Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९३ आत्मधर्म : ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : ३३ :
संस्कारथी विशिष्ट ज्ञानसंवेदननी शक्तिरूप संपदा प्रगट करतां, आनंदना भेदसहित
भावश्रुतज्ञान वडे वस्तुस्वरूप जाणतां मोहनो नाश थाय छे. आ रीते भावज्ञानना
अवलंबनवडे द्रढ परिणामथी द्रव्यश्रुतनो सम्यक् अभ्यास ते मोहक्षयनो उपाय छे.–
आथी एम न समजवुं के पहेलां कह्यो हतो ते उपाय अने अहीं कह्यो ते उपाय जुदा
प्रकारनो छे; कांई जुदा जुदा बे उपाय नथी. एक ज प्रकारनो उपाय छे, ते जुदी जुदी
शैलीथी समजाव्यो छे. अरिहंतदेवनुं स्वरूप ओळखवा जाय तो तेमां आगमनो
अभ्यास आवी ज जाय छे, केम के आगम वगर अरिहंतनुं स्वरूप क्यांथी जाणशे?
अने सम्यक् द्रव्यश्रुतनो अभ्यास करवामां पण सर्वज्ञनी ओळखाण भेगी आवे ज छे
केमके आगमना मूळ प्रणेता तो सर्वज्ञ अरिहंतदेव छे, तेमनी ओळखाण विना
आगमनी ओळखाण थाय नहि.
हवे ए रीते अरिहंतनी ओळखाण वडे के आगमना सम्यक् अभ्यास वडे ज्यारे
स्वसन्मुखज्ञानथी आत्माना स्वरूपनो निर्णय करे त्यारे ज मोहनो नाश थाय छे. एटले
बंने शैलीमां मोहना नाशनो मूळ उपाय तो आ ज छे के शुद्ध चेतनाथी व्याप्त एवा
सम्यक्त्वसाधक सन्तोने नमस्कार हो.
‘प्रवचन मंडप’ ना एक चित्रमां शांतिनाथ
भगवानना पूर्वभवोना बे प्रसंगोनुं आलेखन छे.
आजथी १८ वर्ष पहेलां (सं. २००प मां) ज्यारे छ
बहेनोए ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा लीधी अने आत्मधर्मनो पहेलो
ब्रह्मचर्यअंक प्रगट थयो त्यारे तेमां आपवा माटे ए बे
प्रसंगोनी कथा तैयार करी हती, पण प्रसंगवशात् ते
आजे आ चोथा–ब्रह्मचर्यअंकमां, नव बहेनोनी
ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा प्रसंगे प्रगट थाय छे. (जुओ पाछळ)
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