बतावे छे: प्रथम तो, जेणे प्रथम भूमिकामां गमन कर्युं छे एवा जीवनी वात छे.
सर्वज्ञभगवान केवा होय? मारो आत्मा केवो छे? मारा आत्मानुं स्वरूप समजीने
अभ्यास क्या प्रकारे करे? ते बतावे छे. ते जीव सर्वज्ञोपज्ञ एवा द्रव्यश्रुतने प्राप्त
करीने, एटले के भगवानना कहेला साचा आगम केवा होय तेनो निर्णय करीने,
पछी तेमां ज क्रीडा करे छे...एटले आगममां भगवाने शुं कह्युं छे–तेना निर्णय
माटे सतत अंतरमंथन करे छे. द्रव्यश्रुतना वाच्यरूप शुद्धआत्मा केवो छे तेनुं
चिंतन–मनन करवुं एनुं ज नाम द्रव्यश्रुतमां क्रीडा छे.
करतां श्रुतना सूक्ष्म रहस्योना उकेलमां जे मजा आवे–ते तो जगतथी जुदी जातनी
अहो, श्रुतज्ञानना अर्थना चिंतनवडे मोहनी गांठ तूटी जाय छे. श्रुतनुं रहस्य
ज्यां ख्यालमां आव्युं के अहो, आ तो चिदानंद स्वभावमां स्वसन्मुखता करावे
छे...वाह! भगवाननी वाणी! वाह, दिगंबर संतो!–ए तो जाणे उपरथी
सिद्धभगवान ऊतर्या! अहा, भावलिंगी दिगंबर संतमुनिओ!–ए तो आपणा
परमेश्वर छे, ए तो भगवान छे. भगवान श्री कुंदकुंदाचार्य, पूज्यपादस्वामी,
धरसेनस्वामी, वीरसेनस्वामी, जिनसेनस्वामी, नेमिचंद्रसिद्धांतचक्रवर्ती,
समन्तभद्रस्वामी, अमृतचंद्रस्वामी, पद्मप्रभस्वामी, अकलंकस्वामी,
विद्यानंदस्वामी, उमास्वामी, कार्तिकेयस्वामी–ए बधाय सन्तोए अलौकिक काम
क्रीडा करतां, तेनुं चिंतन–मनन करतां ज्ञानना विशिष्ट संस्कार वडे आनंदनी
स्फुरणा थाय छे, आनंदना फूवारा फूटे छे, आनंदना झरा झरे छे. जुओ, आ
श्रुतज्ञाननी क्रीडानो लोकोत्तर आनंद! हजी श्रुतनो पण जेने निर्णय न होय ते
शेमां क्रीडा करशे? अहीं तो जेणे भूमिकामां गमन कर्युं छे एटले देव–गुरु–शास्त्र
केवा होय तेनी कंईक