: श्रावण : २४९३ आत्मधर्म : ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : ४९ :
ब्रह्मचर्यजीवननी
भूमिका
(ब्रह्मचारी बहेनो प्रत्ये अभिनंदन
पू. गुरुदेवना उपदेशना प्रतापे आ काळमां घणा घणा प्रकारे प्रभावना थई छे;
‘आत्मतत्त्वने ओळखो, अंदर ज्ञानमूर्ति भगवान छे–एने ओळख्या विना बधा कार्यो
पामवानी गडमथल अंतरमां करतां, एनी झंखना करतां, एनुं मंथन करतां,
जातजातना शुभभावो सहजपणे, कष्टदायक जुदो प्रयत्न कर्या विना, आपोआप जीवने
आवी जाय छे. आखा भारतवर्षनी अंदर अनेक अनेक जीवो अनेक गामोनी अंदर
स्वाध्याय, वांचन, मनन, तत्त्वज्ञाननो विचार, मंथन, आत्मस्वरूप ओळखवानी
झंखना–एवा ऊंचा प्रकारना शुभभावो करता गुरुदेवना परम प्रतापे थया छे. वळी
अंदर सर्वज्ञस्वभावी तत्त्व पड्युं छे–एनो आदर करनार जीवने, जेमणे सर्वज्ञपद प्राप्त
कर्युं छे एवा अर्हंतो अने सिद्धो प्रत्ये भक्तिना भाव वहे छे; एवो भक्तिनो प्रवाह–
एवा शुभभावो पण गुरुदेवना अध्यात्म–उपदेशना प्रतापे धोधमार नदीनी जेम वह्या
छे. लोभ पण अनेक जीवोना मोळा पड्या छे, तन, धन, यौवन, स्त्री, पुत्र ए बधुं
विद्युतना जेवुं चंचळ छे एम लागवाथी, एक आत्मा ज अमरतत्त्व छे एवुं घूंटण
रहेवाथी, अंदर लोभ मोळो पडे छे, माया मोळी पडे छे, समताना भाव खीले छे; ए
रीते जीवोने लोभनी मंदता थतां ठेकठेकाणे सर्वज्ञ भगवानना मंदिरो पण थया छे. आ
रीते अनेक जीवोने पोतानी योग्यतानुसार आत्मतत्त्वने पामवानी धगशमां, एनी
गडमथल सेवतां–सेवतां, पोतानी योग्यतानुसार अनेक सद्गुणो उद्भव पाम्या छे.
एवा एक प्रकारनो आ ब्रह्मचर्यनो सद्गुण पण जीवने उद्भव थाय छे; ते जीवोने
वैराग्य थाय छे के ‘धिक्कार छे आ आत्माने के जे विषयोनी अंदर रमीने प्राप्त
सत्संगोनो पण लाभ लई शक्तो नथी. ए जो नहि ले तो अनंत भवसागरनी अंदर
गळकां खातां खातां