Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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श्रावण : २४९३ आत्मधर्म : ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : ३प :
ज्ञानोथी शोभायमान हता, चतुर हता, श्री जिनेन्द्रदेवना चरणकमळना भक्त हता,
जैनधर्मनी प्रभावना करनारा हता, अने बुद्धिमानोथी पूज्य हता. वळी ते राजकुमार
निर्मळ सम्यग्दर्शनथी सुशोभित हता, सूक्ष्मदर्शी हता अने विद्वानोमां श्रेष्ठ हता. देवो
द्वारा पण डगे नहि एवा निर्मळ तत्त्वज्ञानना धारक हता; तेओ धर्मध्यानमां तत्पर
रहेता हता.












कोई एक दिवसे ईशान नामना बीजा स्वर्गनो ईन्द्र देवोथी भरेली सभामां
ईन्द्र सिंहासन पण बेसीने कहेवा लाग्यो के–“हे देवो! हुं मध्यलोकना एक धर्मात्मानी
वात कहुं छुं ते सांभळो. आ वात कानोने सुख देनारी छे, उत्तम छे; पुण्यउपार्जन
करनारी छे, गुणोनी कारण छे अने धर्मयशथी उत्पन्न थयेली छे. जुओ! पूर्व
विदेहक्षेत्रना मंगलावती देशना रत्नसंचयपुर नगरमां, तीर्थंकर भगवान श्री क्षेमंकर
महाराजना पुत्र वज्रयुधकुमार छे ते महान बुद्धिमान छे, गुणोना सागर छे, तत्त्वोना
जाणनार छे, धर्मात्मा छे अने मति–श्रुत–अवधि ए ज्ञानोथी शोभायमान छे. तेओ
निःशंक्ति वगेरे गुणोथी शोभित छे अने शंका वगेरे दोषोथी रहित छे; तेणे
सम्यग्दर्शननी विशुद्धता प्राप्त करी छे अने जिनप्रणीत तत्त्वार्थ–श्रद्धानमां ते अडग छे”
आ प्रकारे ईन्द्रे वज्रयुधकुमारनी स्तुति करी.