जंगलमां तेओने विमलप्रभ नामना मुनिनां दर्शन थया. ते मुनिराज अद्भुत
ज्ञानप्रभाना धारक हता. तेमनी पासेथी परम हितकर वैराग्यमय धर्मोपदेश सांभळतां
ते कनकप्रभ वैराग्य पाम्या अने ते मुनिराज पासे दीक्षा धारण करी लीधी.
गणिनी (–आर्जिका माता) पासे दीक्षा धारण करी लीधी.
वगडाव्यां अने पोते तेमनुं वंदन–पूजन करवा माटे गया. त्यां तेमनी स्तुति करीने
धर्मश्रवण करवा माटे तेमना चरण–समीप बेठा. केवळी भगवाने दिव्यध्वनि द्वारा
धर्मनुं स्वरूप कह्युं: आ संसार अनंत छे, अज्ञानी जीवो तेनो पार पामी शक्ता नथी.
संसार अनादि होवा छतां भव्य जीवो सम्यग्दर्शन वडे तेनो पार पामी जाय छे.
रत्नत्रयथी भरेली धर्मनौकामां जेओ नथी बेसता तेओ अनंत वार संसार–समुद्रमां
डुबे अने ऊछळे छे. तेथी अवश्य धर्मनुं सेवन करवुं जोईए. धर्म ज बंधु छे, धर्म ज
परम मित्र छे, धर्म ज स्वामी छे, धर्म ज पिता छे, धर्म ज माता छे, धर्म ज हितकारक
छे. धर्म जन्म–जरा–मृत्युथी बचावनार शरणभूत छे, धर्म ज मुक्तिदातार छे.
भोगोनी लंपटता महा विचित्र छे! आश्चर्य छे के आ मारा पौत्र छे छतां तेणे आजे
पोताना आत्मबळथी बालकपणामां ज केवळज्ञान संपदा प्राप्त करी लीधी छे, तेथी
संसारमां तेंमनो आत्मा धन्य छे!–ईत्यादि विचारथी तेमनो वैराग्य बमणो वधी गयो.
अने भगवानने नमस्कार करीने घेर आव्या.