Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९३ आत्मधर्म : ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : २१ :
‘प्रकाशशक्ति’ ना प्रवचनरूप ‘आत्मप्रकाश’ ना बे भाग
आत्मधर्म अंक २७९ तथा २८प मां आवी गया छे. बाकीनो भाग अहीं
आप्यो छे. स्वसंवेदनरूप प्रकाश प्रगटाववानी एवी सुंदर रीत सन्तोए
बतावी छे के तेना विचारमां ने मननमां ज्ञानने रोके तो स्वानुभवनो
मार्ग मळे ने जन्म–मरणनो फेरो टळे. माटे हे जीव! तारा वीर्यबळने
स्वतरफ उल्लसावीने तारा स्वभावनी हा पाड....ने पुरुषार्थनी तीखी
धाराए ते स्वभावनो अपूर्व पक्ष कर.–आम करवाथी तने तारुं स्वसंवेदन
थशे ने आनंद अनुभवाशे.
भाई, तारो स्वभाव अचिंत्य छे, तारो आत्मवैभव अनंत सामर्थ्यवाळो छे.
क्षेत्र मोटुं होय माटे झाझा गुण ने क्षेत्र नानुं माटे ओछा गुण–एम नथी. मोटो आकार
हो के नानो आकार हो, दरेक आत्मामां प्रदेशो ने गुणो सरखा छे, ओछा–वधारे नथी.
ते गुणोनुं आ वर्णन छे. आत्माने ‘ज्ञानमात्र’ कहेतां तेनामां एकलुं ज्ञान नथी पण
ज्ञान साथे अनंतगुणो छे, ते बतावीने अनंतशक्तिवाळा आत्मानी द्रष्टि कराववी छे.
श्रुतपर्याये अंतरमां वळीने ज्यां चैतन्यस्वभावने ध्येय बनाव्यो त्यां तेनुं
प्रत्यक्ष स्वसंवेदन थयुं, स्वानुभवमां आत्मा स्वयं प्रकाशमानपणे प्रगट थयो.
श्रुतपर्यायमां आखो आत्मा अनंतगुणसहित प्रत्यक्ष थईने स्वसंवेदनमां आव्यो.
स्वानुभव वखते आत्मा पोताना द्रव्यगुणपर्यायमां तन्मय थईने पोते पोताने
स्पष्टपणे वेदे छे, ते वेदनमां रागनो अभाव छे. आवुं वेदन करे त्यारे सम्यग्दर्शन थाय
छे. आवा सम्यग्दर्शन पछी ज्ञाननी विशेष स्पष्टता ने चारित्रनी विशेष स्थिरता प्रगटे.
प्रकाशशक्तिने लीधे आत्मामां एवो स्वभाव छे के पोते पोताना स्वसंवेदनथी
ज प्रत्यक्ष थाय. अरूपी अतीन्द्रिय आत्मा रागादिना अभावरूपे ने अनंतगुणोनी
शुद्धिना सद्भावरूपे स्वसंवेदनमां स्पष्ट प्रकाशे छे. स्वसंवेदनमां चोथा गुणस्थाने पण
आवुं प्रत्यक्षपणुं छे; एना वगर प्रतीत साची थाय नहि. द्रव्य उपर द्रष्टि करतां आवुं
स्वसंवेदन प्रगटे छे ने सम्यग्दर्शन थाय छे. स्वसंवेदनमां प्रत्यक्ष थवानो