसारनी आ स्थितिने धिक्कार हो. संसारनुं आवुं ज स्वरूप छे एम समजीने
विद्वानोए शोक न करवो जोईए. हे राजन! वस्तुनो सहज स्वभाव ज एवो छे;
संसारना स्वरूपने तो तुं ओळखे छे,–तो शुं तुं ए नथी जाणतो के अनंत संसारमां आ
जीवने अनेक जीवो साथे सेंकडो वखत संबंध थई चूक्यो छे.–तोपछी