सम्यक्त्व प्रगट करे छे–तेनी आ वात छे. द्रव्यश्रुतमां भगवाने एवी वात करी छे के
जेना अभ्यासथी आनंदना फूवारा छूटे! भगवान आत्मामां आनंदनुं सरोवर भर्युं छे,
तेनी सन्मुखताना अभ्यासथी एकाग्रता वडे आनंदना फूवारा फूटे छे. अनुभूतिमां
आनंदना झरा चैतन्यसरोवरमांथी वहे छे.
अंतरमां स्वसन्मुख स्वसंवेदन जाग्युं त्यारे ते जीव द्रव्यश्रुतना रहस्यने पाम्यो. ज्यां
एवुं रहस्य पाम्यो त्यां अंतरनी अनुभूतिमां आनंदना झरणां झरवा
मांड्या...शास्त्रना अभ्यासथी, तेना संस्कारथी विशिष्ट स्वसंवेदन शक्तिरूप संपदा
प्रगट करीने, आनंदना फूवारा सहित प्रत्यक्षादि प्रमाणथी यथार्थ वस्तुस्वरूप जाणतां
मोहनो क्षय थाय छे. अहो, मोहना नाशनो अमोघ उपाय–कदी निष्फळ न जाय एवो
अफर उपाय संतोए प्रसिद्ध कर्यो छे.
भावश्रुतमां आनंदना फूवारा छे. प्रत्यक्ष सहित परोक्ष प्रमाण होय तो ते पण आत्माने
यथार्थ जाणे छे. प्रत्यक्षनी अपेक्षा वगरनुं एकलुं परोक्षज्ञान तो परालंबी छे, ते
आत्मानुं यथार्थ संवेदन करी शक्तुं नथी. आत्मा तरफ झूकीने प्रत्यक्ष थयेलुं ज्ञान, अने
तेनी साथे अविरुद्ध एवुं परोक्षप्रमाण, तेनाथी आत्माने जाणतां अंदरथी आनंदना
झरणां वहे छे,–आ सम्यग्दर्शन प्राप्त करवानो ने मोहनो नाश करवानो अमोघ उपाय
छे, एने माटेनो सोनेरी अवसर अत्यारे प्राप्त थयो छे.
छे...पछी तेमां ज लीन थतां पूर्ण शुद्धात्मानी प्राप्ति थाय छे ने सर्व मोहनो नाश थाय
छे.–बधाय तीर्थंकर भगवंतो अने मुनिवरो आ ज एक उपायथी मोहनो नाश करीने
मुक्ति पाम्या...ने तेमनी वाणीद्वारा जगतने पण आ एक ज मार्ग उपदेश्यो. आ एक
ज मार्ग छे ने बीजो मार्ग नथी–एम पहेलां कह्युं हतुं; ने अहीं गाथा ८६मां कह्युं के
सम्यक्प्रकारे श्रुतना अभ्यासथी, तेमां क्रीडा करतां तेना