: १० : आत्मधर्म : भादरवो : २४९३
(अंक २८६ थी चालु) * (लेखांक प४)
भगवानश्री पूज्यपादस्वामी रचित समाधिशतक उपर पूज्यश्री
कानजीस्वामीनां अध्यात्मभावनाभरपूर वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार.
देह अने आत्मानो संयोग देखीने अज्ञानी ते बंनेनी क्रियाओ एकबीजामां
भेळवी द्ये छे, बंनेना भिन्न लक्षणोने जाणतो नथी ने बंनेनी भिन्न क्रियाओ ओळखतो
नथी–ए वात ९१ मी गाथामां करी. हवे ९२ मी गाथामां कहे छे के–देह अने आत्मानो
संयोग होवा छतां, भेदज्ञानी अंतरात्मा तेमने भिन्न भिन्न समजे छे ने एकबीजामां
भेळवतो नथी–
द्रष्टभेदो यथा द्रष्टिं पंगोरन्धे न योजयेत्।
तथा न योजयेत् देहे द्रष्टात्मा द्रष्टिमात्मनः।।९२।।
जेणे द्रष्टिवंत पंगु अने द्रष्टिहीन अंध ए बंने वच्चे भेद जाण्यो छे एटले के
देखवानुं काम तो पंगुनुं छे ने चालवानुं काम अंधनुं छे एम भिन्नता जाणे छे ते जीव
पंगुनी द्रष्टिने अंधमां आरोपतो नथी; तेम जेणे चेतनवंत एवो जीव अने चेतनहीन
एवुं जड–शरीर ए बंने वच्चे भेद जाण्यो छे, जाणवानुं कार्य तो जीव करे छे, ने
शरीरनी चेष्टाओ तो जडनी छे–एम बंनेनुं भिन्न भिन्न स्वरूप जेणे जाण्युं छे ते
चेतनना भावने जडमां खतवतो नथी, आत्माने देहनी क्रियामां जोडतो नथी एटले के
देहनी क्रिया आत्मा करे छे–एम ते देखतो नथी, पण देह अने आत्मा बंनेनी क्रियाने
भिन्न भिन्न ज देखे छे.–आवी भिन्नता देखनार अंतरात्मा छे.
जुओ, इंद्रियोमां कांई जाणवानी ताकात नथी. कोईने जातिस्मरण थतां पूर्वना
अनेक भवो देखाय,–ते शुं आंखथी देखाय छे? ज्ञानथी ज ते देखाय छे. अवधिज्ञानीने
अहीं बेठा बेठा स्वर्ग–नरक साक्षात् देखाय, ते शुं आंखनी ताकात छे?–नहि, ज्ञाननी
ज जाणवानी ताकात छे. आंख तो एककोर बहार रही जाय छे. सर्वज्ञ परमात्मा
आंखना अवलंबन वगर आत्मामां ज एकाग्रताथी आखा जगतने साक्षात् देखे छे–
जाणे छे. जाणवुं ते ईन्द्रियोनी क्रिया नथी, जाणवुं ते तो ज्ञाननी क्रिया छे,–एम धर्मी
बंनेने भिन्न भिन्न ओळखे छे.
देह अने आत्मा संयोगमां रह्या त्यां अज्ञानीने एम थाय छे के देहनां काम जाणे
आत्मा ज करे छे; अथवा आ आंख वगेरे