Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: प० : आत्मधर्म : ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : श्रावण : २४९३
महाभाग्यथी आ हाथमां आवेलुं नौकानुं लाकडुं छूटी जशे, अने जीवने पश्चातापनो
पार नहि रहे’ –एम वैराग्यभावना सेवता जीवोने ब्रह्मचर्य सहजपणे आवे छे.
आ बहेनो जाणे छे के आत्मअनुभव पहेलांनी ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा ते मात्र शुभ
भाव ज छे, अने ए शुभभाव ए मुक्तिनो प्रयत्न नथी, ए मुक्तिनो पुरुषार्थ नथी.
मुक्तिनो पुरुषार्थ तो आत्मस्वभावनी ओळखाण थतां प्रगट थाय छे;
आत्मतत्त्वचिंतामणीनी ओळखाण ज्यारे थाय त्यारे एनी पहेलूरूपे दर्शन–ज्ञान–
चारित्र आदि मोक्षमार्गनी पर्यायो प्रगट थाय छे, त्यारपहेलां नहीं. बीजा अन्य मार्ग
प्ररूपनारा जीवो तो एम कहे छे के जो एकवार ब्रह्मचर्य कष्टे करीने पण सहन करो तो
मोक्ष जरूर मळशे.–एवुं माननारामां पण, एवा मार्गमां पण, ए ब्रह्मचर्य पाळनारा
अत्यंत अल्प नीकळे छे; गुरुदेवकथित स्वानुभूत अमरतत्त्वनी वात एवी अद्भुत छे
के श्रोताओने ए सोंसरी ऊतरी जाय छे, शुद्धिना पुरुषार्थमां ए पडे छे, अने शुद्धिना
पुरुषार्थनी अंदर पडतां शुभभावो प्रगट थाय छे. आ रीते प्रगट थयेलो शुभभाव ए
आ बहेनोए अंगीकार करेलुं ब्रह्मचर्य छे. ए रीते, शुद्धिना प्रयत्ननी गडमथल करतां,
एनी पाछळ प्रयत्न करतां करतां आ बहेनोने शुभभाव आवेलो छे.
कोई क्षणिक वैराग्यनी अंदर, कोईना उपदेशनी तात्कालिक असरनी अंदर,
अथवा स्वतंत्र रहेवानी धूननी अंदर लेवायेलुं ब्रह्मचर्य ए जुदी वात छे, अने वर्षोना
सत्संग, वर्षोना अभ्यास पछी, एक आत्महितना निमित्ते पूज्य गुरुदेवनी
सुधास्यंदिनी वाणीना निरंतर सेवनना अर्थे, ए सुधापान पासे बीजा सांसारिक,
कथनमात्र, कल्पित सुखो तो अत्यंत गौण थई जवाथी, अने परमपूज्य बेनश्रीबेन
(चंपाबेन–शांताबेन) नी शीतळ छायामां रहीने कल्याण करवानी भावनाथी लेवायेलुं
आ ब्रह्मचर्य–ए तद्न जुदी वात छे. सामान्य रीते पहेला प्रकारनुं ब्रह्मचर्य पण
जगतमां अत्यंत अल्पनहिवत् जेवुं–होय छे, तो आ प्रकारनुं ब्रह्मचर्य तो खूब
प्रशंसनीयपणाने पामे छे.
आ कुमारिका बहेनोए ब्रह्मचर्य ग्रहण करी सत्संगने अर्थे बधुं न्योच्छावर
करवाना जे शुभ भाव प्रगटाव्या छे ते अति प्रशंसनीय छे. श्रीमद् राजचंद्रजीए कह्युं छे
के–प्रथम तो सर्व साधनाने गौण जाणी, मुमुक्षु जीवे एक सत्संग ज सर्वार्पणपणे
उपासवा योग्य छे, एनी उपासनामां सर्व साधनो आवी जाय छे. जेने ए साक्षीभाव
प्रगट थयो छे के आ ज सत्पुरुष छे, अने आ ज सत्संग छे,–एणे तो पोताना दोषो
कार्ये कार्ये, प्रसंगे प्रसंगे, क्षणे क्षणे जोवा, जोईने ते परिक्षीण करवा, अने सत्संगने
प्रतिबंधक जे कांई होय एने देहत्यागना जोखमे पण छोडवुं; देहत्यागनो प्रसंग आवे