Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९३ आत्मधर्म : ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : ३१ :
ए रीते भगवान अर्हंतना ज्ञानद्वारा मोहना नाशनो उपाय बताव्यो; हवे
ए ज वात बीजा प्रकारे बतावे छे, तेमां शास्त्रना ज्ञानद्वारा मोहना नाशनी रीत
बतावे छे: प्रथम तो, जेणे प्रथम भूमिकामां गमन कर्युं छे एवा जीवनी वात छे.
सर्वज्ञभगवान केवा होय? मारो आत्मा केवो छे? मारा आत्मानुं स्वरूप समजीने
मारे मारुं हित करवुं छे–एवुं जेने लक्ष होय ते जीव मोहना नाशने माटे शास्त्रनो
अभ्यास क्या प्रकारे करे? ते बतावे छे. ते जीव सर्वज्ञोपज्ञ एवा द्रव्यश्रुतने प्राप्त
करीने, एटले के भगवानना कहेला साचा आगम केवा होय तेनो निर्णय करीने,
पछी तेमां ज क्रीडा करे छे...एटले आगममां भगवाने शुं कह्युं छे–तेना निर्णय
माटे सतत अंतरमंथन करे छे. द्रव्यश्रुतना वाच्यरूप शुद्धआत्मा केवो छे तेनुं
चिंतन–मनन करवुं एनुं ज नाम द्रव्यश्रुतमां क्रीडा छे.
द्रव्यश्रुतना रहस्यना ऊंडा विचारमां ऊतरे त्यां मुमुक्षुने एम थाय के
आहा! आमां आवी गंभीरता छे!! राजा पग धोतो होय ने जे मजा आवे–तेना
करतां श्रुतना सूक्ष्म रहस्योना उकेलमां जे मजा आवे–ते तो जगतथी जुदी जातनी
छे. श्रुतना रहस्यना चिंतननो रस वधतां जगतना विषयोनो रस ऊडी जाय छे.
अहो, श्रुतज्ञानना अर्थना चिंतनवडे मोहनी गांठ तूटी जाय छे. श्रुतनुं रहस्य
ज्यां ख्यालमां आव्युं के अहो, आ तो चिदानंद स्वभावमां स्वसन्मुखता करावे
छे...वाह! भगवाननी वाणी! वाह, दिगंबर संतो!–ए तो जाणे उपरथी
सिद्धभगवान ऊतर्या! अहा, भावलिंगी दिगंबर संतमुनिओ!–ए तो आपणा
परमेश्वर छे, ए तो भगवान छे. भगवान श्री कुंदकुंदाचार्य, पूज्यपादस्वामी,
धरसेनस्वामी, वीरसेनस्वामी, जिनसेनस्वामी, नेमिचंद्रसिद्धांतचक्रवर्ती,
समन्तभद्रस्वामी, अमृतचंद्रस्वामी, पद्मप्रभस्वामी, अकलंकस्वामी,
विद्यानंदस्वामी, उमास्वामी, कार्तिकेयस्वामी–ए बधाय सन्तोए अलौकिक काम
कर्या छे.
अहा! सर्वज्ञनी वाणी अने सन्तोनी वाणी चैतन्यशक्तिना रहस्यो
खोलीने आत्मस्वभावनी सन्मुखता करावे छे. एवी वाणीने ओळखीने तेमां
क्रीडा करतां, तेनुं चिंतन–मनन करतां ज्ञानना विशिष्ट संस्कार वडे आनंदनी
स्फुरणा थाय छे, आनंदना फूवारा फूटे छे, आनंदना झरा झरे छे. जुओ, आ
श्रुतज्ञाननी क्रीडानो लोकोत्तर आनंद! हजी श्रुतनो पण जेने निर्णय न होय ते
शेमां क्रीडा करशे? अहीं तो जेणे भूमिकामां गमन कर्युं छे एटले देव–गुरु–शास्त्र
केवा होय तेनी कंईक