Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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श्रावण : २४९३ आत्मधर्म : ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : २९ :
उत्तर:– अरे भाई! एम नथी. आंधळो तेना पगथी चाले छे, कांई लंगडो तेने
नथी चलावतो. तेम शरीर अने आत्मानो संयोग होवा छतां, शरीर तेनी पोतानी
शक्तिथी चाले छे, तेनामां ज्ञान न होवा छतां ते स्वयं पोतानी शक्तिथी ज हालेचाले
छे, आत्मा तेने नथी हलावतो. आत्मा शरीरनी क्रिया करे छे–एम अज्ञानथी ज
प्रतिभासे छे; तेमज शरीरनी आंख वडे आत्मा देखे छे–एम पण अज्ञानथी ज
प्रतिभासे छे. हुं तो ज्ञान छुं ने शरीर तो जड छे, हुं तो जाणनार छुं ने शरीर आंधळुं
छे, हुं तो अरूपी छुं ने शरीर जड छे,–बंनेनी क्रियाओ अत्यंत भिन्न छे–एवुं भेदज्ञान
अज्ञानी जीव करतो नथी, ने भेदज्ञान विना जगतमां कोई शरण भूत नथी, क्यांय
शांति के समाधि नथी. अज्ञानी जीव देहथी भिन्न आत्माना भान विना अनादिथी
अनाथ थईने रह्यो छे. देह अने आत्मानो संयोग देखीने एक्तानो भ्रम अज्ञानीने थई
गयो छे, ने तेथी ते संसारमां रखडे छे. संयोग होवा छतां बंनेनी क्रियाओ जुदी ज छे–
एम जो भिन्नता ओळखे तो देहबुद्धि छोडे ने आत्मामां एकाग्रता करे.–ए रीते
आत्मामां एकाग्रताथी समाधि थाय, शांति थाय ने भवभ्रमण छूटे.
।। ९१।।
देह अने आत्मानो संयोग होवा छतां, भेदज्ञानी अंतरात्मा तेमने भिन्नभिन्न
समजे छे, ए वात हवे ९२ मी गाथामां कहेशे.
देह अने आत्मा एकक्षेत्रे होवा छतां वच्चे ‘अत्यंत अभाव’ रूपी मोटो पर्वत छे.