Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ६० : आत्मधर्म : ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : श्रावण : २४९३
ममत्वना त्यागरूप परिणाम वडे चैतन्यमां लीन थईने मुनिवरो उत्तम त्यागधर्मने
आराधे छे.
(९) ‘शुद्ध ज्ञानदर्शनमय एक आत्मा ज मारो छे, ए सिवाय अन्य कांई पण
मारुं नथी’ –एवा भेदज्ञानना बळे देहादि समस्त पर द्रव्योमां ने रागादि समस्त
परभावोमां ममत्व परित्यागीने जेओ अकिंचनभावमां तत्पर छे एवा उत्तम
मुनिवरोने नमस्कार हो.
(१०) जगतना सर्व विषयोथी उदासीन थईने ब्रह्मस्वरूप निज आत्मामां ज
जेमणे चर्या प्रगट करी एवा उत्तम ब्रह्मचर्यधर्मना आराधक संत–धर्मात्माओने
नमस्कार हो.
*
ब्रह्मचर्यअंक १–२–३ मांथी थोडाक अवतरणो
* हे परमकृपाळु गुरुदेव! अध्यात्मरसनी खुमारीथी ने ब्रह्मचर्यना
रंगथी आपनुं जीवन रंगायेलुं छे...तेथी, आपनी महा प्रतापी छायामां
निरंतर वसता...ने आपश्रीना पावन उपदेशनुं पान करता आपना नाना
नाना बाळक–बाळिकाओ पण ब्रह्मजीवन प्राप्त करे तेमां शुं आश्चर्य छे!
* पू. गुुरुदेव वैराग्यपूर्वक कहे छे के आ शरीर तो धूळनुं ढींगलुं छे,
तेमां क्यांय आत्मानुं सुख नथी, तेनां उपरथी द्रष्टि हठावीने,
चैतन्यस्वभावमां एकाग्र थतां अंदरथी शांतिनुं एक झरणुं आवे छे. जीव जे
शांति लेवा मागे छे ते कोई संयोगमांथी नथी आवती पण पोताना
स्वभावमांथी ज आवे छे.
* अरे जीव! बाह्यविषयो तो मृगजळ जेवा छे, तेमां क्यांय तारी
शांतिनुं झरणुं नथी एम समजीने हवे तो तेनाथी पाछो वळ...ने
चैतन्यस्वरूपमां अंतर्मुख था. चैतन्यसन्मुख थतां शांतिना झरणामां तारो
आत्मा तृप्त–तृप्त थई जशे.
* प्रतिज्ञाप्रसंगे गुरुदेवे कह्युं: आ प्रसंग तो खरेखर आ बे बेनोने
आभारी छे...आ बेनोनां आत्मा अलौकिक छे...आ काळे आ बेनो पाक्या ते
मंडळनी बेनुंना महाभाग्य छे...जेनां भाग्य हशे ते तेमनो लाभ लेशे.
* * *