Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : श्रावण : २४९३
अज्ञानीनी माफक मोहित केम थाय छे? त्रिलोकनाथ तीर्थंकरदेवनुं शरीर पण कर्मोद्वारा
उपजेलुं होवाथी स्थायी नथी, माटे ज विद्वानो तेने हेय समजे छे. जे भगवान पहेलां
आंखोवडे देखाता हता ते हवे हृदयमां बिराजी रह्या छे, तो एमां शोक करवा जेवुं शुं
छे? तुं पोताना चित्तमां ध्यानवडे सदा एने देख्या कर. यथार्थ वस्तुस्वरूपने चिन्तवीने
निर्मळज्ञानजळ वडे तुं आ शोकाग्निने बुझाव.
आ प्रमाणे ऋषभसेनगणधरना परम उपदेशथी भरतनुं मन अतिशय शान्त
थयुं; चिन्ता छोडीने तेणे गणधरदेवना चरणोमां भक्तिथी नमस्कार कर्या, ने
संसारभोगथी तृष्णाथी विरक्त थतो तथा मोक्षने माटे उत्सुक थतो ते अयोध्यानगरीमां
पाछो आव्यो.
कोई एक दिवसे दर्पणमां जोतां, भगवान ऋषभदेवना मोक्षदूत समान सफेद
वाळने देखीने भरतजी वैरागी थया...राजलक्ष्मीने तृणवत छोडीने अगम्य एवा
मोक्षमार्गमां गमन कर्युं. दीक्षा लीधी के तरत तेने मनःपर्ययज्ञान प्रगट्युं, अने
त्यारबाद तरत ज केवळज्ञान प्रगट थयुं. जे भरत पहेलां राजाओ वडे पूजित हता ते
हवे ईन्द्रोवडे पण पूजित बन्या, ने त्रणलोकना स्वामी थया. मुनिवरोने जे परिचित छे
एवा ए भरतकेवळीए समस्त देशमां विहार करीने दिव्यध्वनिवडे जगतनुं कल्याण
कर्युं. पछी योगनिरोध करीने, जेमां शरीरबंधन छूटी गया छे ने सारभूत सम्यक्त्वादि
अनंत गुणोनी मूर्ति ज रही गई छे तथा जे अनंत सुखनो भंडार छे–एवा
आत्मधाममां ते भरतेश्वर स्थिर थया. ने ज्यां भगवान ऋषभदेव बिराजे छे एवा
सिद्धालयमां जईने बिराज्या.
सिद्धालयस्थित ए सिद्धप्रभुने नमस्कार हो.
भगवान ऋषभदेवनी सेवा करनारा सौनुं कल्याण थाओ. तीर्थंकरोमां जेओ
प्रथम हता, प्रथम चक्रवर्तीना जेओ पिता हता, मोक्षनो महान मार्ग जेमणे साक्षात्
जोयो हतो, ने दिव्यध्वनिवडे जेमणे आ भरतक्षेत्रमां मोक्षमार्ग वहेतो कर्यो हतो–एवा
भगवान ऋषभदेव अमने मोक्षरूपी उत्कृष्ट आत्म–सिद्धि प्रदान करो. जगतनुं मंगल
करो.
जय ऋषभदेव...........जय आदिनाथ