उपजेलुं होवाथी स्थायी नथी, माटे ज विद्वानो तेने हेय समजे छे. जे भगवान पहेलां
आंखोवडे देखाता हता ते हवे हृदयमां बिराजी रह्या छे, तो एमां शोक करवा जेवुं शुं
छे? तुं पोताना चित्तमां ध्यानवडे सदा एने देख्या कर. यथार्थ वस्तुस्वरूपने चिन्तवीने
निर्मळज्ञानजळ वडे तुं आ शोकाग्निने बुझाव.
संसारभोगथी तृष्णाथी विरक्त थतो तथा मोक्षने माटे उत्सुक थतो ते अयोध्यानगरीमां
पाछो आव्यो.
मोक्षमार्गमां गमन कर्युं. दीक्षा लीधी के तरत तेने मनःपर्ययज्ञान प्रगट्युं, अने
त्यारबाद तरत ज केवळज्ञान प्रगट थयुं. जे भरत पहेलां राजाओ वडे पूजित हता ते
हवे ईन्द्रोवडे पण पूजित बन्या, ने त्रणलोकना स्वामी थया. मुनिवरोने जे परिचित छे
एवा ए भरतकेवळीए समस्त देशमां विहार करीने दिव्यध्वनिवडे जगतनुं कल्याण
कर्युं. पछी योगनिरोध करीने, जेमां शरीरबंधन छूटी गया छे ने सारभूत सम्यक्त्वादि
अनंत गुणोनी मूर्ति ज रही गई छे तथा जे अनंत सुखनो भंडार छे–एवा
आत्मधाममां ते भरतेश्वर स्थिर थया. ने ज्यां भगवान ऋषभदेव बिराजे छे एवा
सिद्धालयमां जईने बिराज्या.
जोयो हतो, ने दिव्यध्वनिवडे जेमणे आ भरतक्षेत्रमां मोक्षमार्ग वहेतो कर्यो हतो–एवा
भगवान ऋषभदेव अमने मोक्षरूपी उत्कृष्ट आत्म–सिद्धि प्रदान करो. जगतनुं मंगल
करो.