Atmadharma magazine - Ank 287
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९३ आत्मधर्म : ११ :
जड ईन्द्रियो जाणवानुं काम करे छे. पण जड अने चेतननी भिन्न भिन्न क्रियाने ते
ओळखतो नथी. भाई, जाणवानुं काम कांई आ आंख नथी करती, जाणवानुं काम तो
अंदर ज्ञानस्वरूप आत्मा छे ते करे छे. धर्मी–अंतरात्मा जाणे छे के ज्ञाताद्रष्टा तो हुं छुं,
मारो ज्ञान–दर्शनस्वभाव आ देहमां नथी, देहथी तो हुं तद्न जुदो छुं. पोताना
ज्ञानस्वरूप आत्माने शरीरादि पदार्थोथी अत्यंत भिन्न ते अनुभवे छे.
भाई, शरीर ने आत्मा तो अत्यंत भिन्न छे; संयोगे रह्या होवा छतां बंनेना
स्वभाव वच्चे अत्यंत अभावरूपी मोटो पर्वत ऊभो छे; एकबीजानो अंश पण
एकबीजामां भेळसेळ थतो नथी. एक रूपी, बीजो अरूपी; एक जड बीजो चेतन, एम
बंनेना स्वभावनी तद्न भिन्नताने ज्ञानी जाणे छे. ज्यां पोताना ज्ञानमां रागना
अंशनेय नथी भेळवता त्यां जडने तो पोतामां ज्ञानी केम माने? देहथी ने रागथी
पोताना आत्माने अत्यंत जुदो अनुभवे छे.
[वीर सं. २४८२: श्रावण सुद ९]
भेदज्ञानी जीव जड–चेतननी भिन्नता जाणे छे; ने अज्ञानी ते बंनेने एक माने
छे; ते वात अहीं लंगडा ने आंधळाना द्रष्टांतथी समजावी छे. आंधळाना खभा उपर
लंगडो बेठो होय, ने लंगडो मार्ग जाणे ते प्रमाणे आंधळो चाले,–त्यां अज्ञानीने भ्रमथी
ते बंनेनी एक क्रिया लागे छे, पण खरेखर त्यां जाणवानी क्रिया लंगडानी छे, ने
चालवानी क्रिया आंधळानी छे. तेम शरीर अने आत्मा एक क्षेत्रमां रह्या छे त्यां
आत्मानी क्रिया तो जाणवानी ज छे, ने शरीर चाले–बोले के स्थिर रहे ते बधी क्रियाओ
शरीरनी ज छे. छतां अज्ञानी भ्रमथी देहनी क्रियाओने ज आत्मानी माने छे, ज्ञानी तो
बंनेनी क्रियाओने स्पष्ट भिन्नभिन्न जाणे छे. आ जाणवानी