भावश्रुतज्ञान वडे वस्तुस्वरूप जाणतां मोहनो नाश थाय छे. आ रीते भावज्ञानना
अवलंबनवडे द्रढ परिणामथी द्रव्यश्रुतनो सम्यक् अभ्यास ते मोहक्षयनो उपाय छे.–
आथी एम न समजवुं के पहेलां कह्यो हतो ते उपाय अने अहीं कह्यो ते उपाय जुदा
शैलीथी समजाव्यो छे. अरिहंतदेवनुं स्वरूप ओळखवा जाय तो तेमां आगमनो
अभ्यास आवी ज जाय छे, केम के आगम वगर अरिहंतनुं स्वरूप क्यांथी जाणशे?
अने सम्यक् द्रव्यश्रुतनो अभ्यास करवामां पण सर्वज्ञनी ओळखाण भेगी आवे ज छे
केमके आगमना मूळ प्रणेता तो सर्वज्ञ अरिहंतदेव छे, तेमनी ओळखाण विना
आगमनी ओळखाण थाय नहि.
बंने शैलीमां मोहना नाशनो मूळ उपाय तो आ ज छे के शुद्ध चेतनाथी व्याप्त एवा
आजथी १८ वर्ष पहेलां (सं. २००प मां) ज्यारे छ
बहेनोए ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा लीधी अने आत्मधर्मनो पहेलो
ब्रह्मचर्यअंक प्रगट थयो त्यारे तेमां आपवा माटे ए बे
प्रसंगोनी कथा तैयार करी हती, पण प्रसंगवशात् ते
आजे आ चोथा–ब्रह्मचर्यअंकमां, नव बहेनोनी