: प२ : आत्मधर्म : ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : श्रावण : २४९३
–ते पवित्र स्त्री जगतने शोभावे छे
स्त्री अनेक दोषोना कारणरूप छे, तेथी स्त्रीसंसर्गनो निषेध कर्यो छे. ए प्रमाणे
संसारथी विरक्त संयमी मुनिवरोए स्त्रीओने दुषित बतावी छे, तोपण एकान्तपणे
बधी स्त्रीओ दोषयुक्त ज होय छे–एम नथी, परंतु तेमनामां पण कोई पवित्र आत्मा
शील–संयमादि गुणोथी अलंकृत होय छे, ते प्रशंसनीय छे.–एम ज्ञानार्णव गा. प६ थी
प९ मां बताव्युं छे:
ननु सन्ति जीवलोके काश्चित् शम–शील–संयमोपेताः।
निजवंशतिलकभूताः श्रुतसत्यसमन्विता नार्यः।।५७।।
सतीत्वेन महत्त्वेन वृत्तेन विनयेन च।
विवेकेन स्त्रियः काश्चिद् भूषयन्ति धरातलम्।।५८।।
अहो, आ जगतमां अनेक स्त्रीओ एवी पण छे के शम–शांतभाव अने
शीलसंयमथी भूषित छे, तथा पोताना वंशना तिलक समान छे अर्थात् पोताना वंशने
शोभावे छे अने शास्त्राभ्यास तथा सत्यवचन सहित छे.
अनेक स्त्रीओ एवी छे के जे पोताना सतीत्वथी, महानताथी, सदाचरणथी,
विनयथी अने विवेकथी आ पृथ्वीने शोभायमान करे छे.
निर्विर्ण्णैभवसंक्रमात् श्रुतधरैः एकान्ततो निस्पृहैः
नायों यद्यपि दूषिताः शमधनैः ब्रह्मव्रतालम्बिभिः।
निन्द्यन्ते न तथापि निर्मलयम स्वाध्यायवृत्तांकिता
निर्वेदप्रशमादिपुण्यचरितैः याः शुद्धिभूता भुवि।।५९।।
संसारभ्रमणथी विरक्त, श्रुतना धारक, स्त्रीओथी सर्वथा निस्पृह, अने
उपशमभाव ज जेमनुं धन छे एवा ब्रह्मव्रतधारी मुनिवरोए जोके स्त्रीओने निंद्य कही
छे, तोपण–जे स्त्रीओ पवित्र यम–नियम–स्वाध्याय–चारित्र वगेरेथी भूषित छे अने
निर्वेद–प्रशम (वैराग्य–उपशम) वगेरे पवित्र आचरणवडे शुद्ध छे ते स्त्रीओ जगतमां
निंदनीय नथी पण प्रशंसनीय छे; केमके निंदा तो दोषनी ज करवामां आवे छे; गुणोनी
निंदा होती नथी, गुणोनी तो प्रशंसा ज थाय छे.
(शुभचंद्राचार्य रचित ज्ञानार्णवमां अध्यात्म सहित वैराग्यनो सुंदर उपदेश छे.
तेमां ब्रह्मचर्य संबंधी विस्तृत वर्णन ११ थी १प–ए पांच प्रकरणोमां कर्युं छे ते
जिज्ञासुओने पठनीय छे. अहीं उपर जे गाथाओ आपी छे ते तेमांथी लीधेली छे.)