Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९३ आत्मधर्म : ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : ३९ :
आ बाजु श्री वज्रयुधकुमार राज्य करता हता, तेमनी आयुधशाळामां चक्ररत्न
प्रगट थयुं अने छए खंड उपर विजय मेळवीने तेमणे चक्रवर्ती पद प्राप्त कर्युं.
तेमने कनकशांति नामना चरमशरीरी पौत्र हता. एक वखत ते कनकशांति
पोतानी स्त्रीओ साथे वनमां गया हता. जेम माटी खोदतां निधि नीकळी पडे तेम
जंगलमां तेओने विमलप्रभ नामना मुनिनां दर्शन थया. ते मुनिराज अद्भुत
ज्ञानप्रभाना धारक हता. तेमनी पासेथी परम हितकर वैराग्यमय धर्मोपदेश सांभळतां
ते कनकप्रभ वैराग्य पाम्या अने ते मुनिराज पासे दीक्षा धारण करी लीधी.
कनकशांतिए दीक्षा धारण करतां, विवेकरूपी नेत्रोने धारण करनारी तेमनी
राणीओए पण शरीर, भोग अने संसारथी वैराग्य धारण करीने विमलमति नामना
गणिनी (–आर्जिका माता) पासे दीक्षा धारण करी लीधी.
कनकशांति महाराज अल्पकाळमां केवळज्ञान पाम्या. पोताना पौत्रने केवळज्ञान
थवाना समाचार सांभळतां ज वज्रयुध चक्रवर्तीए ‘आनंद’ नामना गंभीर वाजां
वगडाव्यां अने पोते तेमनुं वंदन–पूजन करवा माटे गया. त्यां तेमनी स्तुति करीने
धर्मश्रवण करवा माटे तेमना चरण–समीप बेठा. केवळी भगवाने दिव्यध्वनि द्वारा
धर्मनुं स्वरूप कह्युं: आ संसार अनंत छे, अज्ञानी जीवो तेनो पार पामी शक्ता नथी.
संसार अनादि होवा छतां भव्य जीवो सम्यग्दर्शन वडे तेनो पार पामी जाय छे.
रत्नत्रयथी भरेली धर्मनौकामां जेओ नथी बेसता तेओ अनंत वार संसार–समुद्रमां
डुबे अने ऊछळे छे. तेथी अवश्य धर्मनुं सेवन करवुं जोईए. धर्म ज बंधु छे, धर्म ज
परम मित्र छे, धर्म ज स्वामी छे, धर्म ज पिता छे, धर्म ज माता छे, धर्म ज हितकारक
छे. धर्म जन्म–जरा–मृत्युथी बचावनार शरणभूत छे, धर्म ज मुक्तिदातार छे.
ए प्रमाणे केवळी भगवाननो उपदेश सांभळीने धर्मात्मा वज्रयुध चक्रवर्तीनुं
चित्त भव–तन–भोगथी विरक्त थयुं. अने चिंतववा लाग्या के अहो, आ संसारमां
भोगोनी लंपटता महा विचित्र छे! आश्चर्य छे के आ मारा पौत्र छे छतां तेणे आजे
पोताना आत्मबळथी बालकपणामां ज केवळज्ञान संपदा प्राप्त करी लीधी छे, तेथी
संसारमां तेंमनो आत्मा धन्य छे!–ईत्यादि विचारथी तेमनो वैराग्य बमणो वधी गयो.
अने भगवानने नमस्कार करीने घेर आव्या.
समस्त संसारथी विरक्त थयेला ते बुद्धिमान वज्रयुधे घेर जतां ज पोताना