
ओळखतो नथी. भाई, जाणवानुं काम कांई आ आंख नथी करती, जाणवानुं काम तो
अंदर ज्ञानस्वरूप आत्मा छे ते करे छे. धर्मी–अंतरात्मा जाणे छे के ज्ञाताद्रष्टा तो हुं छुं,
मारो ज्ञान–दर्शनस्वभाव आ देहमां नथी, देहथी तो हुं तद्न जुदो छुं. पोताना
एकबीजामां भेळसेळ थतो नथी. एक रूपी, बीजो अरूपी; एक जड बीजो चेतन, एम
बंनेना स्वभावनी तद्न भिन्नताने ज्ञानी जाणे छे. ज्यां पोताना ज्ञानमां रागना
अंशनेय नथी भेळवता त्यां जडने तो पोतामां ज्ञानी केम माने? देहथी ने रागथी
पोताना आत्माने अत्यंत जुदो अनुभवे छे.
ते बंनेनी एक क्रिया लागे छे, पण खरेखर त्यां जाणवानी क्रिया लंगडानी छे, ने
चालवानी क्रिया आंधळानी छे. तेम शरीर अने आत्मा एक क्षेत्रमां रह्या छे त्यां
आत्मानी क्रिया तो जाणवानी ज छे, ने शरीर चाले–बोले के स्थिर रहे ते बधी क्रियाओ
शरीरनी ज छे. छतां अज्ञानी भ्रमथी देहनी क्रियाओने ज आत्मानी माने छे, ज्ञानी तो
बंनेनी क्रियाओने स्पष्ट भिन्नभिन्न जाणे छे. आ जाणवानी