Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 31 of 75

background image
: २२ : आत्मधर्म : ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : श्रावण : २४९३
आत्मानो स्वभाव त्रिकाळ छे, पण ते प्रगटे क्यारे? के एवा स्वभावसन्मुख द्रष्टि करे
त्यारे.
अरे, आवा आत्मस्वरूपना विचारमां–मननमां ज्ञानने रोके तो तेना
अनुभवनो मार्ग मळे, ने जन्म–मरणनो फेरो मटे. मांड आवो दुर्लभ अवसर मळ्‌यो
तेमां जो आ न समजे तो क्यांय आरो आवे तेम नथी. तारी आत्मवस्तु एवी छे के
एना उपर नजर करतां ज न्याल करी द्ये. भाई, द्रष्टि करवा लायक आत्मा केवो छे–के
जेना उपर द्रष्टि मुकतां सम्यग्दर्शनरूपी बीज ऊगे ने केवळज्ञान थाय!–तो कहे छे के
स्वसंवेदनमां प्रत्यक्ष थवानो जेनो स्वभाव छे एवा आत्माने द्रष्टिमां ले. एने द्रंष्टिमां
लेतां ज आनंदसहित स्वसंवेदन थशे सम्यग्दर्शन थाय ने आनंदसहित आत्मा प्रत्यक्ष
न थाय–एम बने नहीं. जेने आनंदनो अनुभव नथी तेने सम्यग्दर्शन थयुं ज नथी.
साची श्रद्धा छे ने आनंद नथी, अथवा ज्ञान छे ने आनंद नथी,–एम कोई कहे तो तेणे
अनंतगुणना पिंडने प्रतीतमां लीधो ज नथी; आत्मामां ज्ञान–श्रद्धा–आनंद वगेरे सर्व
गुणोनुं परिणमन एक साथे छे. ‘सर्वगुणांश ते सम्यक्त्व’–जोके सम्यक्त्व तो
श्रद्धागुणनी पर्याय छे, पण ते श्रद्धानी साथे आनंद छे, ज्ञान छे, प्रत्यक्षपणुं छे, प्रभुता
छे,–एम सर्वे गुणो भेगा परिणमे छे; ज्ञान अने आनंदने सर्वथा जुदा माने, अथवा
श्रद्धा अने आनंदने सर्वथा जुदा माने तेने अखंड आत्मानो अनुभव ज नथी,
अनेकान्तनी तेने खबर नथी.
रागने लीधे आत्मा प्रत्यक्ष थाय–एवो नथी. जेणे रागने आत्माना
स्वसंवेदननुं साधन मान्युं तेणे स्वसंवेदनमय प्रकाशशक्तिवाळा आत्माने जाण्यो नथी,
एणे तो रागने ज आत्मा मान्यो छे. रागवडे आत्मानो अनुभव थवानुं मान्युं तेणे
रागने ज आत्मा मान्यो. अंदरना सूक्ष्म गुण–गुणीभेदना विकल्पमांये एवी ताकात
नथी के ते आत्मानुं प्रत्यक्ष वेदन करी शके. प्रकाशगुणमां एवी ताकात छे के ते
परिणमीने स्वसंवेदनमां आत्माने प्रत्यक्ष करे. आवा वैभववाळा भगवान आत्माने
विकल्पगम्य मान्यो ते तो तेनो अपवाद करवा जेवुं थयुं, जेम मोटा राजाने भीखारी
कहीने कोई बोलावे तो तेमां राजानुं अपमान थाय छे, तेम जगतमां सौथी मोटो आ
चैतन्यराजा, तेने एक तूच्छ रागमां प्राप्त थाय एवो मानी लेवो ते तेनुं अपमान छे,
मोटो गुन्हो छे, ने ते गुन्हानी शिक्षा संसाररूपी जेल छे. भाई, आ संसारनी जेलमां
अनंतकाळथी तुं पूरायेलो छो; हवे आ जेलमांथी तारे छूटवुं होय तो चैतन्यराजा जेवो
छे तेवो तुं