बतावी छे के तेना विचारमां ने मननमां ज्ञानने रोके तो स्वानुभवनो
मार्ग मळे ने जन्म–मरणनो फेरो टळे. माटे हे जीव! तारा वीर्यबळने
स्वतरफ उल्लसावीने तारा स्वभावनी हा पाड....ने पुरुषार्थनी तीखी
धाराए ते स्वभावनो अपूर्व पक्ष कर.–आम करवाथी तने तारुं स्वसंवेदन
थशे ने आनंद अनुभवाशे.
हो के नानो आकार हो, दरेक आत्मामां प्रदेशो ने गुणो सरखा छे, ओछा–वधारे नथी.
ज्ञान साथे अनंतगुणो छे, ते बतावीने अनंतशक्तिवाळा आत्मानी द्रष्टि कराववी छे.
श्रुतपर्यायमां आखो आत्मा अनंतगुणसहित प्रत्यक्ष थईने स्वसंवेदनमां आव्यो.
स्वानुभव वखते आत्मा पोताना द्रव्यगुणपर्यायमां तन्मय थईने पोते पोताने
स्पष्टपणे वेदे छे, ते वेदनमां रागनो अभाव छे. आवुं वेदन करे त्यारे सम्यग्दर्शन थाय
छे. आवा सम्यग्दर्शन पछी ज्ञाननी विशेष स्पष्टता ने चारित्रनी विशेष स्थिरता प्रगटे.
शुद्धिना सद्भावरूपे स्वसंवेदनमां स्पष्ट प्रकाशे छे. स्वसंवेदनमां चोथा गुणस्थाने पण
आवुं प्रत्यक्षपणुं छे; एना वगर प्रतीत साची थाय नहि. द्रव्य उपर द्रष्टि करतां आवुं
स्वसंवेदन प्रगटे छे ने सम्यग्दर्शन थाय छे. स्वसंवेदनमां प्रत्यक्ष थवानो