Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ३६ : आत्मधर्म : ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : श्रावण : २४९३
नामना देवना मनमां शंका उत्पन्न थई, तेथी वज्रयुधकुमारनी परीक्षा करवा माटे ते आ
पृथ्वी पर आव्यो. ते देव पोतानुं रूप बदलावीने वज्रयुधकुमारनी पासे पहोंच्यो अने
तेमनी परीक्षा करवा माटे एकांतवादनो आश्रय लईने ते बुद्धिमान प्रत्ये कहेवा लाग्यो
के हे कुमार! आप जीव वगेरे पदार्थोनो विचार करवामां चतुर छो, तेथी तत्त्वोना
स्वरूपने सूचित करनारा मारा वचनो उपर विचार करो, (एम कह्या पछी नीचे प्रमाणे
प्रश्न–उत्तर थाय.–)
देवे पूछ्युं के–शुं आ जीव क्षणिक छे? अथवा नित्य छे?
तेना उत्तरमां वज्रयुधकुमार अनेकांतस्वभावनो आश्रय लईने मीठा अने श्रेष्ठ
शब्दोमां कहेवा लाग्या के–हे देव! हुं जीवादि पदार्थोनुं स्वरूप पक्षपातरहित कहुं छुं, तमे
तमारा मनने स्थिर करीने सांभळो. जीवादि सर्वे पदार्थो सर्वथा क्षणिक नथी तेमज
सर्वथा नित्य पण नथी; केम के जो तेने सर्वथा क्षणिक मानवामां आवे तो पुण्य–पापनुं
फळ बने नहि, चिंता वगेरेथी उत्पन्न थनारुं कार्य थाय छे ते बनी शके नहि,
विचारपूर्वक करातां चोरी–व्यापार वगेरे कार्य बने नहि, ज्ञान–चारित्र वगेरेनुं
अनुष्ठान तथा तपश्चरण वगेरे कांई पण बनी शके नहि तथा गुरु द्वारा शिष्यने
ज्ञाननी प्राप्ति पण बनशे नहि, पूर्वजन्मसंस्कार पण रहेशे नहि अने ते प्रकारना
प्रत्यभिज्ञान वगेरेनो पण लोप थशे.–माटे जीवने सर्वथा क्षणिकपणुं तो नथी. अने जो
जीवने सर्वथा नित्य मानवामां आवे तो ज्ञान–क्रोधादिनी वध–घट तथा कर्मना बंध–
मोक्ष वगेरे कांई नहि बनी शके.– माटे जीव सर्वथा नित्य पण नथी. आ प्रमाणे
बुद्धिमान पुरुषोए सर्वप्रकारना दोषो टाळवा माटे परीक्षा करीने, एकांतवादथी दूषित
बधा मतोना पक्षने दूरथी ज छोडी देवो जोईए. बुद्धिमानोए परिक्षापूर्वक
अनेकांतस्वरूप जैनधर्मनो ज पक्ष स्वीकार करवो जोईए, केम के ते ज सत्य छे, ते ज
तत्त्वोना यथार्थ स्वरूपने सूचित करनार छे अने नयो द्वारा वस्तुस्वरूपनुं कथन करनार
छे. जीव कथंचित् नित्य–अनित्य स्वभाववाळो छे; जीवादि पदार्थो पोताना
द्रव्यस्वभावथी नित्य छे अने पर्यायस्वभावथी अनित्य छे. एटले द्रव्यार्थिकनयथी जीव
नित्य छे अने पर्यायार्थिकनयथी जीव अनित्य छे.–आवो अनेकांतस्वभाव छे. एकांत
क्षणिक के एकांत नित्य एवो वस्तुस्वभाव नथी. व्यवहारनयथी आ जीव जन्म–मरण,
बाल–युवान,–वृद्ध आदि अवस्थाओ सहित छे, अने कर्मथी बंधायेलो छे तथा कर्मथी
मूकाय छे,–ए बधी जुदी जुदी अवस्थाओ जीवनुं अनित्यपणुं सूचवे छे. तथा
परमार्थनयथी जीव सदा नित्य छे केम के निश्चयथी ते