Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९३ आत्मधर्म : ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : ४७ :
दिव्यध्वनिवडे आ देशमां धीकती धर्मपेढी चालती हती, तेम ज ज्यारे आत्मज्ञानी संत–
मुनिवरोनां टोळां ज्यां जोईए त्यां देखवामां आवता अने तेमनी पासेथी परम सूक्ष्म
तत्त्वज्ञाननो लाभ जगतना जीवोने मळतो त्यारे तो आवा प्रकारना ब्रह्मचर्यादिना
अनेक बनावो बनता, परंतु अत्यारे तो लोकोनी वृत्ति घणी ज बाह्य थई गई छे,
धर्मना नामे पण बाह्य वृत्तिओ पोषाई रही छे, जैनधर्मना नामे प्राय: अजैनत्वनो
उपदेश जोरशोरथी चाली रह्यो छे अने ए रीते वर्तमानमां जे मोक्षमार्ग बहु सुषुप्त अने
बहु लुप्त अवस्थामां पड्यो छे तेने सर्वथा लुप्त करी देवाना प्रयत्नो जैनधर्मना नामे
चाली रह्या छे.
(३) परंतु एवा आ काळे पण भव्य जीवोना महाभाग्य बाकी छे अने पवित्र
जैन शासननुं परम सूक्ष्म तत्त्वज्ञान आ पंचमकाळना छेडा सुधी रहेवानुं छे तेथी, परम
पूज्य सद्गुरुदेवश्री कानजीस्वामीनुं महान् प्रभावना योग सहित आ काळे प्रागट्य
थयुं छे अने निरंतर तेमना परम तत्त्वज्ञानना उपदेशनो लाभ हजारो मुमुक्षुओ लई
रह्या छे. ज्यारे चारे तरफ गृहीत मिथ्यात्वना पोषणनी पेढीओ चाली रही छे त्यारे आ
परम तत्त्वज्ञान प्राप्त करवा माटेनी धीक्ती पेढी शरू थई छे अने खूब प्रफुल्लित थई छे
ने थती जाय छे; तेनां अनेक सुशोभित, मीठां–मधुर अने सुखमय फळो आव्या छे;
अने तेमांनुं एक सुशोभित–मीठुं–मधुरुं अने सुखमय फळ आ बहेनोना ब्रह्मचर्य
लेवानो बनाव छे.
(४) कुमार भाईओ ब्रह्मचर्य धारण करे तेना करतां कुमारिका बहेनोए
ब्रह्मचर्य धारण करवुं ते विशेष कठिन कार्य छे, ने तेमां विशेष पुरुषार्थनी जरूर छे. छतां
तेवी हिंमत सत्समागमे तत्त्वज्ञानना अभ्यासपूर्वक बहेनोए प्रगट करी छे अने ते पण
तत्त्वज्ञानना अभ्यासमां आगळ वधवा माटे छे. आ कार्य एवुं सुंदर छे के ते प्रत्ये
सहृदय माणसोने प्रशंसाभाव आव्या वगर रहे नहि.
(प) ब्रह्मचर्यनी प्रतिज्ञा लेनारी बहेनो सारी रीते समजे छे के आ ब्रह्मचर्य
पालननी प्रतिज्ञा ते शुभभाव छे, ते धर्म नथी; पण तत्त्वज्ञाननो अभ्यास करनारा
अने धर्ममां प्रवेश करनारा मुमुक्षु जीवोने अशुभ भाव टळीने आवा प्रकारना
शुभभाव आव्या वगर रहेता नथी. तत्त्वज्ञाननी द्रष्टिए ए शुभभावनुं कार्यक्षेत्र केटलुं
छे ते तेओ जाणे छे. वळी तेओ समजे छे के सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी एकता ज
मोक्षमार्ग छे, सम्यग्दर्शन वगर मोक्षमार्ग होतो नथी; तेथी ते माटेना पुरुषार्थनी ज
तेमनी भावना छे, तेमनी ए भावना सफळ थाओ अने तेओ आत्मानी संपूर्ण
शुद्धताने अल्पकाळमां पामो एवी मारी प्रार्थना छे.