: श्रावण : २४९३ आत्मधर्म : ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : प३ :
भगवतीआराधनामां धर्मात्मा–स्त्रीनी प्रशंसा
भगवतीआराधनाना ब्रह्मचर्यवर्णन–अधिकारमां स्त्री संबंधी अनेक दोष
बतावीने अंतभागमां कहे छे के सामान्यपणे स्त्रीओमां दोष बताव्या पण तेमां
अपवादरूपे कोई गुणवान–धर्मात्मा स्त्रीओ पण जगतमां छे ने ते प्रशंसनीय छे. (आ
संबंधी गाथा ९९४ थी ९९९ नो अर्थ अहीं आपीए छीए.–सं.)
वळी जे शील वगेरे गुणोथी सहित छे, जेनो यश विस्तार पाम्यो छे,
मनुष्यलोकमां जे देवीसमान छे अने देवो वडे पण जे वंदनीक छे, एवी स्त्री पण शुं
लोकमां विद्यमान नथी?–अवश्य छे ज.
तीर्थंकर–चक्रवर्ती–वासुदेव–बळदेव–गणधर ए महापुरुषोने उत्पन्न करनारी
तेमनी जनेता उत्तम देव–मनुष्यो वडे पण वंदनीक छे.–एवी उत्तम स्त्रीओ पण
जगतमां होय छे.
अनेक स्त्रीओ एकपतिव्रत सहित अणुव्रतोने धारण करे छे अने जीवनपर्यन्त
कदी पण विधवापणाना तीव्र दुःखने पामती नथी.
आ लोकमां शीलव्रतने धारण करती थकी, शीलना प्रभावथी पृथ्वीमां देवो वडे
सिंहासनादिक प्रातिहार्यने पामेली, तथा जीवो उपर अनुग्रह करवानी जेनी शक्ति छे
एवी पण अनेक स्त्रीओ पृथ्वीतळमां विद्यमान छे ज.
जगतमां केटलीक एवी शीलवती स्त्रीओ छे के जेना शीलना प्रभावने लीधे
पाणीना लोढ पण तेने डुबाडी शक्ता नथी, अने प्रज्वलित घोर अग्नि पण तेने बाळी
शक्तो नथी; तथा सर्प–सिंह–वाघ वगेरे दुष्ट जीवो दूरथी ज तेने छोडी दे छे,–एवी
स्त्रीओ पण विद्यमान छे ज.
वळी सर्वगुणसंपन्न एवा साधुओ तेम ज चरमशरीरी एवा श्रेष्ठ पुरुषो
तेमना मातृत्वने धारण करनारी अनेक स्त्रीओ पण जगतमां छे ज.
जगतमां एवी शीलवान–धर्मात्मा स्त्रीओ पण होय छे के देवो जेने वंदना करे
छे; सम्यग्दर्शननी धारक, वच्चे एक भव धारण करीने त्रीजा भवे मोक्ष पामनारी,
महान पुरुषार्थवंती, जगतनी पूज्य, महासती धर्मनी मूर्ति वीतरागरूपिणी–तेना
महिमानुं करोड जीभवडे करोड वर्षे पण वर्णन करवा कोई समर्थ नथी.
(एवा विद्यमान धर्मात्माओने नमस्कार.)